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पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ का गरियाबंद जिला करप्शन का हब बनते जा रहा है. आए दिन यहां से करप्शन के पन्ने खुल रहे हैं. कभी पंचायत में घोटाला तो कभी शिक्षा विभाग में तो कभी अन्य विभागों में करप्शन की इबारत लिखी गई है, जो किसी से छुपा नहीं है. अब नया कारनामा शिक्षा विभाग का आया है, जहां बेखौफ गड़बड़ियां की गई हैं. निर्माण, खरीदी और मरम्मत के नाम पर सालाना 1 करोड़ खर्च के बावजूद 80 छात्रावास और आश्रम में भारी कमियों के बीच आदिवासी छात्र छात्राएं भविष्य गढ़ रहे हैं. बेटियों के शौचालय का दरवाजा टूटा हुआ है, तो कहीं सोने के लिए पर्याप्त बिस्तर भी नहीं. जर्जर छत भी दुर्घटना को न्यौता दे रहा. ये हम नहीं, नोडल अफसरों की जांच रिपोर्ट बता रही है.
आदिवासी विकास विभाग किस तरह आदिवासियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है. उसके अधीन सन्चालित आदिवासी छात्रावास और आश्रम की दुर्दशा ये बताने के लिए काफी है. जिले भर में 80 आवासीय संस्थाएं इस विभाग के अधीन सन्चालित हैं. जहां आदिवासी और जनजाति समुदाय के 2 हजार 638 बालक और 1 हजार 726 बेटियां घर छोड़ कर पढाई कर रही हैं. संस्थाओं के हाल जानने कलेक्टर प्रभात मलिक ने जिले के शीर्ष 25 अफसरों को संस्थान के निरीक्षण के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किया है. महिला अफसर भी इसमे शामिल थीं.
सभी ने 28 अगस्त से 2 सितम्बर तक अलग अलग संस्थान का निरीक्षण कर रिपोर्ट प्रसाशन को सौंप दिया है. अफसरों की रिपोर्ट में 95 फीसदी संस्थानों में कमियां और खामियां पाई गई हैं. फिंगेश्वर, पीपरछेड़ी समेत 4 से ज्यादा कन्या छात्रावास शौचालय का दरवाजा टूटा हुआ है. नागिन बहरा के छात्रावास में सेफ्टिक टैंक की आवश्यकता है. आमामोरा छात्रावास में दरारें पड़ चुकी हैं. स्लैब को ईंटों का टेम्पररी दीवार का सहारा दिया गया है.
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मैनपुर, दर्रीपारा, लिटीपारा, छुरा, पीपरछेड़ी जैसे 20 से ज्यादा छात्रावास में दीवार टूट कर गिरने की आशंका बनी हुई है. अफसरों ने यंहा तत्काल मरम्मत की आवश्यकता बताई है. मैनपुर में संचालित छात्रावासों में बिस्तर गद्दा कमी दर्शाया गया है. इसके अलावा बिजली, पानी और लाइट जैसी समस्याओं का भी नोडल अफसरों ने अपने रिपोर्ट में जिक्र किया है.
उपस्थिति में फर्जीवाड़ा, लाखों का चूना –
तत्कालीन अपर कलक्टर जेआर चौरसिया ने प्री मैट्रिक बालक छात्रावास के निरीक्षण के जिक्र करते हुए अपने रिपोर्ट में बताया है कि उपस्थिति में पंजीयन में यहां 50 की संख्या दर्ज थी, जबकि 24 ही उपस्थित थे. यंहा के ही 100 सीटर बालक आश्रम में 55 दर्ज थे, लेकिन 30 बच्चे ही नियमित आ रहे थे. प्रति छात्र मासिक 1 हजार सरकार देती है.
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अफसर के जांच में उपस्थिति के नाम पर फर्जीवाड़ा भी उजागर हुआ है. ऐसे में इस विभाग के अफसर के मासिक निरिक्षण की भी कलई खुल गई है. सूत्रों का दावा है कि जंगल के अंदुरनी और दुरस्त इलाकों में मौजूद आश्रम छात्रावास में इसी तरह उपस्थिति बढ़ा कर विभागीय मिलीभगत से प्रत्येक माह लाखों की हेराफेरी की जा रही है.
हर साल 1 करोड़ का बजट सुविधा के लिए
आदिवासी विकास विभाग में जनजाति व आदिवासियों के नाम पर बनी योजनाओ में बंदरबांट के पहले भी कई मामले उजागर हो चुके हैं. रिकॉर्ड के मुताबिक भारी भरकम बजट के बीच आदिवासी विकास विभाग को आश्रम छात्रावास के रखरखाव, मरम्मत और जरूरत की सामग्री खरीदी के लिए प्रत्येक वर्ष 1 करोड़ मिल रहा है. बावजूद संस्थानों की स्थिति सही नहीं है.
बताया जा रहा है कि वर्ष 2019 के मद में कोरोना काल के बावजूद भारी मरम्मत और खरीदी के नाम पर 66 लाख रुपये का गोलामाल किया गया है. मामले की जानकारी के लिए कई लोगों ने आरटीआई भी लगाया गया है. इस बजट के अलावा 80 संस्थान में दर्ज कुल 4364 छात्रों के एवज में प्रति माह 1 हजार के दर पर खान पान के लिए 43 लाख 64 हजार प्रति माह अधीक्षक के खाते में डाला जा रहा है. नाम न छापने के शर्त पर जांच में शामिल कुछ अफसरों ने बताया है कि दर्ज संख्या के एक तिहाई संख्या फर्जी है. जांच हुई तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे.
सुविधाओं का पूरा ख्याल रखा जाएगा मामले में बात करने विभाग के सहायक आयुक्त बद्रीनाथ सुखदेवे को कॉल और मेसेज किया गया, लेकिन उन्होंने बात नहीं की. मामले में कलेक्टर प्रभात मलिक ने कहा कि शासन के मंशा अनुरूप ही निरीक्षण करवा कर कमियों की जानकारी ली गई है. जरूरत के आधार पर स्टीमेट तैयार करवाया जा रहा है. मनरेगा और अन्य मदों से काम कराया जा रहा है. सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा जाएगा. गड़बड़ियों पर भी जल्द जांच और कार्रवाई होगी.
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