हेमंत शर्मा, इंदौर। 1 अक्टूबर का दिन इतिहास के उन गुमनाम पन्नों का हिस्सा है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखने वाले नायकों की वीरता और शहादत को समर्पित है। इनमें से एक नाम है शहीद सआदत खां का, जिनका योगदान 1857 की क्रांति में भुला दिया गया। लेकिन उनका बलिदान अमर है।

क्रांति की शुरुआत

1857 का साल भारतीय इतिहास में क्रांति की चिंगारी के रूप में जाना जाता है। इस क्रांति के समय, इंदौर के पठान सआदत खां ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाया। 1 जुलाई 1857 को इंदौर रेसीडेंसी पर उनके नेतृत्व में पहला हमला हुआ। इस हमले में इंदौर को अंग्रेजों से मुक्त करवा लिया गया। और इस क्रांति की ज्वाला को सआदत खां ने देश भर में फैलाने का संकल्प लिया।

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दिल्ली की ओर कूच

इंदौर की सफलता के बाद सआदत खां ने दिल्ली की ओर कूच किया, लेकिन दिल्ली पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। इसके बाद भी सआदत खां और उनके साथियों ने हार नहीं मानी और अंग्रेजों से लोहा लेते रहे। उन्होंने बहादुरी से मुकाबला किया, लेकिन अंततः उन्हें परास्त होना पड़ा और उन्हें फरारी का जीवन जीना पड़ा।

सोलह साल की फरारी

साढ़े सोलह साल तक सआदत खां  अंग्रेजों की नजरों से बचते रहे। लेकिन 1874 में बांसवाड़ा में एक मुखबिरी के चलते उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस बीच भी उन्होंने क्रांति की ज्वाला को बुझने नहीं दिया और देशभर में स्वतंत्रता सेनानियों को संगठित करते रहे। 1 अक्टूबर 1874 को उन्हें फांसी दे दी गई, और उनका नाम इतिहास के गुमनाम नायकों में शामिल हो गया।

स्मृति और सम्मान 

आज, इंदौर के नेहरू स्टेडियम के सामने स्थित उनका स्मारक और लोक सेवा आयोग के सामने उनकी मजार, सआदत खां की वीरता की याद दिलाते हैं। उस तोप, “फ़तेह मंसूर,” जिससे इंदौर रेसीडेंसी पर हमला किया गया था, वह भी आज इतिहास के इस नायक की वीरता का प्रतीक है। शहीद सआदत खां का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन अद्वितीय अध्यायों में से एक है, जो हमें आज भी साहस और देशभक्ति की प्रेरणा देते हैं। इतिहास के पन्नों में भले ही उनका नाम कहीं गुम हो गया हो, लेकिन उनका योगदान हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेगा। आइए, हम सभी मिलकर शहीद सआदत खां जैसे गुमनाम नायकों की कहानियों को जीवित रखें और उन्हें वह सम्मान दें, जिसके वे हकदार हैं।

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