रायपुर. शनि को संतुलन चक्र कहा जाता है, यह संसार में बैलेंस व्हील की तरह कार्य करता है. क्योंकि संतुलन शनि का मुख्य गुण है इसलिए यह संतुलन की कारक राशि तुला में उच्च होते हैं तथा व्यावसायिक जीवन में संतुलन, सुरक्षा व स्थिरता आदि देने में समर्थ होते हैं. इसे न्याय का कारक इसलिए माना जाता है क्योंकि यह मनुष्य को उसकी गलतियों और पाप के लिए दण्डित करके जीवन में संतुलन स्थापित करता है. करियर में उन्नति प्राप्त होने का मार्ग सरल होगा या कठिनाइयों से भरा हुआ होगा इसका सूक्ष्म विष्लेषण कुंडली में शनि की स्थिति से जाना जा सकता है.

यदि कुंडली में शनि की स्थिति उत्तम हो, यह 3, 6, 10 या 11वें भाव में स्थित हो, नीचराषिस्थ व पीड़ित न हो तो आसानी से सफलता मिलेगी. किन्तु शनि शत्रु राशिस्थ व अशुभ भाव में स्थित हुआ तो जातक की सफलता मिलने में कठिनाई अनुभव करेगा तथा योग्यता संपन्न होने के बावजूद भी उसे जीवन में सफल होने के लिए परेशान होना पड़ेगा तथा कई बार वह साधारण जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाएगा. कालपुरुष के अनुसार शनि को व्यवसाय के कारक दशम भाव और आय के कारक एकादश भाव का स्वामी माना जाता है.

हमारे जीवन में स्थिरता व संतुलन का विचार दशम भाव से भी किया जाता है क्योंकि दशम भाव व्यवसाय का घर होता है और जितना हम व्यावसायिक स्तर पर सफल होते हैं उतनी ही हमें जीवन के दूसरे क्षेत्रों में सुख और सम्मान की प्राप्त होती है. अत: कैरिअर के बैलेंस व्हील को बनाए रखने के लिए जीवन में सर्व प्रथम सुचिता धारण करें इसके अलावा शनि के लिए तिल का दान, जरूरत मंदो की मदद करना, किसी के साथ भी अन्याय न करना और शनि मन्त्र का जाप करने के अलावा रुद्राभिषेक करने से शनि प्रसन्न होते हैं और कर्म आय में सुख प्राप्त होता है.