रायपुर. वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार पद्मश्री पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी के निधन पर पूरा साहित्य जगत शोकाकुल है. शुक्रवार सुबह हुए पं. चतुर्वेदी के निधन की खबर आने के बाद से प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकारों, साहित्यकारों व स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की प्रतिक्रिया आने का क्रम जारी है.
वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैय्यर ने पं. चतुर्वेदी के निधन पर दुख जताते हुए कहा कि श्यामलाल चतुर्वेदी से मेरा परिचय 1964 से है. मैं भी युगधर्म के था और वो युगधर्म के बिलासपुर के सवांददाता थे. बहुत लोकप्रिय व्यक्ति थे. प्रत्येक वर्ग और राजनीतिक दल में उनका सम्मान था. उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था. उनका पहला आयाम कवि का था. छत्तीसगढ़ी के बहुत अच्छे कवि थे, इसी कारण से राजभाषा आयोग का पहला अध्यक्ष बनाया गया. उनका दूसरा आयाम पत्रकारिता था. वो बहुत अच्छे वक्ता थे, लोगो को बांधकर रखते थे. उनकी सहजेता थी. उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी काम किया.
नैय्यर ने बताया अपनी व्यक्तिगत क्षति
नैय्यर ने पं. चतुर्वेदी ने पत्रकारिता के प्रति निष्ठा का उदाहरण देते सन् 1964-65 की एक घटना का जिक्र किया, जब आवागमन के साधन नहीं होने की वजह से वे एक महत्वपूर्ण खबर के लिए बिलासपुर से साइकिल चलाकर रायपुर आए थे. उन्हें युगधर्म से अच्छा मानदेय भी नहीं मिलता था. सादगी के साथ रहते थे. धोती-कुर्ता ही पहने मैने उन्हें देखा. 20 फरवरी को वो 93 साल के होने वाले थे. 90 साल से ही बीमारी ने अपने वश में ले लिया था, लेकिन उसके बावजूद हंसते-ख़िलाखलते रहते थे. वो तम्बाखू खाते थे और इसे चैतन्य चूर्ण वो कहते थे. पान के वे बहुत शौकीन थे. उनका जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है.
महादेव प्रसाद ने भी निधन पर जताया दुख
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महादेव प्रसाद पांडेय ने भी पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी के निधन पर दुःख जताया है. उन्होंने कहा कि पं चतुर्वेदी के निधन से मुझे व्यक्तिगत आघात पहुंचा है. मेरे से तीन साल बड़े थे. सन् 51 से मेरा उनका संबंध था. मेरी शादी मध्यप्रदेश जनसंघ के प्रथम उपाध्यक्ष शिवानंद दुबे के परिवार से हुई थी, उस समय से श्यामलाल जी के निकट के संबंध थे. वहीं से उनसे मुलाकात होती थी. वे हाफ पैंट – शर्ट पहने रहते थे. साहित्य में रुचि और पारिवारिक संबंध की वजह से परिचय होता रहा. वे सरल व्यक्ति थे. छत्तीसगढ़ी को बढ़ाने में उनका काफी योगदान रहा. काफी समर्पण के साथ काम करते थे. मुझे जब पद्मश्री मिला तो वे मेरे घर में मेरा सम्मान करने आये थे. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि मैं उनके घर नहीं जा सका.