वर्षों से मीडिया में कार्यरत् हूँ. इस दौरान मुझे हमेशा यही लगा है कि श्री हनुमान एक बहुत अच्छे संवाददाता हैं। वो कैसे हैं आज हम इसी पर चर्चा करेंगे। श्री हनुमान का प्रवेश किष्किंधा कांड में होता है। शबरी के सुझाव एवं जटायु के संकेत पर सूचना थी की दक्षिण दिशा की ओर सीता का हरण कर लंकेश्वर रावण गया है।
“लै दक्षिण दिशा गयेऊ गोसाई “
हनुमान जी की मध्यस्थता में अग्नि को साक्षी रखकर श्री राम एवं सुग्रीव की मित्रता हुई। उसके बाद शुरू हुआ सीता अन्वेषण का कार्य। दक्षिण की ओर सबसे श्रेष्ठ दल अनुभवी जामवन्त, ऊर्जावान युवा शक्ति अंगद, संवादशैली में निपुण बल और विवेक के सम्यक सन्तुलन स्वरूप श्री हनुमान को मिशन सीता अन्वेषण के लिए चयनित किया गया। आज के समय में विश्वसनीय ख़बर के लिए हमें ग्राउंड जीरो पर जा कर रिपोर्टिंग करनी पड़ती है। कई खबर में हमें उसके तह तक जाने के लिए अपने सूत्र बनाने पड़ते हैं। अपने संवादशैली से अपने लक्ष्य तक पहुंचने का प्रयास किया जाता है। वैसे ही श्री हनुमान सीता माता की खोज में निकलते हैं, जैसे हम मीडियाकर्मी किसी घटना के बाद की निकल पड़ते हैं। श्री राम ने आशीर्वाद के साथ हनुमान जी को एक मुद्रिका दी। इस मुद्रिका को आप अपने ध्यान में रखेंगे। इस पर आप से आगे मैं चर्चा करूँगा। उल्लेख यह भी मिलता है की प्रभु श्री राम ने हनुमान जी के कान में कुछ बोलते हैं-
“बिसरत नहीं मोहे लगन कान की
इस विषय को भी हम ध्यान में रखते है और इस तरह हनुमान जी अपने मिशन पर निकल पड़ते हैं। आपने देखा होगा की जब किसी राष्ट्र में कोई विषम परिस्थिति या आपात स्थिति का वातावरण बनता है तो बड़ी हलचल रहती है, उसकी सुरक्षा बढ़ा दी जाती है बाह्य और आंतरिक सुरक्षा सख्त कर दिया जाता है। जगह-जगह बेरिकेट लगा दिए जाते हैं। ऐसी ही स्थिति लंका की थी। उस समय सीता हरण कोई साधारण घटना नहीं थी, अवधराज जिसकी अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ता से कुबेर भी सोचने को बाध्य होते थे। इक्ष्वाकु वंश कीर्तिध्वज महाराज दशरथ की कुलवधू का अपरहण था। वह भी अंदर से भयभीत था वह सोचा भी करता था। इसलिए उसने सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी थी। समुद्र मार्ग में तीन बैरिकेड लगाए गए थे। माता सीता की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी त्रिजटा को दी गई थी। श्री हनुमान जब पहले बैरिकेट को पार करने लगे तो वहां उन्हें सुरसा मिल। सुरसा ने कहा कि तुम मेरे भोजन हो..। यहां हनुमान जी का संवादचातुर्य संवाद शैली सराहना योग्य है। कोई भी महिला कितनी भी क्रूर निष्ठुर क्यो न हो, कोई उसको कोई ललक कर माँ कह देता है तो उसकी ममता छलकने लगती है। हनुमान जी ने यहां सुरसा को माई कहा।
“सत्य कहौ मोहि जान दे माई”
जब वो नहीं मानी तब उन्होंने अपने प्रभाव से अपना अस्तित्व का बोध कराया और रावण की सुरक्षा का पहला बेरिकेट हनुमान जी ने तोड़ा। उसे भारतीय संस्कृति की दिव्यता का लोहा मानने ने विवश कर दिया।
“राम काज सब करिहौं बल बुद्धि निधान”
आगे ही चले थे कि दूसरा बेरिकेट आ गया। श्री हनुमान ने अनुभव किया की कुछ अलग प्रभाव क्षेत्र में वो आ गए हैं, रुक से गए हैं। कोई बल उन्हें नीचे की तरफ खींच रहा है। तत्परता से उन्होंने अपने आप को उसके प्रभाव से अलग किया और स्थिति को समझने का प्रयास किया। उस बेरिकेट में बहुत विचित्रता थी। आप किसी व्यक्ति को पकड़कर उसकी छाया पकड़ सकते है, पर किसी की छाया को पकड़कर कैसे व्यक्ति को पकड़ सकते हैं परंतु ऐसा करने में सिंहिका सक्षम थी। एक अच्छे संवाददाता को वास्तविक स्थिति जानने के लिए ऐसे कई बाधाओं को पार करना पड़ता है। वो उस समय का राडार था जो अपने क्षेत्र में प्रवेश करने वाले को जान जाता था, श्री हनुमान उसके प्रभाव क्षेत्र से बाहर आकर जल में प्रवेश कर उसे निष्प्राण कर दिए। इस तरह श्री हनुमान मार्ग के दूसरे बेरिकेट को पार करते हैं। प्रभु श्री राम के संवाद को माता सीता तक और माता सीता के संवाद को प्रभु श्री राम तक पहुंचाने के इस कार्य में सत्यता और विश्वनीयता का होना बहुत जरूरी था। श्री हनुमान इसका पूरा ध्यान इस मिशन के ग्राउंड रिपोर्टिंग में रखे थे। तीसरे बेरिकेट के रूप में लंकनी थी। लंका के प्रवेश द्वार पर थी वो कहती थी-
