पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद . छत्तीसगढ़ की राजधानी से महज 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गरियाबंद जिला. जिला मुख्यालय से 3 किलोमीटर की दूरी पर बसे ग्राम मरौदा के जंगलों में प्राकृतिक शिवलिंग भूतेश्वर महादेव स्थित है. पूरे विश्व में इसकी ख्याति हर वर्ष बढ़ने वाली इसकी ऊंचाई के लिए फैली हुई है. अर्धनारीश्वर इस शिवलिंग को भकुर्रा महादेव भी कहा जाता है.

भूतेश्वर महादेव के पुजारी रामांधार का कहना है कि हर वर्ष सावन मास में दूर-दराज से कांवड़िये (भक्त) भूतेश्वर महादेव की पूजा-अर्चना करने आते हैं. उन्होंने बताया कि हर साल महाशिवरात्रि पर भूतेश्वर महादेव की ऊंचाई नापी जाती है. Read More – सावन में अपने भी छोड़ दिया है नॉनवेज, तो ये सब खा कर Body को दें पर्याप्त प्रोटीन …

वहीं 25 साल से भूतेश्वर महादेव संचालन समिति से जुड़े मनोहर लाल देवांगन ने बताया कि भूतेश्वर महादेव को भकुर्रा महादेव भी कहते हैं. यह संभवत: विश्व का पहला ऐसा शिवलिंग है, जिसकी ऊंचाई हर साल बढ़ती है. 17 गांवों की समिति मिलकर सेवा कार्यों का संचालन करती है.

भूतेश्वर महादेव की ऊंचाई का विवरण 1952 में प्रकाशित कल्याण तीर्थांक के पृष्ठ क्रमांक 408 पर मिलता है. जहां इसकी ऊंचाई 35 फीट और व्यास 150 फीट उल्लेखित है. 1978 में इसकी ऊंचाई 40 फीट बताई गई. 1987 में 55 फीट और 1994 में फिर से थेडोलाइट मशीन से नाप करने पर 62 फीट और उसका व्यास 290 फीट मिला. वहीं वर्तमान में इस शिवलिंग की ऊंचाई 80 फीट बताई जा रही है. Read More – Mansoon Special Recipes : बरसात के इस मौसम में शाम को करे कुछ क्रंची खाने का मन, तो घर पर Try करें ये डिश …

छत्तीसगढ़ इतिहास के जानकार डा. दीपक शर्मा का कहना है कि शिवलिंग पर कभी छूरा क्षेत्र के जमींदार हाथी पर चढ़कर अभिषेक किया करते थे. शिवलिंग पर एक हल्की सी दरार भी है जिसे कई लोग इसे अर्धनारीश्वर का स्वरूप भी मानते हैं. मंदिर परिसर में छोटे-छोटे मंदिर बना दिए गए हैं.

यहाँ पर नंदी के भकुर्रने की आवाज आती थी इसलिए ही नाम भकुर्रा पड़ा आजादी के पहले तक यहां घने जंगल हुआ करता था. चरवाहा गाय चराने आते थे, महज 3 फिट ऊंची एक शिवालय नुमा पत्थर के रूप में इसकी पहचान थी, लेकिन गौ वंश इस चमत्कारिक पत्थर के इर्द मंडराते थे. इस जंगल में सांड के भकुर्रेने यानी रंभाने की आवाज आती थी. लिंग जब बढ़ने लगा तो इसके प्रताप का पता चला. आवाज जो आती थी उसे नंदी के भकूर्रन माना गया. तब से इसका नाम भकुर्रा महादेव के रूप में प्रचलित हुआ.

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