पितृपक्ष हिंदू धर्म में पितरों को स्मरण करने और उनका आशीर्वाद पाने का विशेष समय माना जाता है. परंपरा के अनुसार इस अवधि में मांगलिक कार्य और नई चीजों की खरीदारी टालने का निर्देश दिया जाता है. लेकिन बदलते समय और आधुनिक जीवनशैली में इसका अर्थ रोजमर्रा की जरूरतों को रोकना नहीं है.

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार रोक का अर्थ है दिखावे और भव्य खर्च से बचना. इस दौरान इंसान को सादगी अपनाकर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, दान और सेवा में मन लगाना चाहिए. जैसे ही पितृपक्ष खत्म होता है और नवरात्रि शुरू होती है, तभी नई खरीदारी, निवेश और मांगलिक कार्य शुभ माने जाते हैं.

धार्मिक मान्यता कहती है कि पितृपक्ष आत्मिक शांति और श्रद्धा का समय है, न कि उत्सव या भौतिक उपभोग का है. इसलिए इस दौरान महंगी शादियाँ, लग्जरी गाड़ियाँ, नए घर या बड़ी प्रॉपर्टी डील जैसे काम टालने की परंपरा है. साथ ही ब्रांडेड ज्वेलरी, फैशन आइटम या बड़े इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स खरीदना भी शुभ नहीं माना जाता. लेकिन रोजमर्रा की जरूरतें इससे अलग हैं.

रोजमर्रा की जरूरतों में दवाइयाँ, बच्चों की पढ़ाई का सामान, ऑफिस या कामकाज के लिए जरूरी उपकरण, यहां तक कि छोटे-मोटे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स या मोबाइल रिप्लेसमेंट भी खरीदे जा सकते हैं. यानी जीवन की जरूरतें पितृपक्ष की परंपराओं से टकराती नहीं हैं.