मुकेश मेहता, बुधनी (सीहोर)। मध्य प्रदेश को भारत का दिल कहा जाता है। प्रदेश में कई सारे धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थल मौजूद है। जहां दूर-दूर से घूमने के लिए पर्यटक आते हैं। इन्हीं में से एक है मध्यप्रदेश राज्य की राजधानी भोपाल से करीब 70 किलोमीटर दूर स्थित सलकनपुर मंदिर, जहां की मान्यता काफी ज्यादा है। यहां देशभर से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं।
यह मंदिर प्राकृतिक की गोद में बसा हुआ है। ये सीहोर जिले के बिजासन माता को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। यहां हर साल नवरात्रि के दौरान हजारों भक्तों का तांता देखने को मिलता है। इस मंदिर में बिजासन माता की एक आकर्षक मूर्ति है। इसके अलावा इस मंदिर में देवी लक्ष्मी, मां सरस्वती और भैरव देव का भी मंदिर है।
विंध्यवासनी बीजासन देवी का यह पवित्र सिद्ध शक्ति पीठ देवी ‘दुर्गा’ का है। रेहटी तहसील मुख्यालय के पास सलकनपुर गांव में 1000 फुट ऊंची पहाड़ी पर है। यह एक प्राचीन मंदिर हैं, कई चमत्कारी कथाएं और प्रसंग धार्मिक पुस्तकों में पढ़ने को मिलते हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग जिससे बाइक, कार से जा सकते हैं वही पैदल के लिए सीढ़ियां मार्ग है। जिसमें 1000 से ज्यादा सीढ़ियां हैं। यहां रोपवे की सुविधा भी नागरिकों के लिए उपलब्ध है। इसका रख रखाव सलकनपुर ट्रस्ट की करती है।
सलकनपुर विजायासन धाम के प्राकट्य की कथा
श्रीमद् भागवत के अनुसार जब रक्तबीज नामक देत्य से त्रस्त होकर जब देवता देवी की शरण में पहुंचे तो देवी ने विकराल रूप धारण कर लिया और इसी स्थान पर रक्तबीज का संहार कर उस पर विजय पाई। मां भगवति की इस विजय पर देवताओं ने जो आसन दिया, वही विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ। मां का यह रूप विजयासन देवी कहलाया।
सलकनपुर मंदिर निर्माण की कथा
करीब 300 वर्ष पूर्व पशुओं का व्यापार करने वाले बंजारे इस स्थान पर विश्राम और चारे के लिए रूके। अचानक ही उनके पशु अदृष्य हो गए। बंजारे पशुओं को ढूंढने के लिए निकले, तो उनमें से एक वृद्ध बंजारे को एक कन्या मिली। कन्या के पूछने पर वृद्ध बंजारे ने सारी बात कही। तब कन्या ने कहा कि आप यहां देवी के स्थान पर पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं। बंजारे ने कहा कि हमें नहीं पता है कि मां भगवति का स्थान कहां है। तब कन्या ने संकेत स्थान पर एक पत्थर फेंका। जिस स्थान पर पत्थर फेंका वहां मां भगवति के दर्शन हुए। उन्होने मां भगवति की पूजा-अर्चना की। कुछ ही क्षण बाद उनके खोए पशु मिल गए। मनोकामना पूरी होने पर चमत्कार से अभिभूत बंजारों ने मंदिर का निर्माण करवाया। इसके बाद पहाड़ी के नीचे ग्रामीणों का आना जाना शुरू हो गया और मनोकामनाएं पूरी होने के कारण भक्तों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है।
सलकनपुर की मान्यता- पुकार कभी खाली नहीं जाती
मां बिजासन के दरबार में दर्शनार्थियों की कोई पुकार कभी खाली नहीं जाती है। माना जाता है कि मां विजयासन देवी पहाड़ पर अपने परम दिव्य रूप में विराजमान हैं। विध्यांचल पर्वत श्रंखला पर विराजी माता को विध्यवासिनी देवी भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार देवी विजयासन माता पार्वती का ही अवतार हैं, जिन्होंने देवताओं के आग्रह पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया था और सृष्टि की रक्षा की थी। विजयासन देवी को कई लोग कुलदेवी के रूप में भी पूजते हैं।
500 सालों से अखंड जल रही ज्योति, सूर्य-चंद्रमा की तरह अटल
