रेणु अग्रवाल, धार। मध्य प्रदेश के धार जिले में आज ‘नर्मदा साहित्य मंथन’ के दूसरे दिन हेरिटेज वॉक का आयोजन किया गया। जिसमें इस कार्यक्रम में शामिल होने आए अतिथि हेरिटेज वॉक में शामिल हुए। यह हेरिटेज वॉक भोजशाला से प्रारंभ होकर विजय मंदिर तक पहुंची और विजय मंदिर से पुनः भोजशाला पर आकर समाप्त हुई। अतिथियों को यहां के इतिहास से परिचित करवाया गया।
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इन इमारतों के आर्किटेक्ट सरस्वती मंदिर राजाभोज से जुड़ी रोचक कहानियां व विजय स्तम्भ से जुड़ी कहां राजा भोज कहां गांगेय तैलंग जैसी कहावत का भी उल्लेख किया गया। बतादें कि, कई सालों से खुले में विजय स्तम्भ रखा है। लेकिन आज तक इस स्तम्भ पर जंग नहीं लगी। हिन्दू इसे विजय मंदिर कहते है। यह स्तम्भ को राजा भोज ने तेलंग देश के राजा गांगेय पर विजय पताका फहराने के बाद इस स्तम्भ को लगाया था।
भोजशाला हिंदुओं का स्थान
इतिहासकार बताते हैं कि ये इमारत भी राजा भोज ने विजय प्राप्त करने के बाद बनाई थी। हालांकि यह दोनों मॉन्यूमेंट्स ASI के अधीन है। वहीं यहां पर आए अतिथियों ने एक स्वर में इन मॉन्यूमेंट्स को कहा कि यह हिंदुओं का स्थान है। भोज शाला व विजय मंदिर देखने के बाद यह बिल्कुल स्पष्ट है कि, यह भोजशाला हिंदुओं का स्थान है। यह मुसलमान का स्थान नहीं हो सकता। यहां पर एक खंभे पर वराह मूर्ति है जहां पर भगवान हनुमान, भगवान गणेश, भगवान राम लक्ष्मण और सीता हो और वे हवन कुंड हो तो निश्चित रूप से उस स्थान की प्रकृति यह हिंदु स्थान की है।
1947 में भी भोज शाला हिंदू प्रकृति का स्थान था, जो आज भी है। इसलिए यह न्याय युक्त होगा की अदालते जल्दी निर्णय करें। प्रमाण व तथ्य दोनों से यह स्थान हिंदुओं को प्राप्त करा सकेंगे।
‘द केरला स्टोरी’ के लेखक धार के हैं निवासी
केरला स्टोरी के लेखक सूर्यपाल सिंह ने कहा कि, मैं धार से ही हूं। उन्होंने बताया कि, नर्मदा साहित्य समागम मंथन के अंतर्गत आज सुबह 8:00 बजे हेरिटेज वाक रखी गई थी। जो भोजशाला से लेकर विजय मार्तंड मंदिर तक थी। उन्होंने कहा हम संस्कृति को जब तक एक स्थान से दूसरे स्थान से जोड़ते नहीं तब तक काम नहीं चलेगा। उन्होंने कहा मैं चाहूंगा कि हमारे शहर में ही यह परंपरा चले और हर रविवार यह वाक तैयार की जाए। इसमें बच्चों को जोड़ा जाए और स्कूली बच्चों को हर रविवार भोजशाला से विजय मंदिर तक लाया जाए।
उन्होंने कहा, बचपन में हम भोजशाला में आया करते थे। आज मेरी स्मृतियों ताजा हो गई। गर्व की अनुभूति हुई की समृद्ध और विशाल हमारी विरासत है। जिनकी अनदेखी हो रही है। जिनके बारे में हम सोचते नहीं है। वहीं कहावत कहां राजा भोज कहां गंगू तेली पर सूर्य पाल सिंह ने कहा यह एक अपभ्रंशित हुई कहावत है। असल कहावत यह नहीं है कि कहां राजा भोज कहां गांगू तेली यह तो बाद में इस गढ़ दिया असल कहावत यह है कि, ‘कहां राजा भोज कहां गांगेय तेलंग’।
उन्होंने बताया गांगेय तेलंग देश के राजा थे। गांगेय देव को राजा भोज ने हरा था। विजय मंदिर में लोहे का स्तंभ इस विजय का प्रतीक है। राजा भोज ने गांगेय देव को हराकर उस विजय स्तंभ को बनाया था। उन्होंने कहा विजय मंदिर भी इसी विजय का प्रतीक है। कहां राजा भोज कहां गांगेय तेलंग यह कहावत लोगों ने अपभ्रंशित करके इस तरीके से गलत बना डाली है। भविष्य में ऐसे कई साहित्यिक विषय है ऐसे महापुरुष है जिनका खुलकर सामने आना बहुत जरूरी है।
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