पश्चिम चंपारण। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सिकटा सीट पर सियासी हलचल तेज हो गई है। बीजेपी के युवा और लोकप्रिय चेहरा माने जाने वाले समृद्ध वर्मा ने पार्टी से इस्तीफा देकर जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का दामन थाम लिया है। इस फैसले से न सिर्फ एनडीए खेमे में नए समीकरण बने हैं, बल्कि पूरे पश्चिम चंपारण जिले की राजनीति में नई चर्चा छिड़ गई है।

एनडीए के सीट बंटवारे ने बदली दिशा

सूत्रों के मुताबिक, एनडीए के भीतर सीट बंटवारे के दौरान सिकटा विधानसभा सीट जेडीयू के खाते में चली गई थी। समृद्ध वर्मा इस सीट से बीजेपी के संभावित उम्मीदवार थे और लंबे समय से क्षेत्र में सक्रिय भी थे।लेकिन जब सीट जेडीयू को दी गई, तो उन्होंने रणनीतिक फैसला लेते हुए जेडीयू जॉइन कर ली। बताया जा रहा है कि वर्मा को जेडीयू का टिकट और सिंबल मिल चुका है हालांकि आधिकारिक घोषणा कुछ दिनों में होगी।

जेडीयू के अंदर मतभेद उभरे

समृद्ध वर्मा के आने से जहां एनडीए को मजबूती मिली है वहीं जेडीयू के अंदर खींचतान भी शुरू हो गई है।कई पुराने कार्यकर्ता इसे पैराशूट टिकट बता रहे हैं। एक वरिष्ठ नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहाहमने सालों तक गांव-गांव जाकर पार्टी को मजबूत किया, लेकिन टिकट एक बाहरी चेहरे को दे दिया गया।फिर भी, वर्मा के समर्थक मानते हैं कि उनका आगमन जेडीयू के लिए नई ऊर्जा और विजयी रणनीति लेकर आया है।

वर्मा परिवार की सियासी जड़ें गहरी

समृद्ध वर्मा, सिकटा के पांच बार के पूर्व विधायक दिलीप वर्मा के पुत्र हैं। उनका बचपन शिकारपुर गांव में बीता और उन्होंने अमेरिका के UCLA से इंटरनेशनल बिजनेस में पोस्ट-ग्रेजुएशन किया।रिलायंस और टाटा पावर जैसी बड़ी कंपनियों में काम करने के बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा और बीजेपी प्रवक्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई।

सिकटा में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार

अब सिकटा विधानसभा में मुकाबला दिलचस्प हो गया है।जेडीयू के समृद्ध वर्मा के सामने RJD-कांग्रेस गठबंधन CPI के विरेंद्र गुप्ता जन सुराज और पूर्व मंत्री खुर्शीद आलम जैसे दिग्गज मैदान में उतर सकते हैं। विश्लेषकों का मानना है कि वर्मा के आने से एनडीए का वोट बैंक एकजुट हो सकता है।

जातीय समीकरण और नई चुनौती

सिकटा में भूमिहार, यादव, ठाकुर, ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं।वर्मा परिवार की पकड़ भूमिहार और पिछड़े वर्ग दोनों में मजबूत रही है।अगर समृद्ध वर्मा इस समर्थन को कायम रख पाते हैं, तो एनडीए के लिए जीत की राह आसान हो सकती है।हालांकि, पार्टी के अंदर की नाराजगी यदि शांत नहीं हुई तो यह सीट सत्ता गठबंधन के लिए सिरदर्द भी बन सकती है।