रायपुर. 7 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि शुरुआत हो रही हैं. इस बार आठ दिन के नवरात्रि में मां भगवती डोली पर सवार होकर पधारेंगी. देवी के आगमन का वाहन तय होता है. इस बार नवरात्र का प्रारंभ गुरुवार से हो रहा है. इसलिए देवी का आगमन डोली पर होगा. यह अत्यंत शुभ होता है. यह नवरात्र सभी के लिए सुख-समृद्धि लाने वाली रहेगी. इसमें देवी का विशेष पूजन-अनुष्ठान, मंत्र जप करने से सिद्धियों की प्राप्ति होती है.

इस बार चतुर्थी तिथि का क्षय हो जाने के कारण नवरात्र 8 दिनों का ही रहेगा. 7 अक्टूबर को प्रतिपदा पर घट स्थापना के साथ नवरात्र प्रारंभ होगा, जो 14 अक्टूबर को नवमी तिथि के हवन और कन्या पूजन के साथ संपन्न होगा. इन आठ दिनों में अनेक शुभ योग-संयोग बन रहे हैं, जो देवी की कृपा पाने के सर्वश्रेष्ठ दिन रहेंगे.

प्रतिपदा तिथि 6 अक्टूबर को शाम 4.36 बजे से प्रारंभ होकर 7 अक्टूबर को दोपहर 1.47 बजे तक रहेगी. इस दिन चित्रा नक्षत्र रात्रि 9.13 बजे तक रहेगा. चूंकि प्रतिपदा तिथि उदयाकाल में 7 अक्टूबर को रहेगी इसलिए इसी दिन घट स्थापना के साथ शारदीय नवरात्र का प्रारंभ होगा. इस बार चतुर्थी तिथि का क्षय हो गया है. तृतीया तिथि 9 अक्टूबर को सुबह 7.49 बजे समाप्त हो जाएगी. इसके बाद चतुर्थी तिथि प्रारंभ होगी जो 10 अक्टूबर को सुबह 4.56 बजे तक रहेगी. चूंकि चतुर्थी तिथि दोनों ही दिन सूर्योदय के समय नहीं रहेगी इसलिए इसका क्षय हो गया है. इस कारण नवरात्र 9 दिनों की जगह आठ दिनों का ही रह गया है. इसके साथ ही 14 अक्टूबर को महानवमी पूजा, नवरात्र व्रत का उद्यापन होगा और 15 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा.

नवरात्र में कलश स्थापन के अलावा अन्य उपाय भी बहुत ही शुभ माने जाते हैं, जिनके करने से विशेष लाभ प्राप्त किया जा सकता है.

ज्वारे

नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही देवी के समक्ष जौ बोने का विधान है. दुर्गा पूजा में जौ को बेहद शुभ माना गया है. जौ समृद्धि, शांति, उन्नति और खुशहाली का प्रतीक होते हैं. ऐसी मान्यता है कि जौ उगने की गुणवत्ता से भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. माना जाता है कि अगर जौ तेज़ी से बढ़ते हैं तो घर में सुख-समृद्धि आती है वहीं अगर ये बढ़ते नहीं और मुरझाए हुए रहते हैं तो भविष्य में किसी तरह के अमंगल का संकेत देते हैं.

कलश

धर्म शास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है. कलश में सभी ग्रह, नक्षत्रों एवं तीर्थों का वास होता है इसलिए नवरात्रि पूजा में घट स्थापना का सर्वाधिक महत्व है. कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, सभी नदियां, सागरों, सरोवरों और 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है. इसलिए विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं का पूजन हो जाता है.

बंदनवार

प्राचीन काल से ही पूजा-अनुष्ठान के दौरान मुख्य द्धार पर आम या अशोक के पत्तों की बंदनवार लगाईं जाती है. ऐसा करने से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करतीं. मान्यता है कि देवी पूजा के प्रथम दिन देवी के साथ तामसिक शक्तियां भी होती हैं. देवी घर में प्रवेश करती हैं, पर बंदनवार लगी होने से तामसिक शक्तियां घर के बाहर ही रहती हैं.

दीपक

नवरात्रि के समय घर में शुद्ध देसी घी का अखंडदीप जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, नकारात्मक ऊर्जाएं नष्ट होती हैं और इससे आस-पास का वातावरण शुद्ध हो जाता है. दीपक, साधना में सहायक तृतीय नेत्र और हृदय ज्योति का प्रतीक है. इससे हमें जीवन के उर्ध्वगामी होने, ऊंचा उठने और अन्धकार को मिटा डालने की प्रेरणा मिलती है.

गुड़हल का पुष्प

पौराणिक मान्यता है कि गुड़हल का लाल पुष्प अर्पित करने से देवी प्रसन्न होकर भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करती हैं. सुर्ख लाल रंग का यह पुष्प अति कोमल होने के साथ ही असीम शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना गया है, इसलिए लाल गुड़हल देवी माँ को अत्यंत प्रिय है.

नारियल

नवरात्रि पूजा में कलश के ऊपर नारियल पर लाल कपडा और मोली लपेटकर रखने का विधान है. माना जाता है कि इससे सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. नारियल के बाहरी आवरण को अहंकार का प्रतीक और आंतरिक भाग को पवित्रता और शांति का प्रतीक माना जाता है. माँ दुर्गा के समक्ष नारियल को तोड़ने का तात्पर्य अहंकार को तोडना है.

हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है. असल में नवरात्रि का पर्व तप, त्याग, अनुशासन और शक्ति की उपासना का पर्व है. नवरात्रि का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. नवरात्रि का पहला पर्व चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है. जबकि दूसरी बार नवरात्रि अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक मनाई जाती है.

नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री

मां शैलपुत्री शैल-पुत्री मतलब पर्वत की पुत्री. पर्वत भू-तत्वात्मक है. अर्थात स्थूल से उत्पन्न होने वाली गति. स्थूल शरीर रूपा, शक्ति के साथ धैर्यवती तथा परम सहनशील हैं. पवर्तराज की पुत्री के नाम से उनका नाम शैलपुत्री हुआ. नवरात्र के प्रथम दिवस पूजी जाने वाली माता की शक्तिया अनन्त हैं वृषभ स्थिता दाहिने हाथ में त्रिषूल और बायें हाथ में कमल पुष्प सुषोभित है, यहीं रूप नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा का है.

सबसे पहले नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें. अब नारियल को कलश पर रखें. अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें. ‘हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इस में पधारें.’ अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें. धूपबत्ती कलश को दिखाएं. कलश को माला अर्पित करें. कलश को फल मिठाई अर्पित करें. कलश को इत्र समर्पित करें.

कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है. नवरात्री के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए. इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए. इसको कलश के दायीं ओर रखना चाहिए. उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए. मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें. माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए. माँ दुर्गा से प्रार्थना करें ‘हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये.’ उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए. उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें. फल, मिठाई अर्पित करें और दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए. ऐसा करने से सभी पाप एवं श्राप से मुक्ति मिलती है.

हिंदू मान्यता के अनुसार इन 9 दिनों में माता को प्रसन्न करके कई सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं. ऐसे में आप नवरात्रि में अपनी राशि के अनुसार कुछ आसान उपाय करके अपनी किस्मत चमका सकते हैं. आइए जानते हैं किस राशि के व्यक्ति को क्या उपाय करने से मिलेगा कौन सा फल.