भारत पश्चिमी देशों के रूसी तेल को न खरीदने के फरमान से बेफिक्र लगता है, क्योंकि प्रतिबंधों के बीच न केवल भारत इसे खरीदना जारी रखता है बल्कि रूस से तेल की खरीद में भी वृद्धि करता है. एनर्जी कार्गो ट्रैकर वोर्टेक्सा के अनुसार, रूस ने अक्टूबर के लिए भारत को शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरकर सऊदी अरब और इराक जैसे प्रमुख पारंपरिक खिलाड़ियों को पीछे छोड़ दिया है और एक महीने के लिए सबसे अधिक 946,000 बैरल की आपूर्ति की है.

भारत के कुल कच्चे तेल के आयात में सऊदी अरब की हिस्सेदारी 16 फीसदी है, जबकि इराक 20.5 फीसदी के साथ दूसरे और रूस 22 फीसदी के साथ शीर्ष पर है. अक्टूबर में कुल कच्चे तेल का आयात 5% बढ़ा और रूस से 8% बढ़ा. चीन ने 1 मिलियन बैरल का आयात किया और इसलिए रूस का सबसे बड़ा समुद्री क्रूड खरीदार बना रहा. पहली बार भारत ने यूरोपीय संघ (34% अधिक) की तुलना में रूस से अधिक समुद्री कच्चे तेल का आयात किया.

2021 में भारतीय बाजार में रूस की हिस्सेदारी 1% से कम थी, उसी की नाटकीय वृद्धि को युद्ध के कारण रियायती कीमतों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. भारत पर अपने पश्चिमी मित्र रूस से तेल न खरीदने का अत्यधिक दबाव रहा है, जो उनके अनुसार युद्ध का वित्तपोषण कर रहा है, लेकिन भारतीय प्रशासन ने बार-बार तार्किक स्पष्टीकरण देकर अपने कदम का बचाव किया है.

“अगर भारत ने नहीं खरीदा या किसी और ने रूसी तेल नहीं खरीदा, और रूसी तेल बाजार से बाहर जाना था, तो अंतरराष्ट्रीय कीमतों का क्या होगा?” तेल मंत्री हरदीप पुरी ने सोमवार को बताया कि बाजार में व्यवधान से कीमतें 200 डॉलर प्रति बैरल हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि भारत कहीं से भी तेल और गैस खरीदेगा क्योंकि सरकार का यह ‘नैतिक कर्तव्य’ है कि वह अपनी आबादी को ऊर्जा की आपूर्ति बनाए रखे.

तेल आयात में वृद्धि ने रूस को पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना दिया है, लेकिन ज्यादातर कच्चे आयात के आधार पर एकतरफा संबंध है जबकि भारत का निर्यात न्यूनतम रहा है. विश्लेषकों का मानना है कि भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल का आयात दिसंबर से कम हो सकता है.

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