पवित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम्
                                                    धर्म संस्थापार्थनाय संभवामि युगे युगे ।।

जमदग्नि नंदन परशुराम भगवान विशणु के छठवे अवतार के रूप में अवतरित हुए. वे सप्त चिरंजीवीयो में से एक हैं.  उनके जीवन में शस्त्र और शास्त्र का विलक्षण समन्वय था. आज भगवान परशुराम जी की जयंती पर उनके कुछ अंतरंग भाव को अनावृत करने का प्रयास करेंगे.

ब्राम्हण कुल में जन्मे भगवान परशुराम शास्त्र और शस्त्र विद्या में निपुण थे. सामाजिक व्यवस्था के संतुलन और जीवन मूल्यों की रक्षा शस्त्र और शास्त्र के सामंजस्य और समन्वय से ही संभव है. एक छोटे से प्रसंग से इस गुण रहस्य को समझने का प्रयास करते हैं. महाभारत के अंतिम चरण में पांचों पाण्डव, श्रीकृष्ण महाभारत की युद्ध भूमि में शरसैय्या पर पड़े भीष्म पितामह से मिलने जाते हैं. भीष्म पितामह ने श्रीकृष्ण का अभिवादन कर कहा हे केशव आप धन्य है. मैंने शपथ लिया था यदि मैं गंगा पुत्र हूं तो आपसे शस्त्र धारण करने पर बाध्य कर दूंगा. आपने शस्त्र धारण न करने की प्रतिज्ञा ली थी, परंतु हे केशव आपने एक सच्चे सारथी होने के कारण अर्जुन की रक्षा के लिए शस्त्र तो नहीं पर रथ का पहिया धारण कर शास्त्र सम्मान वचन बद्धता की रक्षा की और मैं गंगा पुत्र भीष्म द्रोपदी वस्त्र हरण का अप्रिय कलंकित पृष्ठ मेरी उपस्थिति में हो गया. उसके करुणा क्रुदन का मैं मुक साक्षी बनकर अपनी वचनबद्धता से शास्त्र निहित सीमाओं में बंधा हुआ अपनी निष्ठा को हस्तिनापुर की अंधी राजनीति के खड़ाऊ की खूंटी से बांधे रखा और लिख गया वह कला अध्याय. हे केशव धर्म की रक्षा के लिए, सामाजिक मूल्यों की रक्षा के लिए अन्याय के विरुद्ध जिस योद्धा का हाथ शस्त्र पर नहीं जाता उसका शस्त्र ज्ञान, शस्त्र कौशल नपुंसक होता है. हे केशव आपने शस्त्र को भी समझा और शास्त्र का भी सम्मान किया. मैं ना शास्त्र को समझ पाया ना शस्त्र के साथ न्याय कर पाया.

कार्तवीर्य अर्जुन के पुत्रों ने जब भगवान परशुराम जी के पिता जमदग्नि मुनि का वध कर दिया तो आक्रोशित होकर इस अन्याय के विरोध में शस्त्र धारण किया. भगवान शिव की उपासना से आशीर्वाद स्वरूप फरसा प्राप्त हुआ थ., तभी इनके नाम के आगे परशु लगा और भगवान परशुराम हुए.

भगवान परशुराम के दिव्य चरित्र समझने के लिए हमें रामचरितमानस के सीता स्वयंबर प्रसंग को देखना होगा. भगवान के मुख्य 20 अवतार हुए हैं. बाद 4 अवतारों की और मान्यता दी गई है. पर कभी ऐसा नहीं हुआ कि एक ही काल में दो अवतार आमने-सामने हो गए हो . जनकपुर में ऐसा वर्णन आता है.  श्री राम और परशुराम दोनों अवतारों का मिलन हुआ. भगवान परशुराम को आवेशा अवतार कहते हैं., श्री राम को मर्यादा अवतार की श्रेणी में रखा जाता है. सृष्टि के संतुलन बनाने की योजना मानो दो चरणों में बनाई गई थी. पहले आततायी निरंकुश राजाओं के भय से मुक्त कर स्थिति सामान्य करने का दायित्व परशुराम जी का था. और उसके पश्चात समाज में शील, संयम मर्यादा सदाचार का सामाजिक चेतना का कार्य श्री राम का था. इसलिए जनकपुर में श्री राम कहते हैं की
                                                                            हमहीं तुम्हि सरिबरि
                                                            कसि नाथा। कहहु न कहां चरण कह माथा ।।

श्रीराम ने कहां हम तो चरण हैं. आप मस्तिष्क है, विवेक है ,शास्त्र निपुण हैं. उन्होंने श्री परशुराम जी में शस्त्र और शास्त्र की संपूर्णता को सिद्ध करते हुए श्री राम ने कहा हम तो सिर्फ शस्त्र ही जानते हैं हमारा एक ही गुण हैं “शस्त्र” (धनुष ). परंतु हे भगवान आपके पास 9 गुण हैं.
                                                                                 “देव एक गुन धनुष हमारे
                                                                                नवगुण परम पुनीत तुम्हारे”

हे देव आपके पास शम, दम, तप सोच, क्षमा, सरलता, शाम, विज्ञान और अस्तित्वता ये गुणों से आप विभूषित है. हे देव आप शस्त्र को जानते हैं और शास्त्र को भी जानते हैं. ऐसे चिरंजीवी शस्त्र और शास्त्र के सम्यक दर्शन के ज्ञाता भगवान परशुराम जी को प्रणाम है.

लेखक-
स्टेट न्यूज़ को-आर्डिनेटर
स्वराज एक्सप्रेस/लल्लूराम डॉट कॉम, रायपुर