नेहा केशरवानी, रायपुर. गुरुवार को पूरे देश में आनंद और उमंग के साथ भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव मनाया जाएगा. जिसकी तैयारी शुरु हो चुकी है. सभी मंदिरों में भगवान के जन्मोत्सव की धूम अभी से देखने को मिल रही है. इसी कड़ी में रायपुर में 200 साल पुराने जैतुसाव मठ में रामनवमी के अवसर पर 11 क्विंटल मालपुआ बनाया जा रहे हैं. मठ के माता सीता की रसोई में हर साल भगवान राम का प्रिय भोग मालपुआ और पंजीरी बनाया है.

ऐसे होती है मालपुआ बनाने की शुरुआत

सोमवार से ही मालपुआ बनना शुरू हो गया है. भगवान राम के जन्म होने तक यहां मालपुआ छनाता रहेगा. इसकी शुरुआत सबसे पहले भट्टी बनाने से होती है. भट्ठी के सामने दीप प्रज्ज्वलित कर पूरे मंत्रोच्चार के साथ पूजा होती है, इसके बाद अग्निदेव की पूजा होती है, फिर मालपुआ बनना शुरू होता है. पहला मालपुआ अग्निदेव को समर्पित होता है. मालपुआ बनाने वाली हेमा दीदी ने बताया की गेहूं आटा में दूध डालकर खूब फेटा जाता है, इसके बाद गुड़, सौंफ, काली मिर्च डालकर भी फेटते हैं, उसके बाद घी में इसे बनाते हैं. मालपुआ बनने के बाद इसे गाय के चारे, पैरा के उपर रखकर सुखाया जाता है. कीड़े-मकोड़े और चींटिंया पास न फटके इसकी विशेष व्यवस्था की जाती है. शुरुआती दौर में मात्र 11 किलो का मालपुआ बनाया जाता था. भक्तों की संख्या बढ़ने के साथ ही प्रसाद की मात्रा भी बढ़ती चली गई. वर्तमान में 11 क्विंटल से ज्यादा का मालपुआ बनाया जा रहा है.

रामनवमी का महत्व बताते हुए मंदिर के पुजारी अजय तिवारी ने बताया कि राम भगवान का जन्म चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि, अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजे हुआ था. रामनवमी के दिन जैतुसाव मठ में भी ऐसे ही 12 बजे मठ में खुद ढोल बाजे और फटाखे फोड़कर उनका जन्मोत्सव मनाया जाएगा. भगवान को पंचामृत से स्नान करवाया जाएगा. सुबह की आरती (मंगल आरती) के बाद उनके जन्म के बाद फिर आरती होगी.

रामनवमी के अवसर पर जैतुसाव मठ की सजावट केले के पत्तों से होगी. दिन भर भजन, आतिशबाजी होगी. मालपुआ का भोग शाम 5 बजे के बाद भक्तों में बांटा जाएगा. 2-3 दिनों तक प्रसाद बाटा जाएगा. इसके साथ ही पंजीरी का भोग भी भगवान को लगेगा.

200 साल पहले हुआ था जैतुसाव मठ का निर्माण

जैतुसाव मठ का निर्माण उमा बाई ने अपने पति जैतुसाव अग्रवाल की याद में कराया था. उनके पति के नाम से महंत लक्ष्मी नारायण अग्रवाल ने मंदिर का नामकरण किया, यह मठ धार्मिक, समाजिक, शैक्षणिक और राजीनीति का केंद्र बिंदु रहा है. देश की आजादी के समय इस मठ में स्वंत्रता संग्राम सेनानी इकट्ठा होकर रणनीति तैयार करते थे. उस समय मठ के महंत लक्ष्मी नारायण दास, रविशंकर शुक्ल, पं सुंदरलाल शर्मा, बैरिस्टर छेदीलाल, ठाकुर प्यारेलाल, खूबचंद बघेल आदि छत्तीसगढ़ के स्वंत्रता संग्राम में जो भाग लेते थे, उनकी बैठके होती थी. 1932-33 में महात्मा गांधी ने भी यहां बैठक ली थी. उनकी याद में मठ में गांधी जी की मूर्ति भी है. यहां देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी आ चुके हैं. वहीं प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने यहां भोजन किया था. इसके अलावा मोरारजी देसाई समेत राष्ट्रीय स्तर के कई नेताओं का यहां आना-जाना होता था.