महाकुंभ नगर. परमधर्म संसद में ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने संबोधन दिया. उन्होंने कहा कि आज हमारा ख़ान-पान ही नहीं, अन्न-जल तक प्रदूषित हो गया है. पूजा की सामग्री प्रदूषित है. मन्त्र-अनुष्ठान प्रदूषित हैं, भाषा-भाव और भङ्गिमा भी प्रदूषित हो रहे हैं. नए-नए देवता बनते जा रहे हैं. धर्म-अधर्म से मिश्रित हो रहा है. यदि अधर्म अपने स्पष्ट रूप में हमारे सामने आए तो बहुत सम्भव है कि हम उससे बच सकें पर जब वह धर्म के रूप में हमारे सामने आता है तो उससे बचना कठिन हो जाता है. भागवत जी में व्यास जी ने अधर्म की उन पांच शाखाओं का उल्लेख-विधर्म, परधर्म, आभास, उपमा और छल कहकर किया है. यही धार्मिक प्रदूषण है जो अधर्म को धर्म के रूप में प्रस्तुत कर हमें गर्त में ले जा रहा है.

शंकराचार्य ने आगे कहा कि विधर्म माने धर्म समझकर करने पर भी जिससे धर्मकार्य में बाधा पड़ती हो. जैसे यहूदी, पारसी, ईसाई, इस्लाम आदि. परधर्म माने अन्य के द्वारा अन्य के लिए उपदिष्ट धर्म जैसे ब्रह्मचारी का गृहस्थ को, गृहस्थ का संन्यासी को. आभास स्वेच्छाचार जो धर्म सा लगता है जैसे अनधिकारी का संन्यास. उपमा माने पाखण्ड/दम्भ और छल माने शास्त्र वचनों की अपने मन से की गई व्याख्या या उनमें अपने मनमाना बदलाव कर देना. समस्त सनातनधर्मियों को सतर्क रहकर धर्म के सच्चे स्वरूप को समझते हुए धार्मिक प्रदूषणों से बचकर रहने की आवश्यकता है. परमधर्मसंसद् एक पुस्तिका के माध्यम से हिंदुओं तक इस बारे में समझ विकसित करने का प्रयास करेगी.

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धर्म संसद में आज विशिष्ट अतिथि के रूप में महामण्डलेश्वर स्वामी आशुतोष गिरी जी महाराज उपस्थित रहे. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि देश में गौ हत्या पूर्णतः प्रतिबन्धित हो और गौ माता को राष्ट्र माता का दर्जा मिले इसके लिए हम सबको एकजुट होकर आवाज उठानी चाहिए. इस गौ प्रतिष्ठा आन्दोलन में हम ज्योतिष्पीठ के शङ्कराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द के साथ हैं और हर वो सम्भव प्रयास करेंगे जिससे इस आन्दोलन को सफलता मिले. प्रश्न काल के बाद परम गौ भक्त गोपालमणि ने विषय की स्थापना की. उन्होंने कहा कि दूध में मिलावट कर उसे प्रदूषित करने वालों को समाप्त कर देना भी दोष नहीं है.