रायपुर। दंतेश्वरी देवी मंदिर एक पूर्वमुखी मंदिर है और दंतेवाड़ा में शंखिनी और डंकिनी नदियों के संगम पर स्थित है. मंदिर में गर्भगृह, अंतराल, मुखमंडप, मुक्तिमंडप (दर्शक दीर्घा) और नटमंडप जैसे घटक शामिल हैं. गर्भगृह, अंतराल और मुखमंडप का निर्माण पत्थर से किया गया था, जबकि मुक्तिमंडप और नटमंडप का निर्माण टेराकोटा टाइलों से ढके 32 लकड़ी के खंभों की मदद से पिरामिड के आकार में किया गया था.

दंतेश्वरी देवी मंदिर की मुख्य प्रतिमा छह भुजाओं वाली महिषासुरमर्दिनी काले पत्थर में उकेरी गई है. मंदिर के प्रवेश द्वार पर गरुड़ स्तंभ खड़ा है. वर्तमान नटमंडप में एक भैरव मंदिर है, जो अतीत में मुख्य दंतेश्वरी मंदिर से अलग था. लेकिन बाद के काल में नटमंडप के निर्माण के दौरान भैरव मंदिर इसके अंदर आ गया, और यह आज भी अस्तित्व में है.

सुनी-सुनाई बात

ऐसी मान्यता है कि वारंगल के राजा अन्नमदेव के छोटे भाई अन्नमदेव जब वारंगल से यहां आए थे, तो उन्हें दंतेश्वरी माता का वरदान मिला था कि उनका राज्य अन्नमदेव तक ही फैलेगा और देवी उनके पीछे-पीछे आएंगी, जहां तक ​​अन्नमदेव चलेंगे, लेकिन एक शर्त थी. वो ये कि वो पीछे मुड़कर नहीं देख सकते, अगर वो पीछे मुड़कर देखेंगे तो देवी को वहीं स्थापित होना होगा.

अनमदेव कई दिन और रात चलते रहे, चलते-चलते जब डंकिनी शंखनी नदी के संगम पर पहुंचे तो नदी के पानी में डूबे पैरों में पायल की आवाज पानी के कारण नहीं आ रही थी, तब अन्नमदेव ने पीछे मुड़कर देखा. जिसके बाद देवी ने आगे बढ़ने से मना कर दिया. वचन के अनुसार अन्नमदेव ने डंकिनी शंखनी के संगम के पास मां के लिए एक मंदिर बनवाया, तब से मां की मूर्ति वहीं विराजमान है.

पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार एक दिन महादेव शिव की पत्नी माता सती अपने पिता दक्ष के एक बड़े यज्ञ में गईं और इस यज्ञ में दक्ष ने माता सती के पति भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया, क्योंकि वे शिव को भगवान नहीं मानते थे. माता सती अपने पति शिव का यह अपमान सहन नहीं कर सकीं और यज्ञ की अग्नि में समा गईं और अपनी देह त्याग दी. जब भगवान शिव ने यह देखा तो उनका तीसरा नेत्र खुल गया और उन्होंने सती के जलते शरीर को लेकर तांडव नृत्य शुरू कर दिया. सभी देवता यह देखते रहे और कोई उन्हें रोक नहीं सका. तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 52 टुकड़ों में विभाजित कर दिया. शरीर के सभी टुकड़े धरती पर अलग-अलग स्थानों पर गिरे और उन स्थानों पर बाबा भैरव बाबा जी ने शक्तिपीठों की स्थापना की. उन्हीं शक्तिपीठों में से एक दंतेवाड़ा माना जाता है, माता सती के दांत टूटने के कारण उस स्थान का नाम दंतेवाड़ा पड़ा और माता का नाम दंतेश्वरी पड़ा. हालांकि पौराणिक मान्यताओं में 52 शक्तिपीठों में दंतेश्वरी मंदिर का जिक्र नहीं मिलता है.

इतिहास

इस मंदिर का निर्माण बस्तर के छिंदक नागवंशी शासकों ने करवाया था. जतनपाल नामक एक पुरातात्विक स्थल से प्राप्त 1224 ई. के एक शिलालेख से पता चलता है कि देवी मणिकेश्वरी उक्त छिंदक नागवंशी राजा नरसिंह जगदेक भूषण की कुलदेवी थीं. भैरमगढ़ के शिलालेख के अनुसार, देवी दंतेश्वरी उस समय मणिकेश्वरी देवी के नाम से जानी जाती थीं. 11वीं-12वीं शताब्दी ई. में निर्मित इस मंदिर का 14वीं शताब्दी ई. में वारंगल के प्रतापरुद्र के भाई अन्नमदेव ने जीर्णोद्धार करवाया था.

कैसे पहुँचे

हवाई अड्डा
दंतेवाड़ा जिले से 86 किमी दूर जगदलपुर (शहर) स्थित हवाई अड्डा सबसे निकटतम है.

रेलवे स्टेशन
दंतेवाड़ा (शहर) रेलवे स्टेशन मंदिर/शहर से महज 1 किमी दूर स्थित है.

बस स्टेशन
दंतेवाड़ा (शहर) सिटी बस स्टैंड मंदिर से 500 मीटर दूर स्थित है.

शारदीय नवरात्र पर्व 2024 का पूजन कार्यक्रम

दिनांकदिनतिथिसमयकार्यक्रम का विवरण
03.10.2024गुरुवारप्रतिपदाप्रात: से रात्रि 2:42  बजे तकविक्रम संवत 208१ संकल्प माँ दुर्गा, गणेश , वरुण , नवग्रह अष्टादस , मातृका पूजन एवं ज्योति कलश स्थापना एवं पूजन तथा दीप प्रज्वलन
04.10.2024शुक्रवारद्वितीयाद्वितीया पूजन
05.10.2024शनिवारतृतीयातृतीया पूजन
06.10.2024रविवारचतुर्थीचतुर्थी  पूजन
07.10.2024सोमवारपंचमीप्रात: से रात्रि 9:30  बजे तकपंचमी पूजन
08.10.2024मंगलवारषष्ठीषष्ठी पूजन
09.10.2024बुधवारसप्तमीसप्तमी पूजन
10.10.2024गुरुवारअष्टमीदिन के  दोपहर 12:30 बजे से दिनांक 11.10.2024 के दिन 12:22 तकमहाअष्टमी पूजन (चंडीपाठ ,हवन, पूजन )
11.10.2024शुक्रवारनवमीप्रात:  8:00  बजे  सेश्री महानवमी पूजा ( दुर्गा नवमी ), चंडी पाठ
हवन एवं पूर्णाहुति
नवकन्या पूजन
भंडारा प्रसाद वितरण
ज्योति कलश विसर्जन