Kavach… दो ट्रेनों की एक रेलवे ट्रैक में आमने-सामने आने पर टक्कर रोकने के लिए लगाया जाता है. रेलवे बोर्ड ने देश के कई जोन में कवच लगाने का काम शुरू भी कर दिया है. इससे लोको पायलट की गलती या मानवीय त्रुटि होने पर स्वचालित रूप से ब्रेक लगाकर ट्रेन को सुरक्षित गति सीमा के भीतर रोका जा सकता है. जोन में लदान का नया नया रिकार्ड बनाने के लिए मालगाड़ियों का धड़ल्ले से संचालन किया जा रहा है. इसके बाद भी लदान और कमाई में नंबर वन बिलासपुर जोन कवच सिस्टम से वंचित है. जिसके कारण गतौरा रेल हादसे में बारह लोगों को जान से हाथ धोना पड़ गया. (Kavach technology in Railway)


भारतीय रेलवे ने कवच प्रणाली लगाने का काम शुरू कर दिया है, लेकिन दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे का अभी तक नंबर नहीं लगा है. दक्षिण सेंट्रल रेलवे क्षेत्र में पहले चरण में लगभग 1,465 रोटे किलोमीटर पर कवच सिस्टम लगाई गई थी. साथ ही, कवच 4.0 को मथुरा-कोटा सेक्शन जो कि आबादी और ट्रैफिक हिसाब से व्यस्त दिल्ली-मुम्बई कॉरिडोर रेलवे मार्ग का हिस्सा है. वहां कमीशन कर दिया गया है. इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर पर इसे अन्य उच्च घनत्व वाले मार्गों दिल्ली-हावडा मार्गों पर कार्य प्रगति में है. इसके बाद भी अभी तक बिलासपुर रेलवे जोन का नंबर नहीं आया है. जहां देश में सर्वाधिक लदान देने का प्रतिसाल रिकार्ड बनाया जा रहा है. इसके बाद भी बोर्ड सुध नहीं ले रहा है. (Kavach technology in Railway)
ऐसे काम करता है Kavach सिस्टम
कवच में ट्रेन, ट्रैक और सिग्नल तीनों के बीच संचार होता है. यह रेडियो फिक्वेंसी आईडेंटीफिकेशन (आरएफआईडी) और जीपीएस आधारित तकनीक पर काम करता है. ट्रेनों के इंजन में ऑन-बोर्ड यूनिट लगती है. वहीं पटरियों पर ट्रैकसाइड यूनिट लगती है. आरएफआईडी टैग्स ट्रेन की लोकेशन पहचानने के लिए लगाए जाते है. इसके अलावा सेंट्रल कंट्रोल सिस्टम होता है. अगर दो ट्रेनें आमने-सामने आ रही हों, तो कवच अपने आप ट्रेन को रोक देता है. लाल सिग्नल पार करने से पहले कवच ट्रेन को 1 सेकंड में ऑटोमैटिक ब्रेक लगा देता है. स्पीड लिमिट से अधिक गति होने पर यह स्पीड घटा देता है. साथ ही लोको पायलट को ऑडियो-विजुअल अलर्ट भी देता है.
कवच का इतिहास और विकास क्रम
2012 में रेलवे मंत्रालय ने ट्रेन कॉलसिन एडवॉस सिस्टम (टीसीएएस) पर काम शुरू किया. इसका उद्देश्य ट्रेनों की टक्कर रोकना और ट्रेन नियंत्रण को ऑटोमेटिक बनाना था. 2014-2016 में डीआरएसओ और हैदराबाद की कुछ कंपनियों ने टीसीएएस के प्रोटोटाइप विकसित किए. 2016-2019 में तेलंगाना राज्य के सिकंदराबाद-विकाराबाद और विकाराबादवाडी रेल सेक्शनों पर फील्ड ट्रायल किए गए. 2020 में सिस्टम को आधिकारिक रूप से कवच नाम दिया गया. 2022 में कवच को भारतीय रेलवे में राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की स्वीकृति मिली.
Kavach सिस्टम लगने के लाभ
कवच सिस्टम लगाने के बाद मानवीय भूल से होने वाली रेल दुर्घटनाओं में कमी आएगी. रेल नेटवर्क की ऑटोमैटिक सिग्नलिंग और सेफ्टी मॉनिटरिंग हो सकेगी.

