पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. जिले का सुपेबेड़ा गांव, जहां किडनी की बीमारी ने कई परिवारों को उजाड़ कर रख दिया. आज फिर एक महिला की मौत हो गई. बता दें कि किडनी की बीमारी ने पहले पिता का साया छीना. अब इसी बीमारी से मां की मौत होने से उनका इकलौता बेटा अब अनाथ हो गया. उनके घर की हालत ऐसी है कि खाने तक को अनाज नहीं है. अनाथ हो चुके बेटे का रो-रो कर बुरा हाल है. उनके मदद के लिए ग्रामीणों ने हाथ आगे बढ़ाया है. बता दें कि अब तक इस गांव में किडनी की बीमारी से 140 लोगों की मौत हो गई है. किडनी रोगी क्यों हो रहे इस गांव के लोग, असली वजह क्या है, इसका पता लगाने में सरकार अब भी नाकाम है.
किडनी बीमारी से प्रभावित सुपेबेड़ा में 6 मार्च को 45 वर्षीय महिला उषा सिन्हा की मौत हो गई. किडनी रोगियों को उपचार कराने पूर्व सरकार से नियुक्त कोर्डिनेटर त्रिलोचन सोनवानी ने बताया की महिला पिछले 3 साल से बीमार थी. उनका इकलौता 20 वर्षीय बेटा रतन सिन्हा साथ में इलाज कराने जाता था. एम्स से लेकर मेकाहारा और जिला अस्पताल में इलाज चल रहा था. डायलिसिस जारी था. इसी बीच 6 मार्च को महिला की मौत हो गई. पीड़ित के घर खाने को अनाज तक नहीं था. ऐसे में त्रिलोचन सोनवानी व गांव के सरपंच पति महेंद्र मसरा ने मदद के लिए गांव के लोगों का एक वाट््सएप ग्रुप बनाया, जिसमें अपील के बाद कुल 9 हजार रुपए एकत्र हुआ, जिसे पीड़ित बेटे को सौंपा गया. बता दें कि रतन के पिता शार्तिक सिन्हा की मौत 2016 में इसी तरह किडनी बिमारी से हुई थी.
अनाथ बेटे का भविष्य दांव पर
पिता के बीमार पड़ने के बाद घर में कमाने वाला कोई नहीं था. अनाथ बेटे ने कहा कि परिवार के हिस्से में मिले ढाई एकड़ जमीन मां के जेवरात से लेकर सब कुछ 2012 से बिकने लगा. आज रहने के लिए कच्चा झोपड़ी है. पिता बीमार हुए तो मां के साथ जतन करता था. पिता के जाने के बाद मां भी किडनी रोग से ग्रसित हो गई. रतन ने बताया, बीमारी के इलाज में सब कुछ सरकारी नहीं मिलता. कई दवाएं महंगी है. कमाने वाला कोई नहीं है इसलिए भूखे रहकर भी इलाज कराता रहा. बेटे ने कहा, आंध्र की तर्ज पर सरकार को पीड़ित परिवार को सहायता राशि दी जानी चाहिए. गांव के अधिकांश पीड़ित परिवार का मेरी तरह ही बुरा हाल है.
140 की मौत, 35 अब भी बीमार, एक का वेंटीलेटर के सहारे चल रही सांस
2005 से अब तक सुपेबेड़ा में किडनी की बीमारी से मरने वालों की संख्या 140 हो गई है, जिसमें 2011 के बाद जान गंवाने वालों में 97 नाम शामिल हैं. तीन साल पहले गांव में हुई सामूहिक जांच में 43 लोगों में किडनी रोगी के लक्षण पाए गए थे, जिसमे अब तक 6 से ज्यादा लोगों ने जान गवा दी है. वर्तमान में 35 ऐसे मरीज हैं, जिनकी क्रियटीन लेबल 3 या इससे ज्यादा है. एक की स्थिति स्थिर बनी हुई है तो 48 वर्षीय नवीन एम्स के वेंटीलेटर में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहा है. सप्ताहभर से नवीन कोमा में चला गया है. सुविधा के नाम से गांव में अस्पताल खोल डॉक्टर दिया गया है. बाकी साफ पानी और किडनी रोगी क्यों हो रहे इस गांव के लोग, असली वजह क्या है, इसका पता लगाने में सरकारे अब भी नाकाम है.
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