दिल्ली.चुनावी माहौल में मतदाता राजनीतिक चर्चा के केंद्र में हैं, लेकिन इससे उनकी पीड़ा दूर नहीं होगी, क्योंकि देश के आर्थिक हालात ठीक नहीं हैं.
वैश्विक मंदी का जिस देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत असर नहीं हुआ और 2016 की नोटबंदी के आघात के बाद भी 2018 के आरंभ में अर्थव्यवस्था में सुधार आया, लेकिन आगे आर्थिक विकास की रफ्तार थमने का खतरा बना हुआ है.
प्रमुख आर्थिक आंकड़े बताते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद नई सरकार को लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था विरासत में मिलेगी. वित्त वर्ष 2019 की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर चिंतनीय है. अक्टूबर- दिसंबर-2018 के दौरान जीडीपी वृद्धि दर 6.6 फीसदी रही जोकि पिछली छह तिमाहियों में सबसे कम है. इसके बाद बीते वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में आर्थिक विकास दर कम होने की संभावना और चिंतनीय है. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने वित्त वर्ष 2018-19 की विकास दर अनुमान को 7.2 फीसदी से घटाकर सात फीसदी कर दिया है.
उधर, एशियाई विकास बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ-साथ देश का केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक ने भी जीडीपी वृद्धि दर अनुमान में कटौती की है. कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की रिपोर्ट में कॉरपोरेट सेक्टर की चिंता का जिक्र किया गया है जिसकी वजह अल्पकालीन मांग में अचानक कमी है.
योजना आयोग (जिसका नाम अब बदलकर नीति आयोग हो गया है) के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा, “इस बात की काफी संभावना है कि ग्रामीण क्षेत्र के संकट के कारण उपभोग में कमी आ सकती है. ग्रामीण आय और ग्रामीण क्षेत्र में उपभोग प्रवृत्ति काफी अधिक होती है. मेरा मानना है कि ग्रामीण क्षेत्र के संकट और अनौपचारिक क्षेत्र के प्रभावित होने से उपभोग पर असर हुआ है जिससे कारण जीडीपी वृद्धि दर घट गए है.” वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, दोपहिया वाहनों की बिक्री में भारी गिरावट निजी उपभोग में कमी का सूचक है. फरवरी में दोपहिया वाहनों की बिक्री में 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई.