विशेष रिपोर्ट वैभव शिव पांडेय/राजकुमार भट्ट

रायपुर. छत्तीसगढ़ के 11 लोकसभा सीटों में से एक जिस सीट की चर्चा हम करने जा रहे हैं वह प्रदेश के सबसे बड़े राजपरिवार के इलाके की सीट है. यह सीट भले ही आदिवासियों के लिए आरक्षित हो, लेकिन यहां सीधे तौर पर सिंहदेव राजपरिवार का प्रभाव ही रहा है. बात एक ऐसी सीट की जिसे प्रकृति बहुत कुछ दिया है. खनिज-संपदा से भरपूर यह सीट एक तरह से छत्तीसगढ़ का स्वर्ग है. शुरुआती दौर में कांग्रेस का गढ़ रही इस सीट पर आज भाजपा बेहद मजबूत है. यही एक ऐसी सीट है जहां से कांग्रेस ने तीन बार सांसद रहे खेलसाय सिंह को मैदान में उतारा है, जबकि भाजपा ने मौजूदा सांसद की टिकट काट पूर्व मंत्री रेणुका सिंह को प्रत्याशी बनाया है. इस सीट पर ओड़िसा प्रभारी और सरगुजा महाराज पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव की प्रतिष्ठा दाँव पर है.

सियासी तौर सरगुजा का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है. शुरुआती दौर से यहां राजपरिवार का दखल संसदीय सीट पर दिखाई देता है. स्वतंत्र भारत में जब पहली बार 1952 लोकसभा के चुनाव हुए तो सरगुजा राजपरिवार महाराज कुमार चंडिकेश्वर सिंहदेव ने जीत हासिल की. उनके साथ बाबूनाथ सिंह भी सांसद चुने गए. इसी जोड़ी ने 1957 में हुए दूसरे चुनाव में फिर से अपनी सफलता दोहराई. दो सदस्यीय सीट से एक सदस्यीय सीट होने पर महाराज को मैदान से बाहर हो गए, लेकिन बाबूनाथ सिंह की पारी चलती रही.

रघुनाथ पैलेस

बाबूनाथ सिंह का 71 तक रहा वर्चस्व

कांग्रेस नेता बाबूनाथ सिंह ने 1952 और 1957 की जीत को आगे बढ़ाते हुए 1967 के चुनाव में एस राम को 10 हजार मतों से और 1971 में लरंग साय को 24 हजार मतों से अंतर से पराजित किया. बाबूनाथ की जीत का यह क्रम 1977 में आपात काल की वजह से लोगों में भरे गुस्से के फूटने से जाकर टूटा, आपातकाल की वजह से मतदाताओं में गुस्सा कुछ इस कदर था कि भारतीय लोक दल के प्रत्याशी लरंग साय ने बाबूनाथ को एक लाख मतों के अंतर से पराजित किया. लेकिन इसके बाद 1980 और 1984 में हुए चुनाव में लरंग साय अपनी सफलता नहीं दोहरा पाए. लेकिन पार्टी ने उन पर भरोसा बरकरार रखा और लरंग साय ने 1989 में जीत हासिल कर पहली बार पार्टी की झोली में सरगुजा सीट डाल दी.

लरंग साय – खेलसाय सिंह (दाएं)

लरंग साय और खेलसाय के बीच लंबा मुकाबला

लरंग साय से हार झेलने के बाद कांग्रेस ने 1991 के चुनाव में अपना प्रत्याशी बदलते हुए खेलसाय सिंह को टिकट दिया और उन्होंने पहले मुकाबले में सधे हुए खिलाड़ी लरंग साय को 46 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से पराजित किया. इसके बाद आने वाले चुनावों में दोनों के बीच मुकाबला होता रहा. 1996 में हुए चुनाव में खेलसाय सिंह ने फिर बाजी मारी, लेकिन 1998 में हुए चुनाव में लरंग साय जीत गए. 1999 में बाजी फिर पलट गई और खेलसाय सिंह ने जीत हासिल कर लरंग साय की राजनीतिक पारी को खत्म कर दिया.

भाजपा का बन गया अपराजेय गढ़

2004 में भाजपा ने प्रत्याशी बदलते हुए नंदकुमार साय को टिकट दिया, जिन्होंने पार्टी के निर्णय को सही साबित करते हुए खेलसाय को एक लाख से अधिक मतों से पराजित किया. लेकिन भाजपा ने 2009 में नंद कुमार साय की जगह मुरारी लाल सिंग को टिकट दिया, जिन्होंने कांग्रेस के भानुप्रपात सिंह को डेढ़ लाख से ज्यादा मतों के अंतर से पराजित किया. लेकिन 2013 में मुरारी लाल के निधन के बाद भाजपा ने कमलभान सिंह मराबी को अपना प्रत्याशी बनाया, जिन्होंने कांग्रेस के राम देव राम को 1 लाख 47 हजार मतों के अंतर से पराजित कर भाजपा के इस गढ़ को अपराजेय बनाए रखा.

भाजपा से रेणुका तो कांग्रेस से खेलसाय मैदान में

आदिवासी बाहुल्य सरगुजा लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की 8 सीटें हैं, जिनमें प्रेमनगर, भटगांव, प्रतापपुर (सु.), रामानुजगंज (सु.), सामरी (सु.), लुंड्रा (सु.), अंबिकापुर और सीतापुर (सु.) शामिल हैं. 2018 के सुनामी में इन सभी आठों सीट पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया. वहीं भारतीय जनता पार्टी ने प्रत्याशी बदलने की परंपरा को कायम रखते हुए कमलभान सिंह के स्थान पर पूर्व विधायक रेणुका सिंह को प्रत्याशी बनाया है, वहीं कांग्रेस ने एक बार फिर से अपने वरिष्ठ नेता खेलसाय सिंह पर फिर से भरोसा जताया है. अब जनता की बारी है कि वह इनमें से किसको अपना प्रतिनिधि चुनती है.