अखिलेश बिल्लौरे/हरदा। जिले में 21 दिसंबर को प्रस्तावित करणी सेना के “जन क्रांति न्याय आंदोलन” ने अब नया मोड़ ले लिया है। करणी सेना यह महा आंदोलन अपनी 21 सूत्रीय मांगों को लेकर कर रही है। संगठन का कहना है कि विगत 12 और 13 जुलाई को करणी सैनिकों पर प्रशासन द्वारा किया गया लाठीचार्ज न केवल अनुचित था बल्कि बर्बरता की श्रेणी में आता है। इसी घटना के विरोध और न्याय की मांग को लेकर करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीवन सिंह शेरपुर के नेतृत्व में लाखों की संख्या में करणी सैनिक हरदा स्टेडियम में जुटने का दावा कर रहे हैं।

लेकिन अब इस आंदोलन में एक नया विवाद सामने आ गया है। एससी/एसटी संघ, भीम आर्मी, जयस तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय से जुड़े राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन करणी सेना की 21 सूत्री मांगों में शामिल चार मांगों का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। इन संगठनों का कहना है कि ये मांगें एससी/एसटी एक्ट, आरक्षण व्यवस्था और सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं।

इन संगठनों का स्पष्ट आरोप है कि करणी सेना प्रशासनिक कार्रवाई के नाम पर ऐसे मुद्दों को उठा रही है, जिनसे समाज में वर्ग विशेष के खिलाफ वातावरण बन सकता है और इससे जिले की शांति व्यवस्था प्रभावित होने की आशंका है। भीम आर्मी और जयस नेताओं का कहना है कि यदि लाठीचार्ज हुआ है तो उसकी लड़ाई प्रशासन से होनी चाहिए, न कि संवैधानिक कानूनों और अधिकारों को निशाना बनाकर।

दूसरी ओर करणी सेना का कहना है कि उनके आंदोलन का उद्देश्य केवल न्याय पाना है और किसी भी समाज या वर्ग के खिलाफ वे नहीं हैं। हालांकि दोनों पक्षों के बीच बढ़ता तनाव प्रशासन के लिए चुनौती बनता जा रहा है।

अब बड़ा सवाल यही है कि क्या 21 दिसंबर का यह महा आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न होगा या फिर विरोध और प्रतिरोध की यह राजनीति जिले के सामाजिक सौहार्द पर असर डालेगी। प्रशासन की भूमिका इस पूरे घटनाक्रम में सबसे अहम मानी जा रही है।

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