रायपुर। शिक्षाकर्मियों को भविष्य में सरकार पर दबाव बनाने के लिए हड़ताल जैसा कदम उठाने से रोकने के लिए जारी किए गए आदेश के विरोध में शिक्षाकर्मियों में रोष है. शिक्षाकर्मी नेताओं ने एक स्वर में कहा है कि वे सरकार के इस आदेश का विरोध करेंगे.

आपको बता दें कि जशपुर में शिक्षाकर्मी के 298 पदों पर निकाली गई भर्ती में चयनित अभ्यर्थियों को जिला पंचायत द्वारा नियुक्ति पत्र भेजा गया. नियुक्ति पत्र की कंडिका 4 में सरकार द्वारा एक नई शर्त जोड़ी गई थी जिसके अनुसार वे भविष्य में कभी हड़ताल नहीं कर पाएंगे. कंडिका में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ पंचायत सेवा ( आचरण) नियम 1998 के नियम 5 (दो) में प्रावधान अनुसार- “कोई भी पंचायत सेवर अपनी सेवा या किसी अन्य पंचायत सेवक की सेवा से संबंधित किसी मामले के संबंध में ना तो किसी तरह की हड़ताल का सहारा लेगा और ना ही किसी प्रकार से उसे अभिप्रेरित करेगा.”

शिक्षाकर्मियों को 11 बिंदुओं की शर्तों पर 10 रुपए के स्टांप पेपर पर शपथ पत्र बीईओ कार्यालय में 25 दिसंबर तक जमा करने के लिए कहा गया है.

ये कहा शिक्षाकर्मी नेताओं ने

इस मामले में शिक्षाकर्मी नेताओं ने इस नए आदेश का विरोध किया है. शिक्षाकर्मी नेता विरेन्द्र दुबे ने इसे सरकार का षड़यंत्र करार दिया है लल्लूराम डॉट कॉम से बातचीत में उन्होंने कहा है कि संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी मिली है. सरकार द्वारा यह शिक्षाकर्मियों की खबर को दबाने की कोशिश की गई है. जिसका हम पुर जोर विरोध करते हैं. शिक्षाकर्मियों की छोटी-छोटी बहुत सी समस्याएं हैं जिनमें समय पर वेतन नहीं मिलना है, कई-कई महीने हमें वेतन नहीं दिया जाता. इस तरह की समस्याएं को सरकार के सामने रखने के लिए हमारे पास एक मात्र यही रास्ता है. उन्होंने कहा कि सरकार का यह षड़यंत्र है हमारी आवाज दबाने के लिए. हम इस आदेश का विरोध करेंगे अगर सरकार ने हमारी आवाज को दबाने की कोशिश की तो हम कोर्ट की शरण लेंगे.

उधर शिक्षाकर्मी नेता संजय शर्मा ने इस आदेश को तुगलकी आदेश बताते हुए कहा है कि हम ऐसे तुगलकी फरमान से नहीं डरते हैं. उन्होंने कहा है कि हमारी पहले से सेवा शर्तों में उसका उल्लेख है उसी शर्त को आधार बना कर सरकार हमारे ऊपर निलंबन और बर्खास्तगी जैसी कार्रवाई करती है. सरकार अगर सोचती है कि इस तरह के आदेश से शिक्षाकर्मी डर जाएंगे तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. शिक्षाकर्मी तभी आंदोलन करते हैं जब उनकी जरुरतों की अवहेलना की जाती है, उनकी बातों को अनसुना कर दिया जाता है या फिर उनके साथ अन्याय होता है. इस तरह की शर्तें सभी शासकीय सेवाओं में रहती है उसके बावजूद अपनी मागों के लिए सब हड़ताल करते हैं. सभी को अभिव्यक्ति की आजादी संविधान ने दिया है. उन्होंने कहा कि जरुरत पड़ेगी तो हम हड़ताल भी करेंगे और कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाएंगे.