दिल्ली नगर निगम (MCD) की 2022-23 की ऑडिट रिपोर्ट(Audit report) में बड़े पैमाने पर वित्तीय गड़बड़ियां उजागर हुई हैं। बुधवार को स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में पेश इस रिपोर्ट में बताया गया कि वित्तीय अनियमितताओं और राजस्व की गैर-वसूली के चलते निगम को 312.5 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। ऑडिट में सामने आया कि कचरा प्रबंधन, विज्ञापन नीति और कर संग्रहण में गंभीर लापरवाही की गई। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नियम लागू होने के बावजूद यूज़र चार्ज वसूली नहीं हुई, जिससे निगम को 155 करोड़ रुपये से ज्यादा का घाटा उठाना पड़ा। वहीं, विज्ञापन विभाग की कमियों ने भी निगम की जेब पर भारी असर डाला और 122 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ।

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इसके अलावा, फ्लोर एरिया रेशियो, कन्वर्ज़न चार्ज और पार्किंग शुल्क जैसी मदों से भी करोड़ों रुपये की राजस्व वसूली नहीं हो सकी। कई ठेकेदारों को बिना गुणवत्ता जांच और चालान के करोड़ों रुपये का भुगतान कर दिया गया। अधिकारियों का कहना है कि ये आंकड़े फिलहाल ऑडिटरों की प्रारंभिक टिप्पणियां हैं। स्टैंडिंग कमेटी की समीक्षा और सुझावों के बाद ही रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाएगा। हालांकि, रिपोर्ट ने साफ कर दिया है कि निगम की वित्तीय व्यवस्था में बड़े पैमाने पर सुधार की जरूरत है।

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ऑडिट में देरी, फिर भी खुली पोल

दिल्ली नगर निगम (MCD) की ऑडिट प्रक्रिया पिछले दो सालों से ठप पड़ी थी। वजह थी स्टैंडिंग कमेटी का गठन न हो पाना, जो राजनीतिक और कानूनी विवादों में फंस गया था। मई 2022 में पूर्व, दक्षिण और उत्तर—तीनों निगमों के एकीकरण के बाद अब जाकर पहली बार यह ऑडिट रिपोर्ट पेश की गई है। 18 सदस्यों वाली स्टैंडिंग कमेटी इस रिपोर्ट और अन्य लंबित ऑडिट की जांच करेगी। मुख्य ऑडिटर वर्षा तिवारी ने बताया कि रिपोर्ट में सात विभागों से जुड़े 77 ऑडिट पैराग्राफ शामिल हैं, जिनमें कुल 312.5 करोड़ रुपये की अनियमितताएं सामने आई हैं।

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कचरा प्रबंधन में लापरवाही, 155 करोड़ से ज्यादा का नुकसान

ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नियम, 2016 लागू होने के बावजूद MCD ने कचरा संग्रहण के लिए यूजर चार्ज वसूली की व्यवस्था सही तरीके से लागू नहीं की। दक्षिणी क्षेत्र में कमर्शियल यूनिट्स से शुल्क वसूली में गड़बड़ी की वजह से 84.9 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। वहीं, सेंट्रल ज़ोन में भी चार साल पहले अधिसूचित नियमों का पालन न करने और न्यूनतम यूजर फी न वसूलने से 70.23 करोड़ रुपये का अतिरिक्त घाटा दर्ज हुआ।इस तरह सिर्फ कचरा प्रबंधन में लापरवाही के कारण एमसीडी को कुल 155 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान झेलना पड़ा।

विज्ञापन नीति में खामी, 122 करोड़ का नुकसान

ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, MCD का विज्ञापन विभाग भी बड़ी चूक का शिकार हुआ। 2017 की आउटडोर विज्ञापन नीति के तहत राजस्व हिस्सेदारी की सही वसूली न होने के कारण निगम को 122.4 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। सिर्फ IGI एयरपोर्ट पर विज्ञापनों से 81.97 करोड़ रुपये की कमाई होनी चाहिए थी, लेकिन यह राशि वसूल नहीं की गई। बस क्यू शेल्टर विज्ञापनों से 40.42 करोड़ रुपये की कमी रही। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह वसूली समय पर और पूरी तरह से होती, तो यह राशि MCD की आय बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभा सकती थी। लेकिन लापरवाही ने निगम की वित्तीय हालत और कमजोर कर दी।

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छोटी-छोटी चूक से बड़ा घाटा

ऑडिट रिपोर्ट ने दिखाया कि एमसीडी की कई छोटी-छोटी लापरवाहियां करोड़ों का नुकसान करा गईं।

फ्लोर एरिया रेशियो, कन्वर्जन और एकमुश्त पार्किंग शुल्क की कम या गैर-जमा राशि से निगम को लगभग 9 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।

संशोधित लाइसेंस शुल्क संरचना समय पर अपलोड न करने से 3 करोड़ रुपये की वसूली अटक गई।

कोविड-19 काल में दिल्ली सरकार से हाउसकीपिंग और स्वच्छता सेवाओं के लिए 3.37 करोड़ रुपये की राशि नहीं मिल सकी।

प्रॉपर्टी TAX और उस पर ब्याज की देर से वसूली के चलते भी निगम को करीब 2.9 करोड़ रुपये का नुकसान सहना पड़ा।

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ठेकेदारों को मनमाना भुगतान

ऑडिट रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि एमसीडी ने ठेकेदारों को डिलीवरी चालान के बिना 3 करोड़ रुपये और बिना गुणवत्ता आश्वासन के 1.64 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया। यह लापरवाही निगम की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है।एमसीडी के एक अधिकारी ने सफाई देते हुए कहा कि यह केवल ऑडिटरों की प्रारंभिक टिप्पणियां हैं। स्टैंडिंग कमेटी की समीक्षा और टिप्पणियों के बाद ही रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाएगा। फिलहाल इतना तय है कि इन खामियों ने एमसीडी की वित्तीय स्थिति को कमजोर किया है और निगम की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाए हैं।