सुरेश पाण्डेय, सिंगरौली। आदिवासियों को अपने बच्चों के लिए एक स्कूल और दो वक्त की रोटी चाहिए, लेकिन उन्हीं से मूल अधिकार छीन लिया। जिस तेंदूपत्ते की कमाई से उसका घर चलता था, उसी पर कुल्हाड़ी चला दी गई। इतना ही नहीं 10 हजार एकड़ भूमि पर जल-जंगल-जमीन खत्म कर एक नया अडानी देश बनाया जा रहा है। बिना किसी पर्यावरण, शासन या सामाजिक अनुमति के जंगल को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। यह कहना है मध्य प्रदेश कांग्रेस का… जी हां… एमपी के सिंगरौली जिले के धीरौली कोल ब्लॉक में हो रही पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और आदिवासी विस्थापन का मुद्दा लगातार गरमाता जा रहा है। इसे लेकर विरोध प्रदर्शन भी जारी है।

पुलिस ने रोका तो धरने पर बैठे कांग्रेसी

दरअसल, बुधवार 10 दिसंबर को कांग्रेस की 12 सदस्यीय टीम सिंगरौली पहुंची। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, अजय सिंह राहुल, जयवर्धन सिंह, कांग्रेस आदिवासी मोर्चा राष्ट्रीय अध्यक्ष विक्रांत भूरिया, मीनाक्षी नटराजन और ओमकार मरकाम समेत कई वरिष्ठ नेता बासी-बेरदहा इलाके में पहुंचे। जहां पुलिस ने बैरिकेडिंग कर उन्हें रोक लिया। रोकने के विरोध में सभी नेता सड़क पर ही धरने पर बैठ गए, जिसके बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गई।

आदिवासियों के बीच पहुंचे नेता, उत्खनन के चलते गांव से भारी पलायन

करीब एक घंटे की मशक्कत और तीखी नोकझोंक के बाद प्रशासन ने कांग्रेस के पांच नेताओं को धीरौली कोल ब्लॉक में प्रभावित आदिवासी परिवारों से मिलने की अनुमति दी। हालांकि इससे पहले ही विक्रांत भूरिया और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार बाइक से वैकल्पिक रास्ते से निकलकर आदिवासियों के बीच पहुंच गए थे। नेताओं ने गांव में खाली पड़े घर, वीरान बस्तियां और खंडहर बन चुके इलाके देखे। जहां स्थानीय लोगों ने बताया कि कोयला उत्खनन के चलते गांव से भारी पलायन हो चुका है।

जंगल जमीन खत्म कर बना रहे अडानी देश

आदिवासी परिवारों से मुलाकात के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “10 हजार एकड़ भूमि पर जल-जंगल-जमीन खत्म कर एक नया अडानी देश बनाया जा रहा है। बिना किसी पर्यावरण, शासन या सामाजिक अनुमति के जंगल को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया है। आदिवासियों और स्थानीय लोगों को न मुआवजा मिला, न ही कोई पुनर्वास।” उन्होंने कहा कि कोयले की धूल बच्चों और बुजुर्गों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रही है और गांवों में अब सिर्फ एक-दो लोग ही बचे हैं, बाकी सब पलायन कर चुके हैं।

उद्योगपतियों के हित में काम कर रहा प्रशासन

पीसीसी चीफ जीतू ने आगे कहा कि पूरे क्षेत्र में पुलिस बलों की भारी तैनाती यह संकेत देती है कि प्रशासन जनता की बजाय उद्योगपतियों के हित में काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर कानूनी लड़ाई से लेकर जन आंदोलन तक हर स्तर पर लड़ेगी और एक कदम पीछे नहीं हटेगी। नेताओं ने बताया कि आदिवासियों की पीड़ा, पलायन और जंगल विनाश की पूरी रिपोर्ट तैयार कर केंद्र और राज्य स्तर पर कांग्रेस नेतृत्व को सौंपी जाएगी।

विधानसभा में गूंजी थी पेड़ों की चीखें!

मध्य प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी सिंगरौली में अवैध वन कटाई का मुद्दा उठाया गया था। विपक्ष ने इस पर ध्यानाकर्षण लगाया था। कांग्रेस विधायक विक्रांत भूरिया ने कहा था कि समाज के गंभीर मुद्दे के लिए मैं सिगरौली गया। जहां चोरी छुपे जाना पड़ा। वहां अवैध वन कटाई चल रही है। गांव के लोगों को बाहर आने की अनुमति नहीं है। बाहर के लोगों को गांव में जाने की अनुमति है। आठ गांवों को आरक्षित क्षेत्रों से बाहर क्यों किया गया।

सिंगरौली का AQI सबसे ज्यादा

राज्यमंत्री दिलीप अहिरवार ने कहा था कि गांव में चोरी छुपे जाने की जरूरत नहीं है। जितने पेड़ काटे जा रहे हैं, उतने पौधे भी लगाए जा रहे हैं। जितना भी काम हो रहा है नियमों से हो रहा है। विक्रांत भूरिया ने कहा था कि सिंगरौली में पेड़ काटे जा रहे हैं, लेकिन पेड़ सागर रायसेन में लगाए जा रहे हैं। सिंगरौली का AQI प्रदेश में सबसे ज्यादा है, जंगल के जंगल उझाड़े जा रहे हैं।

पेसा एक्ट का भी सवाल

वहीं पूर्व मंत्री व कांग्रेस विधायक जयवर्धन सिंह ने कहा था कि पूरे विश्व में कोयले के माध्यम से प्रदूषण कम हो रहा है। तीन कोयले की खदानें अडानी को दी गई हैं। पेसा कानून इसके अंदर आता है। लोकसभा में इसका उत्तर दिया गया है। वन क्षेत्रों को बचाने के लिए कदम उठाना चाहिए। वन संरक्षण 1980 का पालन करने का दावा किया जा रहा है इसका जबाव सदन में दे। इस पर मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि सिंगरौली में पेसा एक्ट लागू नहीं है। क्योंकि वहां आदिवासियों की संख्या कम है। ऐसे में एक्ट के उल्लंघन का सवाल ही नहीं है।

क्या है पेड़ काटने का नियम..?

वृक्ष संरक्षण अधिनियमों के तहत एक पेड़ काटने पर कम से कम दो ‘राज्य और प्रजाति के अनुसार’, नए पेड़ लगाना होता है। साथ ही उनकी देखभाल भी करने की शर्त होती है। या पौधारोपण के लिए सरकार को आर्थिक योगदान देना पड़ता है। निजी जमीन पर वन विभाग से अनुमति ली गई हो, जिसका पालन न करने पर जुर्माना और तो और कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है। आपको बता दें कि हर राज्य के अपने अलग नियम और पेड़ों की प्रजातियों की सूची होती है।

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