रायपुर। निगम-मंडल की फेहरिस्त में कांग्रेस के मीडिया विभाग के मुखिया शैलेष नितिन त्रिवेदी को पाठ्यपुस्तक निगम की जिम्मेदारी दी गई है. दूसरी पंक्ति के जिन नेताओं से बीजेपी की हूकूमत के खिलाफ सबसे ज़्यादा संघर्ष किया, उनमें प्रमुख नामों में एक नाम शैलेष का है. उन्हें अपनी मेहनत और पार्टी के प्रति वफादारी का ईनाम मिला है.
छात्र जीवन से राजनीति में सक्रिय शैलेष के लिए ये पहला मौका है जब उन्हें सत्ता में भागीदारी मिली है. जनप्रतिनिधि के लिए शैलेष ने पार्षद का चुनाव भी नहीं लड़ा लेकिन अपने बुद्धि और समझ से पार्टी की प्रदेश स्तरीय राजनीति के केंद्र या उसके ईर्द गिर्द बने रहे.
करीब 9 साल से वे मीडिया में है.वो शैलेष ही थे जिनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी मीडिया के माध्यम से लड़ाई लड़ रही थी. वे रोज़ रिसर्च करके नए मुद्दे लाते थे और कई-कई दिनों तक तथ्यों के धार से बयानों के हमले बोलते थे. वे प्रदेश में कई बार कांग्रेस के मुख्य रणनीतिकारों में से एक रहे. कई बार वो दरकिनार हुए लेकिन उन्हें खारिज कोई नहीं कर पाया. वे उन नेताओं में शुमार रहे जो सबसे आक्रामक तरीके से रमन सिंह की तात्कालीन सरकार के खिलाफ लिखते रहे, बोलते रहे. बिना डरे, बिना रुके
बिना नागा के कांग्रेस भवन में बैठने वाले गिनती के नेताओं में से वे एक हैं. पाठ्यपुस्तक के अध्यक्ष के रुप में उन्हें पार्टी के प्रति अपनी मेहनत, जुझारुपन और समर्पण का ईनाम मिला है. शैलेष के पास सत्ता का अनुभव नहीं है लेकिन उन्हें ये पता है कि काम कैसे किया जाता है और कैसे परसेप्शन बनाया जाता है.
शैलेष लंबे समय तक अजीत जोगी के कोटरी के सदस्य रहे. लेकिन जब साथ छूटा तो ऐसा छूटा कि उनके सबसे कट्टर विरोधियों के सबसे करीब आ गये. शैलेष की राजनीति में अजीत जोगी की छाप स्पष्ट दिखती है. जोगी से उन्होंने राष्ट्रीय संपर्कों की अहमियत सीखी है. शैलेष लगातार राष्ट्रीय नेताओं के संपर्क में रहते हैं. शैलेष सबसे ज़्यादा नंदकुमार पटेल को मानते हैं, जो जोगी खेमे से उन्हें निकालकर मीडिया में ले आए थे.
छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम इस सरकार में एक अधिकारी और सरकार के बीच जंग के मैदान के रुप में तब्दील हो चुका है. इससे निपटना शैलेष के लिए बड़ी चुनौती होगी.
अध्यक्ष चुने जाने के बाद शैलेष नितिन त्रिवेदी से बात की हमने बात की.
रुपेश गुप्ता – सरकार को बहुत सोच समझ के जिम्मेदारी दी है क्या प्राथमिकताएं होंगी ?
शैलेष नितिन त्रिवेदी – पाठ्यपुस्तक निगम ऐसा निगम भावी पीढ़ी के भविष्य से सीधे-सीधे सरोकार रखता है. पुस्तकें छपें. सही समय में छात्रों को मिले. भावी पीढ़ी उनका अध्ययन करके प्रदेश के भविष्य को बेहतर बनाएं, ये हम सबकी प्राथमिकता है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुझे ये दायित्व सौंपा है तो ये मेरी कोशिश होगी कि पार्टी और मुख्यमंत्री द्वारा मुझ पर जो विश्वास व्यक्त किया गया है. उस पर खरा उतर सकूं.
रुपेश गुप्ता- हाल के दिनों में पाठ्यपुस्तक निगम को लेकर बहुत सारे विवाद हुए हैं. एक अधिकारी को लेकर कई तरह की शिकायतें हुईं. मामला हाईकोर्ट चला गया और अधिकारी को लेकर पार्टी के अंदर असंतोष है. आपका क्या स्टैंड होगा. क्या समझौता करने की कोशिश करेंगे या कांग्रेस के स्टैंड पर आप भी रहेंगे ?
