पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में LALLURAM.COM की खबर का बड़ा असर हुआ है. खबर लगने के 12 घंटे बाद ही टीम गांव पहुंची. 22 साल बाद महेश के पैरों पर जकड़ी बेड़ियां अब हट गई हैं. महेश नेताम को लेकर डॉक्टर्स की टीम जिला अस्पताल पहुंची. डाक्टरों की विशेष टीम की निगरानी पर इलाज होगा. परिजनों के चेहरे पर उम्मीद की किरण दिखी. वहीं बूढ़ी मां LALLURAM.COM से बातचीत में भावुक हो गई. बूढ़ी ने कहा धन्यवाद LALLURAM.COM.

दरअसल, गरियाबंद में 22 साल से रस्सियों से बंधे महेश आखिरकार लल्लूराम की खबर के बाद आज 4 बाई झोपड़ी और अपने गांव से निकल कर पहली बार जिला अस्पताल पहुंचा. चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर हरीश चौहान, डॉक्टर राजेंद्र बिनकर और महिला डाक्टर बी बारा निरीक्षण करेंगी. महेश की मां ने कहा कि अब उनके बेटे को दर्द से जल्द राहत मिलेगी.

LALLURAM.COM की टीम से डॉक्टर्स की टीम ने कहा कि जांच और शुरुआती इलाज के बाद अगला निर्णय लेंगे. चर्चा के दौरान महेश की मां भावुक हुई. उन्होंने कहा कि महेश को अस्पताल लाकर अच्छा लग रहा है. अब महेश को रस्सियों से नहीं बांधेंगे. महेश के इलाज के लिए लल्लूराम.काम का आभार जताया.

क्या था पूरा मामला ?

बता दें कि छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले भूंजिया जनजाति कि दुर्दशा का दिल दहला देने वाला मामला सामने आथा. कोपेकसा पंचायत के आश्रित ग्राम सुखरी डबरी में रहने वाली बेवा अगिन बाई को अपने 30 वर्षीय बेटे महेश को पिछले 22 साल से रस्सी में बांध कर रखना पड़ रहा था.

बेटे को एक कच्चे मकान में उसकी मां रस्सी में बांध कर नजरबंद कर दी थी. चार बेटों में सबसे छोटे बेटा महेश 5 साल की उम्र में गम्भीर बीमारी से ग्रसित हो गया. समय पर इलाज नहीं मिला तो बढ़ते उम्र के साथ मानसिक संतुलन भी बिगड़ने लगा. बार बार घर से लापता और चूल्हे की आग में हाथ पांव झुलसाने लगा.

तीन बेटे कमाने दूसरे राज्य पलायन कर गए. 3 बेटियो की भी शादी हो गई. बूढ़ी मां और बीमार बेटे के गुजारा वनोपज संग्रहण से होने वाला आय ही एक मात्र जरिया रह गया. दो वक्त के खाने का जुगाड़ कड़ी संघर्ष के बाद होने लगा. ऐसे में गंभीर मनो रोग से जूझ रहे बेटे का इलाज करा पाना बूढ़े कंधे की बस में नहीं था.

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