दिपू चंद्र दास और अमृत मंडल की नृशंस मॉब लिंचिंग की घटनाओं ने बांग्लादेश में रह रहे हिंदू समुदाय को गहरे सदमे और भय में डाल दिया है। देश के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले हिंदुओं का कहना है कि वे लगातार हिंसा और असुरक्षा के माहौल में जीवन बिता रहे हैं।समुदाय के लोगों के मुताबिक, हालात ऐसे बन गए हैं कि अब उनके पास भारत से मदद की गुहार लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। गुरुवार को यह चिंता और बढ़ गई, जब बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के नेता तारिक रहमान के समर्थन में उभरी राजनीतिक गतिविधियों ने अल्पसंख्यकों की आशंकाओं को और गहरा कर दिया। हिंदू समुदाय का कहना है कि तारिक रहमान को कट्टरपंथी रुख के लिए जाना जाता है, जिससे उनके भविष्य को लेकर डर और असुरक्षा की भावना बढ़ रही है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, रंगपुर, ढाका, चित्तागांग और मयमनसिंह में रहने वाले हिंदुओं के बीच डर का माहौल सबसे ज्यादा देखा जा रहा है। इन इलाकों में अल्पसंख्यक समुदाय खुद को लगातार असुरक्षित महसूस कर रहा है। रंगपुर के 52 वर्षीय एक हिंदू निवासी ने एक अंग्रेज़ी अख़बार से बातचीत में कहा, “हमें रोज़ अपने धर्म को लेकर अपमान सहना पड़ता है, लेकिन हम विरोध करने की हिम्मत नहीं कर सकते। सड़क पर मिलने वाले ताने कभी भी भीड़ की हिंसा में बदल सकते हैं। हमें डर है कि कहीं हमारा अंजाम भी दिपू या अमृत जैसा न हो जाए। हम फंसे हुए हैं और हमारे पास जाने के लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं है।”

उनका कहना है कि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के सत्ता में आने की आशंका ही सबसे बड़ा डर है, क्योंकि इस पार्टी को अल्पसंख्यकों के प्रति शत्रुतापूर्ण रुख के लिए जाना जाता है। एक हिंदू नागरिक ने कहा, “हम भारत जाना चाहते हैं, लेकिन सीमाओं पर कड़ा पहरा है, जिससे निकल पाना मुश्किल है।” ढाका में रहने वाले एक अन्य हिंदू निवासी ने कहा, “दिपू दास की लिंचिंग ने पहले ही हमें डरा दिया था। अब पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान की वापसी ने हमारी चिंताओं को और बढ़ा दिया है। अगर BNP सत्ता में आई, तो हमारे लिए हालात और ज्यादा खराब हो सकते हैं। शेख हसीना की अवामी लीग ही अब तक हमारे लिए एकमात्र ढाल थी।”

भारत में बसे शरणार्थी तक पहुंची चिंता की लहर

बांग्लादेश में हिंदुओं पर बढ़ती हिंसा और असुरक्षा की यह पीड़ा भारत के महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ तक महसूस की जा रही है। महाराष्ट्र के गढ़चिरोली और चंद्रपुर तथा छत्तीसगढ़ के पाखांजूर जैसे इलाकों में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए बड़ी संख्या में हिंदू शरणार्थी बसे हुए हैं, जो वहां की स्थिति पर गहरी चिंता जता रहे हैं। निखिल बंगला समन्वय समिति के अध्यक्ष डॉ. सुभोध बिस्वास ने कहा, “अब हिंदू संगठनों को केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि ठोस कदम उठाने होंगे। संकट की इस घड़ी में बांग्लादेश के हिंदू सिर्फ भारत पर ही भरोसा कर सकते हैं। वहां लोग मारे जा रहे हैं, लेकिन सीमाएं बंद हैं।” उन्होंने बताया कि इस मुद्दे को लेकर सीमा पर विरोध प्रदर्शन की योजना भी बनाई जा रही है, ताकि बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति पर ध्यान आकर्षित किया जा सके।

2.5 करोड़ से अधिक हिंदू

सनातन जागरण मंच के एक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “बांग्लादेश में करीब 2.5 करोड़ हिंदू रहते हैं। यह कोई छोटी आबादी नहीं है, लेकिन भारत में हिंदू संगठन फिलहाल सिर्फ औपचारिकता निभाते नजर आ रहे हैं। हालात जिस दिशा में जा रहे हैं, वह एक संभावित नरसंहार की ओर इशारा करते हैं।” वहीं, मयमनसिंह के एक हिंदू निवासी ने स्पष्ट किया कि सीमा खोलने की मांग का मतलब सामूहिक पलायन नहीं है, बल्कि हिंसा से बचने का एक मानवीय विकल्प होना चाहिए। उन्होंने कहा, “अगर भारत की सीमाएं खुलें, तो कम से कम हमें यह भरोसा रहेगा कि जान बचाने का कोई रास्ता मौजूद है।”

ढाका में रहने वाले 40 वर्षीय एक हिंदू नागरिक ने कहा, “हमारे लिए रोज़ी-रोटी सबसे बड़ी जरूरत है। भारत जाना या भागना अनिश्चित भविष्य की ओर कदम बढ़ाने जैसा है। हालात इतने संवेदनशील हो गए हैं कि अगर कोई हिंदू प्रतीक पहन लिया जाए, तो लोग बिना हिचक ‘भारतीय एजेंट’ कहने लगते हैं।”

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