नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को ताजमहल के निर्माण संबंधी याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान हाईकोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कई निर्देश दिए. अदालत ने कहा कि इतिहास की किताबों से ताजमहल के निर्माण के बारे में कथित और तथ्यात्मक रूप से गलत जानकारी हटाएं.

जस्टिस सतीश चंदर शर्मा और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) का निपटारा करते हुए एएसआई को हिंदू सेना (एनजीओ) के अध्यक्ष सुरजीत सिंह यादव द्वारा दिए गए एक आवेदन पर ताज महल के निर्माण के संबंध में निर्णय लेने का निर्देश दिया, जिसमें इतिहास की किताबों में बदलाव की मांग की गई थी. याचिका में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को आगरा में ताज महल स्थल पर 31/12/1631 तक राजा मान सिंह के महल के अस्तित्व सहित ताज महल की उम्र के बारे में जांच कर हाईकोर्ट के समक्ष एक रिपोर्ट दाखिल करने निर्देश देने की मांग की गई है. 

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याचिका में दावा किया गया कि जनता और बड़े पैमाने पर लोगों को ताज महल के निर्माण से संबंधित गलत ऐतिहासिक तथ्य पढ़ाए और प्रदर्शित किए जा रहे हैं. याचिकाकर्ता सुरजीत सिंह यादव ने यह भी दावा किया कि कार्रवाई का कारण तब उत्पन्न हुआ जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने यह कहकर इन प्रश्नों पर कोई रुख अपनाने से खुद को मुक्त कर लिया कि ये प्रश्न गहन अध्ययन और शोध का विषय हैं. कार्रवाई का कारण आज भी कायम है क्योंकि ताज महल के निर्माण से संबंधित गलत ऐतिहासिक तथ्य अब भी पब्लिक डोमेन में हैं.

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याचिकाकर्ता ने दावा किया कि एएसआई ने अपनी आगरा सर्कल वेबसाइट में ताज महल पर परस्पर विरोधी और विरोधाभासी जानकारी प्रदान की है. इसके तहत, एएसआई ने उल्लेख किया है कि 1631 में मुमताज महल की मृत्यु के छह महीने बाद उनके शरीर को ताज महल के मुख्य मकबरे के तहखाने में स्थापित करने के लिए आगरा स्थानांतरित कर दिया गया था. यह ताज महल के लिए उसी वेब पेज में दी गई जानकारी के विरोधाभासी है, जहां एएसआई ने दावा किया है कि 1648 में स्मारक परिसर को पूरा होने में 17 साल लग गए थे.

उस्ताद अहमद लाहौरी को ताज महल का वास्तुकार बताया गया है. हालांकि याचिकाकर्ता द्वारा किए गए अध्ययन से यह पता चलता है कि ताज महल के वास्तुकार के रूप में उस्ताद अहमद लाहौरी की पहचान का समर्थन करने वाले साक्ष्य केवल परिस्थितिजन्य हैं. शहंशाह शाहजहां के विभिन्न दरबारी इतिहासकार ताज महल के वास्तुकार के नाम के बारे में चुप रहे हैं.

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यह बेहद अजीब बात है कि शहंशाह शाहजहां के सभी दरबारी इतिहासकारों ने इस भव्य मकबरे के वास्तुकार का नाम नहीं बताया है. इसलिए, यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि राजा मान सिंह की हवेली को ध्वस्त नहीं किया गया था, बल्कि ताज महल के वर्तमान स्वरूप को बनाने के लिए केवल संशोधित और पुनर्निर्मित किया गया था. याचिका में कहा गया है कि इसीलिए शहंशाह शाहजहां के दरबारी इतिहासकारों के वृत्तांतों में किसी वास्तुकार का कोई जिक्र नहीं है.

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