अनूपपुर। शोण शक्तिपीठ को हिंदू धर्म में प्रसिद्ध 51 शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। यह मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में स्थित है। यहां माता की नर्मदा के रूप में पूजा की जाती है। भगवान भैरव को भद्रसेन के रूप में पूजा जाता है। शोधदेश स्थान पर होने की वजह से इसे शोणाक्षी शक्तिपीठ या शोण शक्तिपीठ कहते हैं। जहां देशभर से श्रद्धालु मां नर्मदा और शक्तिपीठ के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। आइए जानते है इस शक्ति पीठ की मान्यता और इतिहास…

‘शोण शक्तिपीठ’ मध्य प्रदेश के अमरकंटक में नर्मदा नदी के उद्गम पर स्थित है। हिंदू धर्म के पुराणों के मुताबक, जहां भी देवी सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे, वह स्थान पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले एक शक्तिपीठ के रूप में स्थापित हो गया। देवी पुराणों में 51 शक्तिपीठों का ज्ञान संग्रहित है। ऐसा माना जाता है कि अमरकंटक में स्थित शोण शक्तिपीठ में माता सती का ‘दाहिना नितंब’ (कूल्हा) गिरा था। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि यहां पर सती का कंठ गिरा था। जिसके बाद यह स्थान अमरकंठ और उसके बाद अमरकंटक कहलाया। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं।

शक्तिपीठ का अर्थ

शक्तिपीठ, देवीपीठ, या सिद्धपीठ अधिष्ठान के शक्तिशाली आदि शक्ति के स्थानों (निवास) को संदर्भित करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ये शक्तिपीठ मनुष्य को सौभाग्य प्रदान करने वाले हैं। मानव कल्याण के लिए जिस प्रकार भगवान शंकर विभिन्न तीर्थों में पाहनलिंग के रूप में अवतरित हुए, उसी प्रकार करुणामयी देवी भक्तों पर कृपा करने के लिए अनेक तीर्थों में शक्तिपीठ के रूप में विराजमान हैं।

कालमाधव और शिव असितानंद नाम से हैं विराजित

यहां पर देवी सती कालमाधव और शिव असितानंद नाम से विराजित हैं। देवी नर्मदा की मूर्ति मंदिर के केंद्र में स्थित है और स्वर्ण ‘मुकुट’ से घिरी हुई है। देवी नर्मदा का मंच चांदी से बना है। देवी नर्मदा के दोनों किनारों पर कई देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थित हैं। यह मंदिर सफेद पत्थरों का बना है और इसके चारो ओर तालाब है। मान्यता है कि इस शक्तिपीठ पर शक्ति को ‘काली’ तथा भैरव को ‘असितांग’ कहा जाता है। शक्ति का यह पावन स्थल काफी सिद्ध और शुभ फल प्रदान करने वाला है।

दो बड़ी नदियों का उद्गम स्थल है अमरकंटक

अमरकंटक मैकल पर्वत पर मौजूद है। यह मैकल पर्वत विंध्य श्रृंखला और सतपुड़ा पर्व श्रृंखला संधि पर्वत है। इसे पुराणकालीन पर्वत का अंग माना जाता है। भौगोलिक चमत्कार ही कहा जाएगा कि एक ही स्थान से दो नदियां ठीक विपरीत दिशाओं में बहती हैं। जहां सोन नदी बिहार के पास गंगा नदी से मिलती है तो वहीं नर्मदा गुजरात के भड़ौच नाम स्थान में अरब सागर में जाकर मिल जाती हैं।

नर्मदा और सोनभद्र का विवाह हुआ था तय

मान्यता है कि नर्मदा नदी राजा मैखल की पुत्री थीं। जब नर्मदा विवाह योग्य हुईं तो पिता मैखल ने राज्य में उनके विवाह का ऐलान किया। साथ ही यह भी कहा कि जो भी व्यक्ति ‘गुलबकावली’ का फूल लेकर आएगा राजकुमारी की शादी उसी के साथ होगी। इसके बाद कई राजकुमार आए पर कोई भी इस शर्त को पूरा नहीं कर सका। लेकिन राजकुमार सोनभद्र ने गुलबकावली का फूल लाने की शर्त पूरी कर दी। इसके बाद नर्मदा और सोनभद्र का विवाह तय हुआ।

जब राजा मैखल ने राजकुमारी नर्मदा और राजकुमार सोनभद्र की शादी तय की तो राजकुमारी ने सोनभद्र को देखने की इच्छा जाहिर की। इसके लिए उन्होंने अपनी सहेली जुहिला को राजकुमार के पास अपने संदेश देकर भेजा, लेकिन काफी वक्त बीतने के बाद सहेली जुहिला वापस नहीं आई। इसके बाद राजकुमारी को चिंता होने लगी और वह उसकी खोज में निकल गईं। खोज करते हुए वह सोनभद्र के पास पहुंची और वहां जुहिला को उनके साथ देखा। यह देखकर वह आक्रोशित हो गई। इसके बाद से ही राजकुमारी ने आजीवन कुंवारी रहने का प्रण ले लिया और उल्टी दिशा में चल पड़ीं। कहा जाता है कि तभी से नर्मदा अरब सागर में जाकर मिली, जबकि देश की अन्य सभी नदियां बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती हैं।

भक्तों का लगा रहता हैं तांता

ऐसी मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से ही भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। यही वजह है कि दूर-दूर से लोग माता के दरबार में पहुंचकर साधना-आराधना करते हैं। भक्त अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए मां से प्रार्थना करते हैं। नवरात्रि के मौके पर यहां पर देवी के भक्तों तांता लगा रहता है।

ऐसे पहुंचे इस शक्ति पीठ स्थल पर

अमरकंटक में स्थित इस शक्तिपीठ के दर्शन करने के लिए आप रेल मार्ग और सड़क मार्ग के रास्ते से पहुंच सकते हैं। अमरकंटक के सबसे करीब पेंड्रा रोड रेलवे स्टेशन है, जहां से यह शक्ति स्थल 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वहीं सड़क मार्ग से आपको मध्यप्रदेश के अनूपपुर पहुंचना होगा। फिर यहां से 48 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद अमरकंटक में आपको माता के दर्शन होंगे।

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