Shardiya Navratriनवरात्र के चौथे दिन देवी भगवती के चौथे स्वरूप, मां कूष्मांडा की पूजा-अर्चना की जाएगी। मां कूष्मांडा का स्वरूप अत्यंत अद्भुत और दिव्य है, जिसकी कांति और आभा सूर्य के समान है। कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब देवी कूष्मांडा ने अपने तेज से सम्पूर्ण ब्रह्मांड का विस्तार किया और सृष्टि की स्थापना की।
मां कूष्मांडा का यह स्वरूप अन्नपूर्णा का प्रतीक है। उन्होंने शाकुंभरी रूप धारण कर धरती को शाक (सब्जियों) से समृद्ध किया, जिससे जीवन का विकास हुआ। इस प्रकार, मां कूष्मांडा का सम्बन्ध प्रकृति और पर्यावरण से भी है। वे पर्यावरण की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं, जो जीवनदायिनी ऊर्जा का संचार करती हैं।
मां कूष्मांडा की आराधना का विशेष महत्व है, क्योंकि उनके बिना जप और ध्यान का कार्य अधूरा रह जाता है। भक्तजन इस दिन विशेष रूप से शाक-सब्जी और अन्न का दान करते हैं, जो फलदायी माना जाता है। मां कूष्मांडा की उपासना से तृप्ति और तुष्टि दोनों की प्राप्ति होती है।
इस अवसर पर भक्तजन विशेष अनुष्ठान, मंत्र जाप और ध्यान करते हैं, जिससे वे मां की कृपा प्राप्त कर सकें। मां कूष्मांडा का आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में सकारात्मकता और ऊर्जा का संचार होता है।
इस दिन विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि माता कूष्मांडा की उपासना से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। भक्तजन इस दिन मां से प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें आशीर्वाद देकर जीवन में सुख, समृद्धि और संतुलन प्रदान करें। नवरात्रि के इस विशेष अवसर पर माता कूष्मांडा का नाम लेते हुए, सभी को उनकी कृपा का अनुभव हो।
उपासना का मंत्र या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
माता कूष्मांडा का प्रिय भोग:
माता कूष्मांडा का प्रिय भोग आमतौर पर स्वादिष्ट मिठाइयां और फल होते हैं। विशेष रूप से, उन्हें खीर, लड्डू, और चूरमा अर्पित किए जाते हैं। इसके अलावा, भक्तजन शाक-सब्जियों का भी भोग लगाते हैं, जो माता के अन्नपूर्णा स्वरूप को समर्पित होता है।
माता की पूजा में शुद्धता और भक्ति का विशेष ध्यान रखा जाता है, और भोग अर्पित करते समय भक्तजन प्रेम और श्रद्धा के साथ उनका नाम लेते हैं। इस प्रकार, माता कूष्मांडा की पूजा में अर्पित भोग का विशेष महत्व होता है। (NAVRATRI KA Chautha DIN)
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