Sharadiya Navratri 2024, Maa Tarkulha Devi Temple, अमन शुक्ला. शक्ति आराधना के महापर्व नवरात्रि में देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है. लोग नौ दिनों तक भगवती जगदम्बा की अर्चना करते हैं. श्रद्धालु उन्हें अलग-अलग रूप और नामों से पूजते हैं. देशभर में स्थापित देवी मंदिरों की अपनी-अपनी मान्यता है. सबका अपना इतिहास है. ऐसा ही एक मंदिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित है. जिसे मां तरकुलहा देवी मंदिर (Maa Tarkulha Devi Temple) के नाम से जाना जाता है. ये मंदिर जिला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर दूर है.
गोरखपुर में स्थित तरकुलहा देवी का मंदिर (Maa Tarkulha Devi Temple) विशेष महत्व रखता है. ये मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम का भी महत्वपूर्ण स्थल रहा है. मंदिर की कहानी चौरीचौरा तहसील क्षेत्र के डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह से जुड़ी है. बाबू बंधु सिंह (Babu Bandhu Singh) महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. बाबू बंधु सिंह ने अंग्रेजों से बचने के लिए जंगल में छिपकर तरकुल के पेड़ (Tarkul tree) के नीचे एक पिंडी स्थापित की थी. यहीं से उन्होंने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को आगे बढ़ाया. उन्होंने कई अंग्रेज अफसरों को हराया. उनके बलिदान के दौरान तरकुल का पेड़ टूट गया, जिससे खून बहने लगा. तभी से इस पिंडी को तरकुलहा देवी के नाम से जाना जाने लगा.
7 बार टूटा था फांसी का फंदा
जानकारी के मुताबिक बंधु सिंह को जब फांसी दी जा रही थी तब 7 बार फांसी का फंदा टूटा था. अंततः बंधु सिंह ने देवी मां से प्रार्थना की और कहा कि हे मां मुझे अपने चरणों में बुला ले. तब उन्होंने खुद ही अपने गले में फंदा डाला और वीरगति को प्राप्त हुए. ये स्थल आज भी श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है. मंदिर अब भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुका है. मां दुर्गा का आशीर्वाद श्रद्धालुओं को हमेशा मिलता रहा है और शहीद बंधु सिंह के बलिदान ने इस स्थान की मान्यता को और बढ़ाया है. तरकुलहा देवी मंदिर आज एक प्रेरणादायक स्थल है, जहां भक्त अपनी श्रद्धा के साथ आते हैं और मां के चरणों में माथा टेकते हैं
कहा जाता है कि मां के दरबार में जो भी मुराद मांगी जाती है, वो पूरी होती है. नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है, जो मां की कृपा पाने के लिए दूर-दूर से आते हैं.
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