सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) में आज आवारा कुत्तों (Stray Dogs) से संबंधित मामले की सुनवाई की. इस मामले की विशेष बेंच, जिसमें जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि नसबंदी से रेबीज की समस्या का समाधान नहीं होता और आवारा कुत्तों के कारण बच्चों को बाहर खेलने की अनुमति नहीं दी जा सकती. उन्होंने स्पष्ट किया कि यह उनका व्यक्तिगत विचार है, न कि सरकार का, और इस मुद्दे का कोई समाधान निकालना आवश्यक है.
दिल्ली सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कुत्तों के हमलों के कारण बच्चे जान गंवा रहे हैं. नसबंदी के बावजूद कुत्तों के काटने की घटनाएं जारी हैं, और देश में इस प्रकार के कई चिंताजनक मामले सामने आए हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी जानवरों से नफरत नहीं करता, लेकिन सुरक्षा की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है.
सॉलिसिटर जनरल ने अदालत में अपनी दलील पेश करते हुए कहा कि कोई भी कुत्तों को मारने की बात नहीं कर रहा है, बल्कि हमारा उद्देश्य उन्हें मानव आबादी से अलग रखना है. इस स्थिति के कारण लोग अपने बच्चों को बाहर भेजने में hesitant हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि केवल नियमों से इस समस्या का समाधान नहीं होगा, और अदालत को इस मामले में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है.
उन्होंने बताया कि किसी भी देश में दो प्रकार के पक्ष होते हैं. एक पक्ष वह है जो बहुमत में होता है और अपनी बात को खुलकर रखता है, जबकि दूसरा पक्ष चुपचाप सहन करता है. लेकिन यहां एक विशेष स्थिति है, जहां एक मुखर अल्पसंख्यक है, जो पहले चिकन का सेवन करता था और अब पशु प्रेमी बन गया है.
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि अदालत के निर्देश में यह स्पष्ट किया गया है कि नसबंदी के बाद कुत्तों को छोड़ने की अनुमति नहीं होगी. ऐसे में सवाल उठता है कि इन कुत्तों का क्या होगा? यह नियमों के खिलाफ है और इसे रोकना चाहिए. यदि बड़ी संख्या में कुत्तों को एक ही शेल्टर में रखा गया, तो वे एक-दूसरे पर हमला कर सकते हैं, जिससे मानवों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
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