नये वक्फ कानून के खिलाफ लगी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (16 अप्रैल) से सुनवाई शुरू हो गई है. केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन कानून के खिलाफपहले दिन दो घंटे सुनवाई हुई. शीर्ष न्यायालय ने फिलहाल कानून पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इन पर केंद्र से जवाब मांगा है. देश के शीर्ष न्यायालय ने एक तरफ, जहां वक्फ बोर्ड मैं गैर-मुस्लिम की एंट्री पर ऐतराज जताया. वहीं दूसरी तरफ बंगाल हिंसा पर भी चिंता जताई. इस पर SG ने कहा कि ऐसा नहीं लगना चाहिए कि हिंसा का इस्तेमाल दबाव डालने के लिए किया जा सकता है.
‘यह धार्मिक मामलों में दखल’
सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने तर्क प्रस्तुत किया कि यह धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप है. उन्होंने बताया कि विधान धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार प्रदान करता है और नए कानून की कमियों को उजागर किया. इस बीच, CJI ने याचिकाकर्ताओं से उनके मुख्य तर्क के बारे में पूछा, जिस पर कपिल सिब्बल ने उत्तर दिया कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है. कपिल सिब्बल ने प्रश्न उठाया कि राज्य (सरकार) यह कैसे निर्धारित कर सकता है कि मुस्लिमों के बीच संपत्ति का बंटवारा (विरासत) किस प्रकार होगा. इस पर मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने उन्हें रोकते हुए स्पष्ट किया कि हिंदुओं के मामले में भी संपत्ति की विरासत संसद द्वारा बनाए गए हिंदू उत्तराधिकार कानून के अनुसार निर्धारित होती है.
‘मुस्लिमों के मौलिक अधिकारों का हनन है’
सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने बताया कि पहले वक्फ काउंसिल और बोर्ड में केवल मुस्लिम सदस्य होते थे, लेकिन हाल के संशोधन के बाद हिंदू भी इसमें शामिल हो सकते हैं. यह संसद द्वारा बनाए गए कानून के माध्यम से मुस्लिमों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि इसमें केवल 20 गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रावधान है.
चीफ जस्टिस ने स्पष्ट किया कि केवल 2 पदेन सदस्य ही गैर-मुसलमान हो सकते हैं. इस पर कपिल सिब्बल ने विरोध करते हुए कहा कि यह सही नहीं है. उन्होंने बताया कि न्यूनतम गैर-मुस्लिम पदेन सदस्यों की संख्या 2 रखी जाएगी, जबकि आर्टिकल 26 के अनुसार सभी सदस्य मुसलमान होने चाहिए. नए कानून के अनुसार, 22 में से केवल 10 सदस्य मुसलमान होंगे. सिब्बल ने यह भी कहा कि यह सदस्यों को मनोनीत करके वक्फ बोर्ड पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास है. उन्होंने 1995 के वक्फ ऐक्ट का उल्लेख करते हुए कहा कि उस समय यह तय किया गया था कि बोर्ड के सभी सदस्य मुस्लिम होंगे. इसके अलावा, कपिल सिब्बल ने वक्फ बोर्ड के संबंध में कलेक्टर की शक्तियों पर भी सवाल उठाए.
300 साल पुरानी संपत्ति की भी मांगेंगे वक्फ डीड, कहां से लाएंगे?
सीनियर वकील ने बताया कि नए कानून के अनुसार, किसी संपत्ति को वक्फ तभी माना जाएगा जब उसकी वक्फ डीड मौजूद हो. इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा कि समस्या क्या है? सिब्बल ने स्पष्ट किया कि वक्फ बाई यूजर की अवधारणा है. उदाहरण के लिए, यदि मेरे पास संपत्ति है और मेरी कोई संतान नहीं है, तो मुझे रजिस्ट्रेशन कराने की आवश्यकता क्यों होगी? इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि रजिस्ट्रेशन से सहायता मिलेगी. सिब्बल ने उत्तर दिया कि वक्फ बाई यूजर की अवधारणा अब समाप्त कर दी गई है, जैसा कि अयोध्या के फैसले से स्पष्ट होता है. जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि फर्जी दावों को रोकने के लिए वक्फ डीड की आवश्यकता बताई गई है. सिब्बल ने फिर कहा कि यह प्रक्रिया इतनी सरल नहीं है, क्योंकि वक्फ की संपत्तियां सैकड़ों साल पुरानी हैं, और वे 300 साल पुरानी संपत्ति के लिए भी वक्फ डीड की मांग कर सकते हैं. यही असली समस्या है.