शैलेष नितिन त्रिवेदी – देखिए मेरा मानना है कि जो कुछ भी हुआ. अब लाइन खींचने का वक्त आ गया है. अब तक जो हुआ उसके नीचे लाइन खींचकर बहुत सारे उन मामलों में जांच चल रही है. कुछ मामले न्यायलय में भी विचाराधीन हैं. अब न्यायालय को और जांच एजेंसियों को उस पर फैसला करना है. लेकिन आगे बढ़ना है और कोशिश करनी है कि जिन कारणों से समस्यायें पैदा हुई हैं. विवाद पैदा हुए. उन कारणों को दूर किया जाए और सकारात्मक रुप से सबको साथ लेकर- पाठ्यपुस्तक के सारे कर्मचारियों को, सारे सदस्यों को, सबको साथ लेकर- हम लोग अच्छा काम का वातावरण बनाएं और जो दायित्व सौंपा गया है उसे सब मिलकर पूरा करें.
रुपेश गुप्ता – हाल के वर्षों में पाठ्य पुस्तक निगम अपने काम की वजह से कम और दूसरी वजहों जैसे- भ्रष्टाचार की वजह से ज़्यादा सुर्खियों में रहा है. छवि के संदर्भ में और ढांचागत आई गड़बड़ी को कैसे दूर करेंगे ?
शैलेष नितिन त्रिवेदी – छोड़ा कल की बातें, कल की बात पुरानी नए दौर में लिखेंगे, मिलकर नहीं कहानी. एक नई शुरुआत करनी है. अपनी तरफ से अच्छे से अच्छा काम करना है.
रुपेश गुप्ता- प्रिटंर्स के अपने हितों के चलते भी कई बार विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है ?
शैलेष नितिन त्रिवेदी – व्यावसायिक हित प्रिटिंग हाऊस और सप्लायर्स के हो सकते हैं और हर व्यक्ति अपने व्यावसायिक हितों के लिए काम भी करता है. लेकिन महत्वपूर्ण है कि फैसले लिए जाएं. उन फैसलों को पारदर्शितापूर्ण लागू किया जाए. प्रदेश हित में. निगम के हित में. भावी पीढ़ी के हित में अच्छे निर्णय लिये जाएं.
शैलेष का राजनीतिक सफर
शैलेष नितिन त्रिवेदी रहने वाले बलौदाबाज़ार के हैं. लेकिन उनकी ज़्यादातर राजनीति रायपुर में रही. 1982 में वे रायपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज के अध्यक्ष बने. अगले साल वो विश्वविद्यालय के कार्यकारी सदस्य बने. शैलेष कहते हैं कि विश्वविद्यालय के बाद उन्होंने राजीव गांधी के आह्वान पर राजनीति में आने का फैसला किया. शैलेष मध्यप्रदेश के ज़माने ही जोगी के बेहद करीबी थे.
2000 में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने. तो शैलेष नितिन त्रिवेदी के दिन फिर गए. वे अजीत जोगी के बेहद करीबी लोगों में से एक थे. उन्हें प्रदेश कांग्रेस में प्रवक्ता बनाया गया. 2011 तक शैलेष पार्टी में पार्टी में अलग-अलग पदों पर रहे. 2011 में स्व. नंदकुमार पटेल उन्हें बंगले से निकालकर कांग्रेस भवन ले आए और मुख्य प्रवक्ता बनाया. शैलेष को भूपेश बघेल ने अध्यक्ष बनने के बाद महामंत्री भी बनाया और यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई का प्रभार दिया. इसके बाद करीब एक साल तक उन्हें कांग्रेस के मीडिया विभाग से अलग कर दिया गया लेकिन चुनाव से कुछ समय पहले कांग्रेस को यह समझ आ गया कि मीडिया बिन शैलेष के चलाया मुश्किल है. लिहाज़ा उनकी वापसी हुई और शैलेष संचार विभाग के अध्यक्ष बने.
नकारात्मक पहलू
शैलेष मीडिया प्रेमी हैं. इसका उन्हें लाभ भी हुआ और इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी.
शैलेष ने कई बार विधानसभा के लिए टिकट मांगी लेकिन मीडिया के चलते वे ज़मीन पर अपनी मौजूदगी दर्ज नहीं करा पाए. इस वजह से एक बार भी उनकी राजनीतिक महात्वाकांक्षा को परवान नहीं चढ़ा सकी. शैलेष को लेकर उनके आलोचक ये शिकायत करते हैं कि वे मिलने में सहज हैं, लेकिन उनका व्यवहार औपचारिक रहता है. कई बार ये उनकी ये आदत उनके खिलाफ चली जाती है.