रायपुर। 14 सितंबर हिंदी दिवस के मौके पर पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस मौके पर हिंदी की दशा और दिशा पर चर्चा हुई. संगोष्ठी में मुख्य अतिथि थे कुलसचिव डॉ. गिरीशकांत पाण्डेय. डॉ. पाण्डेय ने हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, छत्तीसगढ़ी सहित अन्य भाषाओं के इतिहास और विकास पर कहा कि अँग्रेजी भले आज वैश्विक तौर पर स्थापित भाषा बन गई है, लेकिन हिंदी आज बहुत तेजी से आगे बढ़ने वाली भाषा बनी हैं. बीते एक दशक में अनेक माध्यमों से हिंदी का विकास रफ्तार से हुआ है. कई बोलियों को अपने साथ समेटकर जब खड़ी बोली से हिंदी देश की राज-काज और संपर्क भाषा बनी, तो आज बदलते स्वरूपों में वह देश के दक्षिण हिस्से में विस्तारित होने के साथ दुनिया के अन्य हिस्सों में बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है. उन्होंने यह भी कहा, कि हिंदी के साथ-साथ हमें अपनी मातृभाषाओं के विकास पर भी जोर देना होगा.

 कोई भी भाषा व्याकरण से ही समृद्ध होती है, हिंदी का व्याकरण गड़बड़ा रहा है- डॉ. आभा तिवारी  
वहीं बतौर विशिष्ट अतिथि संगोष्ठी में शामिल डॉ. आभा तिवारी ने कहा, कि हम एक दिन हिंदी दिवस मनाकर अपना काम पूरा समझ लेते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए. वहीं इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए कि हिंदी कभी समाप्त हो जाएगी या हिंदी के सामने अन्य भाषाओं को लेकर कोई चुनौती है. हिंदी तो समुद्र की तरह जिमसें सबकुछ समाहित है. हाँ ये जरूर है कि समय के साथ हिंदी का व्याकरण गड़बड़ा रहा है. हिंदी के व्याकरण को हम भूलते जा रहे हैं. किसी भी भाषा का आधार उसका व्याकरण है. हमारी हिंदी व्याकरण से समृद्धि होगी. हिंदी में आदर सूचक शब्दों को भूल रहे हैं. उच्चारण की भी समस्या है. व्याकरण के अभाव में हिंदी के उच्चारण में , लेखन में अनेक गलतियां करते हैं. हम किसी भी भाषा की शब्दों को समझना ही नहीं चाहते. हम पढ़ना ही नहीं चाहते, हम पुस्तक नहीं पढ़ते. आज हिंदी को हिंदी सही नहीं बोलने वालों से खतरा है. सच्चाई यह कि हिंदी तो जीवंत भाषा है. हिंदी के विकास में हम सभी को योगदान देना है. इंटरनेट में हिंदी अन्य भाषाओं से आगे है. हिंदी को लेकर जितना अध्ययन करेंगे, हिंदी उतनी ही समृद्ध होगी.

 हिंदी को चुनौती अंग्रेजीदार लोगों से है- डॉ. राजेश दुबे 
वहीं डॉ. राजेश दुबे ने कहा, कि महात्मा गाँधी के मुताबिक हिंदी आम आदमी की भाषा है और यही सच है. भारत की राजभाषा और संचार भाषा हिंदी बनीं. आज दक्षिण में हिंदी का विस्तार राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के माध्यम से हुआ है. मैं यह कह सकता हूँ कि हिंदी को अँग्रेजी से कोई चुनौती नहीं है. सभी भाषा अपने संस्कार से मजबूत हैं. हिंदी को चुनौती अंग्रेजीदार लोगों से है. आज तो हिंदी का बाज़ार बढ़ रहा है. बीते 10 सालों में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी वालों ने हिंदी के शब्द सबसे ज्यादा लिए हैं. आज की स्थिति में दुनिया के 23 विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई जा रही है. हिंदी को कागजों में पीछे करने की जितनी भी कोशिश हो, लेकिन लोक में हिंदी की पैठ बढ़ रही है. किसी भी भाषा को जब बांधने की कोशिश होती है, तो वो दम तोड़ देती है. उसे सहज बनाने की जरूरत है.बाहर के लोग हिंदी पर अच्छा काम कर रहे हैं.

संगोष्ठी में अध्यक्षीय भाषण डॉ शैल शर्मा ने दिया है. उन्होंने कहा, कि हम अपने विभाग के माध्यम से हिंदी को विस्तार देने की कोशिशों में किसी भी तरह से कमी नहीं आने देंगे. शोधार्थियों और छात्रों के जरिए देश की भाषा हिंदी के विकास में सदैव योगदान देते रहेंगे. वहीं डॉ. मधुलाता बारा ने स्वागत भाषण दिया, जबकि आभार डॉ. कौशतुभमणि द्विवेदी ने किया. वहीं कार्यक्रम का संचालन डॉ. सरोज चक्रधर ने किया. इस मौके पर हिंदी दिवस कविता, पोस्टर, निबंध, भाषण, वाद-विवाद, आदि प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान पाने वाले छात्रों को सम्मानित भी किया गया.