अविनाश श्रीवास्तव/रोहतास, सासाराम। मुख्यालय में स्थित शेरशाह का मकबरा न सिर्फ रोहतास जिले की पहचान है, बल्कि भारतीय इतिहास और वास्तुकला का एक अद्वितीय उदाहरण भी है। 1540 से 1545 के बीच निर्मित यह भव्य मकबरा लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है। लगभग 122 फीट ऊंचा यह स्मारक सासाराम की एक विशाल कृत्रिम झील के बीच स्थित है, जो इसे और भी आकर्षक बनाता है। अपनी सौंदर्य कला और भव्य संरचना के कारण इसे भारत का दूसरा ताजमहल भी कहा जाता है। शेरशाह सूरी ने इस मकबरे का निर्माण अपने जीवनकाल में ही शुरू करवाया था। उनका उद्देश्य था कि यह स्मृति स्थल आने वाली पीढ़ियों को उनके शासन और दूरदर्शिता की याद दिलाता रहे। लेकिन किस्मत ने उन्हें अपने ही बनाए इस महान स्मारक को तैयार रूप में देखने का अवसर नहीं दिया। 22 मई 1545 को कालिंजर किले की घेराबंदी के दौरान बारूद विस्फोट में उनकी मौत हो गई। उनके निधन के बाद इस मकबरे का निर्माण पूरा कराया गया।

यह मकबरा केवल एक स्थापत्य धरोहर नहीं, बल्कि शेरशाह सूरी की प्रशासनिक दक्षता और विकासवादी सोच का भी प्रतीक है। इतिहास में उन्हें एक कुशल शासक के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने ग्रैंड ट्रंक रोड जैसी महत्वपूर्ण सड़क व्यवस्था का विस्तार किया, जो आज भी एशिया की प्राचीनतम मार्ग श्रृंखलाओं में गिनी जाती है।

मकबरे की दीवारों पर की गई नक्काशियां, उसकी ऊंचाई, उसकी योजना और झील के बीच का शांत वातावरण इसे भारत के सर्वश्रेष्ठ पर्यटक स्थलों में शामिल करता है। देशभर से आने वाले पर्यटक और इतिहास प्रेमी यहाँ न सिर्फ कला का आनंद लेते हैं, बल्कि सूरी वंश की गौरवशाली कहानी को भी महसूस करते हैं। शेरशाह का मकबरा आज भी रोहतास ही नहीं, पूरे देश की धरोहर है जो इतिहास, कला और शौर्य का अनमोल संगम प्रस्तुत करता है।

वही मकबरे को देखने पहुंचे अनिरुद्ध सिंह ने कहा कि सासाराम का शेरशाह सूरी मकबरा सिर्फ ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि भारत-अफगान वास्तुकला का अनोखा नमूना है। तालाब के बीच स्थित यह मकबरा शहर की पहचान है। उन्होंने इसके संरक्षण और पर्यटन विकास पर ज़ोर देते हुए स्थानीय लोगों से धरोहर बचाने की अपील की। भभुआ से पहुंचे सत्यम ने बताया कि देश में आगरा का ताजमहल के बाद सासाराम का शैरशाह मकबरा दिखता है और एक अलग पहचान है इसका सरकार से में अपील करता हूं इसे और बढ़िया बनाएं आसपास कचरे का अभाव भी है जिसे गंध मारता है.