देश के सबसे बड़े कमोडिटी एक्सचेंज MCX (मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया) को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने नियम उल्लंघन का दोषी पाया है. इस मामले में SEBI ने एमसीएक्स पर ₹25 लाख का जुर्माना लगाया है.

यह कार्रवाई 63 Moons Technologies को की गई पेमेंट और उससे जुड़ी गोपनीयता और खुलासे में देरी को लेकर की गई है. सेबी के अनुसार एमसीएक्स ने उन भुगतानों का सही समय पर और पूरी तरह से खुलासा नहीं किया, जबकि वह कंपनी की वित्तीय स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते थे.

क्यों लगा जुर्माना?

SEBI का कहना है कि एमसीएक्स ने LODR (लिस्टिंग ऑब्लिगेशन एंड डिस्क्लोजर रिक्वायरमेंट्स) जैसे महत्वपूर्ण नियमों का पालन नहीं किया. कंपनी ने जिन भुगतानों की जानकारी देनी चाहिए थी, उसे या तो काफी देरी से बताया या फिर अधूरी जानकारी सार्वजनिक की.

63 मून्स टेक्नोलॉजीज को अक्टूबर 2022 से जून 2023 के बीच कुल ₹222 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया, जो एमसीएक्स के FY22 के नेट प्रॉफिट से लगभग दोगुनी राशि है. इसके बावजूद कंपनी ने यह सूचना जनवरी 2023 तक भी नहीं साझा की थी.

भुगतान की टाइमलाइन और डिटेल

सेबी की रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर से दिसंबर 2020 के दौरान ₹60 करोड़, और जनवरी 2023 से जून 2023 तक हर तिमाही में ₹81 करोड़ के भुगतान किए गए. ये सारी रकम एमसीएक्स ने 63 मून्स टेक्नोलॉजीज को अपने ट्रेडिंग और क्लीयरिंग सिस्टम की सर्विस एक्सटेंशन के तहत दी थी, लेकिन इसका सार्वजनिक खुलासा नहीं किया गया.

SEBI का आदेश: 45 दिन में चुकाएं जुर्माना

SEBI ने एमसीएक्स को ₹25 लाख का दंड 45 दिनों के भीतर चुकाने का निर्देश दिया है. आदेश में बताया गया है कि कंपनी द्वारा प्रेस रिलीज में सिर्फ यह बताया गया था कि 63 मून्स के साथ ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म की सेवाएं बढ़ाई जा रही हैं, लेकिन भारी-भरकम भुगतानों की जानकारी जानबूझकर छुपाई गई.

TCS से हुआ था अनुबंध, लेकिन देरी पड़ी भारी

एमसीएक्स ने साल 2020 में अपने कमोडिटी डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के लिए Tata Consultancy Services (TCS) से करार किया था, लेकिन प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं हुआ. नतीजतन, कंपनी को मजबूरन 63 मून्स से सेवा जारी रखनी पड़ी – वो भी काफी ऊंची लागत पर. इसी वजह से इन भुगतानों की पारदर्शिता और सार्वजनिक जानकारी और भी जरूरी थी, जो कि नहीं दी गई.

सेबी के अधिकारी का बयान

सेबी के फुल-टाइम सदस्य अश्विनी भाटिया ने अपने आदेश में लिखा कि इतने बड़े पैमाने पर किए गए भुगतानों का न खुलासा करना नियमों का गंभीर उल्लंघन है और इससे निवेशकों को कंपनी की वास्तविक वित्तीय स्थिति का पता नहीं चल पाता.