गर्भगृह में लगभग 500 वर्षों से अधिक समय से 2 अखंड ज्योतियां आज भी प्रज्वलित हैं- एक नारियल के तेल और दूसरी घी की। ये साक्षात जोतें देवी रूप में हैं। इन ज्योतियों को लेकर यह भावना है कि ये सूर्य और चंद्रमा की तरह अटल हैं, जबकि भक्त इन अखंड ज्योतियों को मां का स्वरूप मानकर पूजा करते हैं। मंदिर के भीतर गर्भगृह के ठीक सामने भैरव बाबा की मूर्ति की स्थापना है, जहां भक्त माता के दर्शनों को पूर्ण और सार्थक मानते हैं।
मंदिर में ही भैरव बाबा की मूर्ति के किनारे एक धूनी है, जो 500 सालों से अखंड जल रही है। इस जलती धूनी को स्वामी भद्रानंद और उनके शिष्यों ने प्रज्वलित किया था और तभी से इस अखंड धूनी की भस्म अर्थात राख को ही महाप्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
मंदिर समिति द्वारा महाप्रसाद के पैकेट के रूप में भक्तों को इसे न्योछावर कर दिया जाता है। मान्यता है कि इस महाप्रसाद की भस्म में समस्त रोग-दोष, विपत्तियां-कष्ट और पारिवारिक समस्याओं को मिटाने की अद्भुत महाशक्ति है, जिसे भक्त पूर्ण श्रद्धा से प्राप्त कर अपने निवास के पूजाघर में सदा रखते हैं।
तुलादान
मंदिर में जो भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए तुलादान कराना चाहते हैं, उनके लिए तुलादान कराने वाले भक्त के बराबर गुड़, अनाज, फल, सोना, चांदी, सिक्के या अन्य वस्तुएं श्रद्धा और मान्यता के अनुसार तुलादान कराकर मंदिर को दान की जाती हैं। अनेक भक्त तुलादान सामग्री स्वयं अपने घरों से व्यवस्था करके लाते हैं जबकि जो नहीं लाते, वे मंदिर ट्रस्ट को उसका मूल्य चुकाकर उक्त सामग्री प्राप्त कर तुलादान कराकर दान करके अपनी मनोकामना पूर्ति का लक्ष्य पूरा करते हैं।
यहां लगता है पशु मेला
आपको बता दें कि फरवरी के महीने में सलकनपुर में माघ मेला आयोजित किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां विजयासन दरबार में अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद जमाल चोटी उतारने के लिए और तुलादान करने के लिए शामिल होते हैं। सलकनपुर माघ मेला एक बहुत बड़ा पशु मेला है। इस मेले में बड़ी संख्या में पशु विक्रेता- क्रेता शामिल होते हैं। इसलिए इस मेले को पशुओं की बिक्री का मेला भी कहते हैं।
महाकाल लोक की तर्ज पर बनेगा देवी लोक
सीहोर के सलकनपुर में स्थित विजयासन देवी धाम देशभर में आस्था के एक बड़े केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है। उज्जैन के महाकाल लोक की तर्ज पर सलकनपुर में देवी लोक का निर्माण किया जा रहा है। देवी लोक में देवी के नौ रूपों और 64 योगिनियों को शास्त्रों में वर्णित कथाओं के साथ आकर्षक रूप में प्रदर्शित किया जाएगा। साथ ही यहां आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अनेक निर्माण और विकास के कार्य कराए जा रहे हैं। अभी मंदिर पर देवीलोक का कार्य प्रगति पर है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 300 करोड़ रुपए स्वीकृत किए, जिसका पहला फेस का कार्य 90 प्रतिशत पूर्ण हो चुका है।
कैसे पहुंचे विंध्यवासनी बीजासन देवी सलकनपुर मंदिर
भोपाल-नसरुल्लागंज रोड पर राजा भोज एयरपोर्ट भोपाल से 70 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। ट्रेन के जरिए बुदनी रेलवे स्टेशन से 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। आप होशंगाबाद (38 किलोमीटर की दूरी) या भोपाल स्टेशन (70 किलोमीटर की दूरी) पर भी उतर सकते हैं। सड़क मार्ग के जरिए भोपाल से 70 किलोमीटर और होशंगाबाद से 38 किलोमीटर की दूरी पर रेहटी बुधनी रोड पर स्थित है।
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