कलेक्टर की भूमिका पर भी उठाए सवाल
सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने यह स्पष्ट किया कि अब कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया है कि वह निर्धारित करेगा कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं. यदि इस पर विवाद उत्पन्न होता है, तो कलेक्टर स्वयं सरकार का प्रतिनिधि होते हैं और इस स्थिति में वह अपने मामले में “जज” की भूमिका निभाते हैं, जो संविधान के विपरीत है. नए कानून के अनुसार, जब तक कलेक्टर यह निर्णय नहीं लेते, तब तक किसी भी संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा. सिब्बल ने यह भी उल्लेख किया कि यदि कोई इमारत या स्थल पहले से स्मारक के रूप में घोषित है, तो उसे वक्फ के रूप में मान्यता देना अनुचित है, और ऐसा करने पर वह घोषणा अवैध मानी जानी चाहिए.
चीफ जस्टिस (CJI) संजीव खन्ना ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनके अनुसार यह स्थिति कपिल सिब्बल के पक्ष में प्रतीत होती है. यदि कोई स्थान पहले से वक्फ के रूप में घोषित किया गया है और बाद में उसे प्राचीन स्मारक के रूप में मान्यता दी गई है, तो वह स्थान वक्फ के रूप में ही माना जाएगा. हालांकि, यदि वह स्थान पहले से स्मारक है और बाद में उसे वक्फ के रूप में घोषित किया गया है, तो इस पर आपत्ति उठाई जानी चाहिए.
कपिल सिब्बल ने वक्फ प्रबंधन अधिनियम के सेक्शन 3R का उल्लेख करते हुए एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया. उन्होंने स्पष्ट किया कि इस प्रावधान के अनुसार, वक्फ का अर्थ है किसी व्यक्ति द्वारा किया गया स्थायी समर्पण, जो इस्लाम धर्म का पालन पिछले 5 वर्षों से कर रहा हो. सिब्बल ने यह भी कहा कि इसका तात्पर्य यह है कि उस व्यक्ति को यह प्रमाणित करना होगा कि वह पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का अनुसरण कर रहा है, लेकिन राज्य सरकार को यह निर्णय लेने का अधिकार क्यों और कैसे होना चाहिए कि कोई व्यक्ति मुस्लिम है या नहीं.
कपिल सिब्बल ने यह प्रश्न उठाया कि राज्य सरकार में ऐसा कौन है जो यह स्पष्ट कर सके कि इस्लाम धर्म में विरासत का अधिकार किसके पास होगा. इस पर मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने उन्हें बीच में ही रोका और कहा कि हिंदू धर्म में इस तरह की व्यवस्था होती है, इसलिए संसद ने मुस्लिमों के लिए विशेष कानून बनाया है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कानून हिंदू धर्म के समान नहीं हो सकता, लेकिन संविधान का अनुच्छेद इस संदर्भ में कानून बनाने पर कोई रोक नहीं लगाता. मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि अनुच्छेद 26 सर्वभौमिक और धर्मनिरपेक्ष है, क्योंकि यह सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होता है.
याचिकाओं में यह आरोप लगाया गया है कि वक्फ कानून में किया गया संशोधन असंवैधानिक है, जो मुस्लिम समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण है और सरकार को मनमाने निर्णय लेने का अधिकार प्रदान करता है. इस कारण से, इस अधिनियम को रद्द करने और इसके कार्यान्वयन पर रोक लगाने की मांग की गई है. कांग्रेस, जेडीयू, आम आदमी पार्टी, डीएमके, और सीपीआई जैसी राजनीतिक पार्टियों ने भी इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इसके अतिरिक्त, जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कुछ गैर-सरकारी संगठनों ने भी इस कानून के संशोधन के खिलाफ आवाज उठाई है. कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद सहित कई याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से सुप्रीम कोर्ट में उपस्थित हुए हैं, जबकि असदुद्दीन ओवैसी भी कार्यवाही का अवलोकन करने पहुंचे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा ये सवाल
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून पर सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा कि 1995 में स्थापित सेंट्रल वक्फ काउंसिल में सभी सदस्य मुस्लिम थे. जैसे हिंदू या सिख धार्मिक बोर्ड में केवल संबंधित धर्म के लोग होते हैं, उसी प्रकार पहले वक्फ बोर्ड में भी केवल मुस्लिम सदस्य होते थे. हालाँकि, नए संशोधित कानून में कुछ “विशेष सदस्य” के रूप में गैर-मुस्लिमों को शामिल किया गया है, जो मुसलमानों के अधिकारों का उल्लंघन करता है.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह निर्णय लिया है कि वह केंद्र सरकार से यह स्पष्टता मांगेगी कि वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों की संख्या न्यूनतम दो निर्धारित की गई है या अधिकतम दो सदस्यों तक सीमित है.
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