Shradh Before Death: हिंदू धर्म में श्राद्ध का महत्व पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष से जुड़ा हुआ है. सामान्यतः श्राद्ध का कार्य संतान या वंशज करते हैं, लेकिन कई बार यह सवाल उठता है कि क्या कोई व्यक्ति अपनी मृत्यु से पहले स्वयं भी अपना श्राद्ध कर सकता है. शास्त्रों में इस पर स्पष्ट उल्लेख मिलता है और कुछ विशेष परिस्थितियों में यह संभव बताया गया है.
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Shradh Before Death
क्या है जीवितक श्राद्ध की परंपरा?
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जिस व्यक्ति के संतान नहीं होती या वंश आगे बढ़ाने वाला कोई उत्तराधिकारी नहीं होता, वह अपने जीवनकाल में ही श्राद्ध कर्म कर सकता है. इसे जीवितक श्राद्ध कहा जाता है. गरुड़ पुराण और अन्य ग्रंथों में इसका उल्लेख है कि ऐसा करने से मृत्यु के बाद आत्मा को पितृलोक की यात्रा में कोई बाधा नहीं आती और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
किन परिस्थितियों में किया जा सकता है अपना श्राद्ध (Shradh Before Death)
जिन व्यक्तियों को यह आशंका हो कि उनके बाद श्राद्ध करने वाला कोई नहीं रहेगा, वे भी मृत्यु से पहले श्राद्ध कर सकते हैं. इसे धार्मिक दृष्टि से शुभ माना गया है. जीवितक श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है. परिवार में शांति बनी रहती है और व्यक्ति की आत्मा निर्भय होकर आगे की गति को प्राप्त करती है.
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शास्त्रों और पुराणों में क्या कहा गया है (Shradh Before Death)
पंडितों का मानना है कि जीवितक श्राद्ध केवल संतानहीन व्यक्तियों या विशेष परिस्थितियों वाले लोगों को ही करना चाहिए. सामान्य व्यक्ति को अपने वंशजों पर विश्वास रखकर श्राद्ध का विधान उन्हीं के हाथों संपन्न होने देना चाहिए.
धार्मिक मान्यता और आत्मिक लाभ (Shradh Before Death)
आज के समय में भी कई साधु-संत और गृहस्थ अपनी अंतिम इच्छा के रूप में जीवितक श्राद्ध का आयोजन करते हैं. यह परंपरा धार्मिक आस्था, आत्मिक शांति और मृत्यु के बाद की गति को सहज बनाने के लिए शास्त्रों द्वारा स्वीकृत है.
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