देवास। मध्य प्रदेश के देवास में माता टेकरी पर बड़ी माता के रूप में मां तुलजा भवानी और छोटी माता के रूप में मां चामुंडा विराजमान हैं। मान्यता है कि देवास टेकरी पर माता सती का रक्त गिरा था। इसलिए इसे शक्ति पीठ माना जाता है। यह मंदिर 450 वर्ष से भी अधिक पुराने बताए जाते हैं। टेकरी पर नाथ संप्रदाय का सिद्ध स्थल है। तुलजा भवानी शिवाजी महाराज की कुलदेवी हैं। स्थानीय भाषा में ‘टेकरी’ शब्द का अर्थ ‘पहाड़ी’ होता है। इसलिए इसे ‘देवी वैशिनी पहाड़ी’ के नाम से भी जाना जाता है।

मध्य प्रदेश के देवास जिले में स्थित एक पवित्र पर्वत है। करीब 300 फीट की ऊंचाई पर टेकरी है, जो अपने धार्मिक महत्व के लिए जानी पहचानी जाती है, क्योंकि यह दो महत्वपूर्ण मंदिर हैं। पहला देवी चामुंडा माता मंदिर और दूसरा देवी तुलजा भवानी माता मंदिर। माता सती के ह्रदय भाग से रूधिर की बूंदे यहां गिरी थीं। इस वजह से इसे रक्तपीठ कहा जाता है। इस स्थान पर रक्तवाहिनी चामुंडा माता पहाड़ों के बीच से प्रकट हुईं तथा माता तुलजा भवानी स्वयंभू अवतरित हुईं, जिनके शरीर का आधा भाग पाताल में है। मान्यताओं के मुताबिक, इस पहाड़ी पर देवी मां के दोनों रूप जागृत अवस्था में मौजूद हैं। इसके अलावा यहां कई और भी मंदिर मौजूद है।

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क्या है दो बहनों की कहानी

माना जाता है कि मां चामुंडा और तुलजा भवानी बहनें हैं। तुलजा भवानी बड़ी और चामुंडा देवी छोटी बहन हैं। यह दोनों बहनें इस पहाड़ी पर एक साथ रहती थीं, लेकिन एक-दूसरे से मतभेद होने की वजह से वे एक-दूसरे से दूर हो गईं। गुस्से में आकर अपना स्थान छोड़ने लगीं। तुलजा भवानी पाताल लोक में गायब हो गईं, जबकि चामुंडा देवी पहाड़ी से नीचे उतरने लगीं। इस बीच भगवान हनुमान और भैरव बाबा ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने देवियों से शांत होने और रुकने की बात कही। हालाकि इस समय तक तुलजा भवानी के शरीर का एक हिस्सा पहले ही पाताल में डूब चुका था। वह पहाड़ी पर उसी स्थिति में रहीं। जबकि चामुंडा देवी, जो नीचे उतर रही थीं, वह अपने वर्तमान स्थान पर रुक गईं। यही वजह है कि तुलजा भवानी का मुख दक्षिण और चामुंडा देवी का मुख उत्तर की तरफ है। टेकरी पर पहुंचने वाले तीर्थयात्री परिक्रमा करते हैं। इसकी शुरुआत तुलजा भवानी से होती है और चामुंडा देवी के दर्शन के साथ समाप्त होती है।

उज्जैन तक जाती थी सुरंग

कहा जाता है कि उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य भी देवास माता टेकरी जाते रहते थे। उन्होंने यहां पर निर्माण कार्य भी करवाया था। जिसमें मुख्य रूप से दीपमालिका है, जो हरसिद्धि मंदिर उज्जैन की तर्ज पर है। टेकरी पर पूर्व में एक गुप्त मार्ग हुआ करता था, जिसे सुरंग कहते थे। यह सरुंग उज्जैन तक जाती थी। इसकी लंबाई करीब 45 किलोमीटर मानी जाती है। इसका दूसरा सिरा उज्जैन स्थित भर्तृहरि गुफा के समीप निकलता है।

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देवास में एक ही समय में दो पवार राज वंश के शासकों ने राज किया। देवास पूर्व में दो भागों में बंटा हुआ था। इस स्थान से नाथ परंपरा का इतिहास भी जुड़ा है। नागनाथ महाराज, गुरु गोरक्षनाथ महाराज, राजा भर्तृहरि, शीलनाथ महाराज, स्वामी विष्णु तीर्थ महाराज, शिवोम तीर्थ महाराज जैसे योगियों ने इसे साधना स्थली बनाया।

संतान की होती है प्राप्ति

मान्यता है कि जिन महिलाओं को संतान की प्राप्ति नहीं होती, वह अगर देवास माता मंदिर में सच्चे मन से माथा टेके तो उसकी मनोकामना पूरी होती है। बड़ी माता तुलजा भवानी और छोटी माता चामुंडा मां के मुंह में पान का बीड़ा देने पर अगर वह महिला भक्त की झोली में आकर गिर जाती है तो उमां के आशीर्वाद से उसकी गोद भर जाती है।

कब कब होती है आरती

देवास माता टेकरी में सुबह-शाम आरती होती है। यहां नाथ संप्रदाय परंपरा से पूजा की जाती है। सुबह 5 बजे तुलजा भवानी और चामुंडा माता मंदिरों के पट खुल जाते हैं। रात 11 बजे पट बंद होते हैं। इसके पहले शयन धूप दी जाती है। तुलजा भवानी माता मंदिर में सुबह 5.50 बजे व शाम को 6.10 बजे आरती होती है। चामुंडा माता मंदिर में सुबह 6.30 बजे व शाम को 6 बजे आरती होती है। हालांकि मौसम के अनुसार समय बदलते रहता है।

नवरात्र के मौके पर 24 घंटे माता का दरबार खुला रहता है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। टेकरी की माता के दर्शन करने लोग बहुत दूर दूर से आते है। शारदीय नवरात्र में तो आंकड़ा करीब दस लाख तक पहुंच जाता है। वहीं अष्टमी पर पवार राजपरिवार की ओर से हवन-पूजन किया जाता है।

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इस मंदिर में आप दो तरह से जा सकते है या तो आप सीढ़ियों से जिनकी संख्या लगभग 410 है या पक्की रोड से जो पहाड़ी से होते हुए मंदिर की ओर जाती है। मंदिर पर रोप वे के जरिए भी जाया जा सकता है, जहां से आपको देवास शहर का खूबसूरत नजारा भी दिखाई देगा।

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