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मैहर। मध्य प्रदेश के सतना जिले में विराजमान त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का शक्तिपीठ कहा जाता है। ‘मैहर का मतलब है मां का हार’। मां के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। मैहर धाम विश्व भर में प्रसिद्ध है। जिसे मां के 52 शक्तिपीठों में से एक कहा जाता है।
आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी पहली पूजा
मान्यता है मां शारदा की पहली पूजा आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। यहां हर साल शारदेय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि में मेला लगता है। जिसमें दूर-दूर से देवी भक्त अपनी अपनी मुरादें लेकर पहुचंते हैं। कहा जाता है कि, मां शारद ने कलयुग में अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर आल्हा को अमरता का वरदान दिया था, जो आज भी मां शारदा की पहली पूजा करते हैं।
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कौन थे आल्हा-उदल
आल्हा और उदल ये वो 2 भाई हैं जो परमार वंश के सामंत थे। दोनों भाइयों के बारे में सबसे अहम जानकारी कालिंजर के राजा परमार के दरबार में कवि जगनिक द्वारा लिखे गए आल्हा खंड में मिलती है। इस काव्य में दोनों भाइयों की 52 लड़ाइयों का वर्णन है। आल्हा खंड के मुताबिक आखिरी लड़ाई उन्होंने पृथ्वीराज चौहान से लड़ी थी। जिसमें यह कहा जाता है कि उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया था। वहीं बाद में अपने गुरू गोरखनाथ के कहने पर उन्होंने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था।
कहा जाता है कि, इस लड़ाई में आल्हा का भाई ऊदल वीरगति को प्राप्त हो गए थे और उसके बाद आल्हा को वैराग्य हो गया। वीरगाथा काल के आल्हा और उदल की बहादुरी के किस्से लोगों के मन में पीढ़ियों से इस तरह रच-बस गए हैं कि वह 800 वर्षों के बाद भी सजीव लगते हैं। वहीं आज भी बुंदेलखंड के महोबा जिले में ऊदल चौक से ऊदल के सम्मान में लोग घोड़े पर सवार होकर नहीं गुजरते हैं।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार आल्हा खंड के नायक आल्हा ऊदल मां शारदा के अनन्य उपासक थे। जब महोबा से आकर आल्हा ऊदल जंगल में आए तो सबसे पहले उन्हीं ने जंगल के बीच मां शारदा देवी के मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर की तलहटी में 12 साल तक तपस्या की और देवी मां को प्रसन्न किया। माता उनकी भक्ति से प्रसन्न हुई और उन्होंने अमर होने का आशीर्वाद दिया था।
देवी सती का गिरा था हार
यहां देवी सती का हार गिरा था, जिसके बाद ये मैहर माता मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर में एक हजार से ज्यादा सीढ़ियां चढ़ कर भक्त मां शारदा मंदिर पहुंच कर मां का आशीर्वाद प्राप्त करते है। वहीं यहां रोपवे की सुविधा भी उपलब्ध है। मान्यता है कि मां के दरबार मे जो भक्त अपनी अर्जी लगता है उसकी हर मुराद पूरी होती है।
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नवरात्रि में लगता है मेला
वहीं नवरात्रि के समय मैहर धाम के बाजार गुलजार दिखाई देते हैं। यहां मेला भी लगता है। जिसमें मां को चढ़ने वाला प्रसाद, रंग बिरंगी मां की चुनरी सजा कर दुकानदार रखते है। वहीं मेले के दौरान दुकानदारों को अच्छी दुकानदारी की उमीद रहती है। दर्शन करने आने वाले भक्तों का कहना होता है, मां के दरबार में हर मनोकामना पूर्ण होती है। मां के परम आल्हा मां शारदा के प्रथम आरती करते हैं। मां शारदा देवी मंदिर के पुजारी नितिन पाण्डेय ने बताया कि, मां के दर्शन करने वाले भक्तों की संख्या रोजना लाखों में रहती है। माता रानी का हरदिन अलग अलग सिंगार किया जाता है।
ऐसे पहुंचे मंदिर
मध्य प्रदेश में स्थित मैहर पर्वत का नाम प्राचीन धर्म ग्रंथों में मिलता है। 1063 सीढ़िया चढ़कर आप मां शारदा देवी के दर्शन करेंगे। यहां पर हर दिन हजारों दर्शनार्थी दर्शन करने आते हैं। सड़क मार्ग से भी भक्त पहुंच सकते हैं। वहीं 2007 से रोपवे की भी सुविधा उपलब्ध है, जिससे आप सीधा मां के दरबार पहुंच सकते हैं।
जानें इतिहास
मंदिर का इतिहास कई वर्ष पुराना है। धार्मिक ग्रंथों में अनुसार, दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी। लेकिन उनकी इच्छा राजा दक्ष को मंजूर नहीं थी। फिर भी सती ने अपनी जिद से भगवान शिव से विवाह कर लिया। इसके बाद एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु इंद्र और अन्य देवी देवताओं को आमंत्रित किया। लेकिन यज्ञ में महादेव को नहीं बुलाया।
ये बात सती को बुरी लगी और उन्होंने यज्ञ स्थल पर पहुंच कर अपने पिता दक्ष से भगवान शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा। इस पर राजा दक्ष ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। अपमान से दुखी होकर माता सती ने यज्ञ अग्नि कुंड में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी। जब इस बात का पता महादेव को लगा तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया।
इसके बाद ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। मध्य प्रदेश में भी माता सती का हार और कंठ गिरा था। इसलिए इस जगह को माई का हार यानि मैहर कहा जाता है। 52 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ मैहर मां शारदा देवी के मंदिर को कहा जाता है।
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