सुप्रीम कोर्ट ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ घोटाले पर गंभीर चिंता व्यक्त की है, जहां धोखेबाज फर्जी अदालती आदेशों और न्यायिक प्राधिकरण का दुरुपयोग कर नागरिकों को ठग रहे हैं. कोर्ट ने 1.5 करोड़ रुपये की ठगी के एक मामले के बाद केंद्र, CBI और हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने मामले मे सुनवाई करते हुए कहा कि, यह धोखाधड़ी न्यायपालिका पर जनता के विश्वास को कमजोर कर रही है.

बुजुर्ग दंपत्ति ने खोई जीवनभर की कमाई

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, सीबीआई, हरियाणा सरकार और अंबाला साइबर यूनिट को नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक प्राधिकार का बेशर्मी से आपराधिक दुरुपयोग गंभीर चिंता का विषय है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह स्वतः संज्ञान 21 सितंबर को प्राप्त एक शिकायत के आधार पर लिया गया है, जो एक वरिष्ठ नागरिक दंपत्ति की ओर से है, जिनकी जीवन भर की बचत 1 से 16 सितंबर के बीच डिजिटल गिरफ्तारी घोटाले के माध्यम से ठगी गई है.

क्या है पूरा मामला ?

पीड़ितों ने कहा है कि उनसे सीबीआई, आईबी, न्यायिक अधिकारियों के रूप में वीडियो कॉल और टेलीफोन के माध्यम से संपर्क किया गया था. धोखेबाजों ने व्हाट्सएप और वीडियो कॉल के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के जाली आदेश दिखाए. उन जाली दस्तावेजों की गिरफ्तारी की धमकी के तहत उन्हें कई बैंक लेनदेन के माध्यम से 1.5 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने के लिए मजबूर किया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने जाहिर की चिंता

कोर्ट ने कहा कि शिकायतों से पता चला है कि साइबर अपराध शाखा अंबाला में 2 एफआईआर दर्ज की गई हैं, जो वरिष्ठ नागरिकों को निशाना बनाकर संगठित आपराधिक गतिविधियों के एक पैटर्न का संकेत देती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि आमतौर पर हम राज्य पुलिस को जांच में तेजी लाने और उसे तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाने का निर्देश देते है.

हालांकि हम इस बात से स्तब्ध हैं कि धोखेबाजों ने सुप्रीम कोर्ट के नाम पर कई न्यायिक आदेश गढ़े हैं, जिनमें 1 सितंबर का एक जब्ती आदेश भी शामिल है, जो कथित तौर पर पीएमएलए के तहत जारी किया गया था, जिस पर न्यायाधीश, प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी और अदालती मुहर के जाली हस्ताक्षर भी लगे हैं. बॉम्बे हाईकोर्ट में विभिन्न फर्जी कार्यवाहियां और सीबीआई व ईडी द्वारा जांच के झूठे दावे सामने आए हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दस्तावेजों की जालसाजी और इस न्यायालय तथा हाईकोर्ट के नाम, मुहर और न्यायिक प्राधिकार का बेशर्मी से आपराधिक दुरुपयोग गंभीर चिंता का विषय है. न्यायाधीशों के फर्जी हस्ताक्षरों वाले न्यायिक आदेश न्यायपालिका पर जन विश्वास प्रणाली की नींव पर प्रहार करते हैं. ऐसे गंभीर आपराधिक कृत्यों को धोखाधड़ी या साइबर अपराध के व्यवस्थित या नियमित अपराध के रूप में नहीं माना जा सकता है. यह मामला कोई अकेला मामला नहीं है. मीडिया में कई बार यह खबर छपी है कि देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसी घटनाएं हुई हैं. इसलिए केंद्र और राज्य पुलिस के समन्वित प्रयास से अखिल भारतीय स्तर पर कड़ी कार्रवाई आवश्यक है. हम निम्नलिखित को नोटिस जारी करते हैं:

  • गृह मंत्रालय सचिव के माध्यम से भारत सरकार को
  • सीबीआई अपने निदेशक के माध्यम से
  • हरियाणा सरकार
  • साइबर अपराध विभाग, अंबाला

जिस तरह से ऐसे अपराध किए जा रहे हैं, उसे देखते हुए हम अटॉर्नी जनरल से अनुरोध करते हैं कि वे न्यायालय की सहायता करें. रजिस्ट्री को प्राप्त शिकायतों और दस्तावेजों का एक सेट नोटिस प्राप्तकर्ताओं को भेजने का निर्देश दिया जाता है. हरियाणा राज्य और पुलिस अधीक्षक, साइबर अपराध, अंबाला को अब तक की गई. जांच की स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है.

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