“मोर आहार लंक कर चोरा”
श्री हनुमान ने लंकनी को कहा- विश्व की शांति का अपहरण करने वाले संसार के सबसे बड़ा चोर तो यही रहता है, तू उसे क्यो नहीं खाती। एक संवाददाता में यह गुण रहता है की वो निडरतापूर्वक अपनी बात रखता है, अन्याय के खिलाफ लोगो को जागरूक करता है। श्री हनुमान ने भी यही किया। लंकनी उनका सानिध्य पाकर पाप-पुण्य की परिभाषा जान गई। हनुमान जी की बातों से प्रभावित होकर लंकनी ने लंका के द्वार खोल दिए।।
“प्रवेश नगर कीजै सब काजा”
इस तरह हनुमान जी लंका में प्रवेश करते हैं। मिशन सीता अन्वेषण का प्रथम चरण पूर्ण हुआ। उन्होंने ने लंका में सभी भवनों को देखा उन्हें तलाश थी ऐसे व्यक्ति की जो उन्हें लक्ष्य तक ले जाए जो एक संवाददाता का विश्वसनीय सूत्र बने, जो रावण का अंदर ही अंदर विरोध करता हो और उसे मुखरित होने का अवसर न मिला हो। आप न्यूज चैनल में देखें होंगे कैसे संवाददाता ढूंढ निकालता ऐसे व्यक्ति को जो उस संवाददाता के सामने जो कुछ घट रहा है उसकी बात वो रखता है। हनुमान जी ने ऐसे व्यक्ति के रूप में विभीषण को ढूंढा। उनके घर से हुम-धूप की सुगंध आ रही थी वो घर लंका में सबसे अलग नज़र आ रहा था। ऐसी पैनी नज़र एक अच्छे संवाददाता में ही होती है।
“भवन एक पुनि देखि सुहावा
हरि मंदिर ते भिन्न बनावा”
वो विभीषण का निवास था। हनुमान जी ने उनसे बात की अपनी विलक्षण आभा एवं संवादशैली से उन्होंने धर्मरूचि विभीषण को धर्मात्मा बना दिया। विभीषण की धर्म में रुचि थी पर वो धर्मात्मा नहीं था। आज कई लोग आप को ऐसे मिलेंगे जिनकी धर्म में रुचि होती है पर वो धर्मात्मा नहीं होते हैं। जब हमारी धर्म में रुचि होती पर हम अधर्म का विरोध नहीं करते हैं तो ऐसे धर्म का कोई अर्थ नहीं होता है। इसलिए एक अच्छे संवाददाता की कोशिश रहती है की वो अधर्म के खिलाफ एक आवाज़ बने। हनुमान जी की बातों से विभीषण प्रभावित हुए और उन्होंने विभीषण को झकझोर कर रख दिया और इस तरह वो विभीषण से सामीप्य बनाने में सफल हो गए।अब वो मिशन सीता अन्वेषण के समीप पहुंच गए थे उसके बाद तुरंन्त उन्होंने कहा-
“तब हनुमन्त कहा सुन भ्राता
देखन चाहौ जानकी माता”
इस तरह माता जानकी जिस स्थान पर थी उस स्थान पर हनुमान जी पहुंच गए। वो माता सीता को वृक्ष की ओट से देखते रहे
“कपि करि विचार दीन्ह मुद्रिका डार तक” मुद्रिका डाल मधुर वचन बोलने लगे जिसे सुनकर माता सीता को विश्राम मिला, पर सवाल यह है की मुद्रिका क्या थी
“राम नाम अंकित अति सुंदर”
आज की भाषा में कहे तो वह एक निर्भीक संवाददाता का परिचय पत्र ( प्रेस कार्ड) था। माता सीता ने हनुमान जी से पूरा वृतांत सुना और वो संतुष्ट हुईं। उन्होंने पूछा कि श्री राम मुझे स्मरण करते हैं, श्रेष्ठ परिपक्व संदेशवाहक संवाददाता वही होता है दोनों पक्षों में सामंजस्य स्थापित करते हुए ऐसी विषय सामग्री परोसता है जिससे स्थिति में सहजता आए और वो प्रमाणित भी हो। श्री हनुमान ने कहा- अरे माँ आप से श्री राम को दुगना प्रेम है और इसे उन्होंने सिद्ध किया। जो मन्त्र श्री राम ने हनुमान जी के कान में दिया था वो आज के समय का पासवर्ड कह सकते है जो पुष्पवाटिका में श्री राम और सीता जी के मध्य अनुमोदित हुआ था। ये वो तथ्य था जिससे दोनों पक्षो की बातें सहज रूप से हो सकती थी। माता जानकी से बात करते हुए हनुमान जी ने अपनी मर्यादा का भी पूरा ध्यान रखा जो श्री हनुमान को एक श्रेष्ठ संवाददाता के रूप में प्रतिष्ठित किया ।
“रघुपति के संदेश अब सुन जननी धरि धीर”
इस तरह श्री हनुमान को अनुशासित, सफल संवादाता के रूप में समझा जा सकता है।
संदीप अखिल
स्टेट न्यूज़ कॉर्डिनेटर
लल्लूराम डॉट कॉम