रायपुर. हर साल माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी का व्रत किया जाता है. पद्म पुराण के अनुसार, इस दिन उपवास करके तिलों से ही स्नान, दान, तर्पण और पूजा की जाती है. इस दिन तिल का इस्तेमाल स्नान, प्रसाद, भोजन, दान, तर्पण आदि सभी चीजों में किया जाता है. तिल के कई प्रकार के उपयोग के कारण ही इस दिन को षटतिला एकादशी कहते हैं.

हिन्दू धर्म के अनुसार तिल बहुत पवित्र माने जाते हैं और पूजा में इनका विशेष महत्व होता है. छ: प्रकार से तिलों के उपयोग के कारण ही इस एकादशी का नाम षटतिला एकादशी पड़ा. तिल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन करना, तिल से तर्पण करना, तिल का भोजन करना, तिलों का दान करना.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार षट्तिला एकादशी के दिन जो भी व्यक्ति व्रत करता है उसे तिलों से भरा घडा़ भी ब्राह्मण को दान करना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि श्रद्धा भाव से षटतिला एकादशी का व्रत रखने से सभी पापों का नाश होता है. माघ मास में पूरे माह व्यक्ति को अपनी समस्त इन्द्रियों पर काबू रखना चाहिए. काम, क्रोध, अहंकार और बुराई का त्याग कर भगवान की शरण में जाना चाहिए.

षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है. पद्म पुराण के अनुसार चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए. उसके बाद श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़ा, नारियल अथवा बिजौर के फल से विधि विधान से पूज कर अर्घ्य देना चाहिए. रात्रि में गोबर के कंडों से हवन करें.

एकादशी के दिन रात्रि को 108 बार “ऊं नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र से उपलों को हवन में स्वाहा करना चाहिए. रात भर जागरण करके भगवान का भजन करें. अगले दिन भगवान का भजन-पूजन करने के पश्चात खिचडी़ का भोग लगाएं. ब्राह्मणों को भोजन कराएं एवं तिल का दान दें. इस दिन तिल पट्ठी का सागार लिया जाता है.

फल- षटतिला एकादशी व्रत करने से मनुष्य का सौभाग्य बढ़ता है. कष्ट तथा दरिद्रता दूर होती है. विधिवत तरीके से व्रत रखने से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है.