नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में चुनाव से पहले रेवड़ी कल्चर को खत्म करने में सख्ती दिखाई है. कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि यह गंभीर मामला है. चुनाव आयोग और सरकार इसे टाल नहीं सकते और यह नहीं कह सकते कि वे कुछ नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार और चुनाव आयोग को इस पर रोक लगाने पर विचार करना चाहिए.

बता दें कि देश भर में चुनाव से पहले लगभग हर राजनीतिक दल जनता को अपने पक्ष में करने के लिए कई लोकलुभावन घोषणाएं करता है. खासकर सब कुछ फ्री में बांटने का चलन शुरू हो गया है. इसे आम भाषा में ‘रेवड़ी कल्चर’ कहते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने फ्री बी यानी ‘रेवाड़ी कल्चर’ से निपटने के लिए एक विशेषज्ञ निकाय के गठन की वकालत की. कोर्ट ने कहा कि इसमें केंद्र, विपक्षी राजनीतिक दलों, चुनाव आयोग, नीति आयोग, आरबीआई और अन्य हितधारकों को शामिल किया जाना चाहिए. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निकाय में मुफ्त उपहार पाने वालों और इसका विरोध करने वालों को शामिल किया जाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह मुद्दा सीधे तौर पर देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है. इस मामले को लेकर एक सप्ताह के भीतर ऐसी विशेषज्ञ संस्था बनाने का प्रस्ताव मांगा गया है. अब इस जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 11 अगस्त को होगी.

सुप्रीम कोर्ट में वोट देकर सरकार बनाने के एवज में जनता को मुफ्त में सामान देने का वादा करने वाले पक्षों के खिलाफ कार्रवाई की याचिका पर याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि देश कैसे बढ़ता है, राज्य और जनता पर बोझ. सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इससे मतदाता की अपनी राय हिलती है. ऐसी प्रवृत्ति के साथ हम आर्थिक विनाश की ओर बढ़ रहे हैं.

चुनाव में स्वतंत्र घोषणा के वादे के खिलाफ अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर केंद्र सरकार के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सैद्धांतिक तौर पर हम इस याचिका का समर्थन करते हैं. मुफ्त देना अर्थव्यवस्था के लिए खतरा है.

आपको बता दें कि इस साल जनवरी में चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने इस मामले पर केंद्र और चुनाव आयोग दोनों से जवाब मांगा था.

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