शक्ति की आराधना के पर्व शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है. चार नवरात्रों में से एक ये नवरात्रि अश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है. इन नौ दिनों में शक्ति की उपासना की जाती है. वहीं इस बीच कई तांत्रिक भी अपनी साधना सिद्ध करने के लिए मां की पूजा करते हैं. वहीं कुछ लोग कई अन्य विशेष सिद्धियां पाने के लिए इन नौ दिनों में चौंसठ योगिनियों की साधना भी करते हैं. इन दिनों योगिनियों की आराधना का बहुत महत्व माना जाता है.

मुख्यत: इन सभी योगिनियों को मां काली का अवतार माना जाता है. इनका प्रादुर्भाव माता काली से माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार मां काली ने घोर नाम के दैत्य का वध करने के लिए इन्हीं सभी रुपों में अवतार लिया था. इसके अलावा यह भी कहा जाता है की ये सभी योगिनियां माता पार्वति की सखियां हैं. 64 योगिनियों को लेकर कुछ लोगों का मानना है की योगिनियों का संबंध काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र और योग विद्या से संबंध रखती हैं. इसलिए इनकी साधना ज्यादातर तांत्रिक करते हैं. मुख्य रूप से आठ योगनियां अपने गुणों और स्वाभाव से विभिन्न रूप धारण करती हैं. ये सभी तंत्र और योगविद्या में भी निपुण हैं. सामान्य तौर पर कहें तो ये सभी माता की सहचरी (साथ रहने वाली) हैं.

नवरात्रों में जागृत रहती हैं योगिनियां

वैसे तो ये चौंसठ येगिनियां माता के साथ रहती हैं, हमें भले ही आभास ना हो, लेकिन अनुष्ठानों में या पूजा के दौरान ये योगिनियां माता के साथ मौजूद रहती हैं. लेकिन नवरात्रों में योगिनियां चैतन्य (जागृत, सचेत) रहती हैं. कहा जाता है की ये सभी योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न होती हैं. इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन जैसे कर्म इन्हीं की कृपा से सफल हो पाते हैं. वहीं दूसरी तरफ इन 64 देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है.

64 संख्या के पीछे का कारण

चौसठ योगिनी संसार के विभिन्न आयामों पर शासन करती हैं और हर एक योगिनी का एक विशिष्ट चरित्र है. मुख्यतः इनका संबंध या कहें सामान्य कारक 8 मातृकाओं (माताओं) से है. देवी महत्तम के अनुसार इन आठ देवियों ने शुंभ निशुंभ और रक्तबीज राक्षसों के विरुद्ध युद्ध में मां दुर्गा की सहायता की थी और देवी दुर्गा ने स्वयं मातृकाओं की रचना की थी. इनमें से सात दैवीशक्तियों को संबंधित देवों के ही नारी रूप माना जाता है. ये सात देवियां अपने पतियों के वाहन और उनके आयुध के साथ यहां उपस्थित होते हैं. आठवीं मातृका स्वयं मां काली को माना जाता है. हर एक माता की सहायक 8 शक्तियां है इसीलिए इनकी संख्या 64 हो जाती है.

आठ प्रमुख योगिनियों के नाम

सुर-सुंदरी योगिनी.

मनोहरा योगिनी

कनकवती योगिनी

कामेश्वरी योगिनी

रति सुंदरी योगिनी

पद्मिनी योगिनी

नतिनी योगिनी

मधुमती योगिनी

64 योगिनियों के नाम

1.बहुरूप, 2.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्री, 9.वाराही, 10.रणवीरा, 11.वानर-मुखी, 12.वैष्णवी, 13.कालरात्रि, 14.वैद्यरूपा, 15.चर्चिका, 16.बेतली, 17.छिन्नमस्तिका, 18.वृषवाहन, 19.ज्वाला कामिनी, 20.घटवार, 21.कराकाली, 22.सरस्वती, 23.बिरूपा, 24.कौवेरी, 25.भलुका, 26.नारसिंही, 27.बिरजा, 28.विकतांना, 29.महालक्ष्मी, 30.कौमारी, 31.महामाया, 32.रति, 33.करकरी, 34.सर्पश्या, 35.यक्षिणी, 36.विनायकी, 37.विंध्यवासिनी, 38. वीर कुमारी, 39. माहेश्वरी, 40.अम्बिका, 41.कामिनी, 42.घटाबरी, 43.स्तुती, 44.काली, 45.उमा, 46.नारायणी, 47.समुद्र, 48.ब्रह्मिनी, 49.ज्वाला मुखी, 50.आग्नेयी, 51.अदिति, 51.चन्द्रकान्ति, 53.वायुवेगा, 54.चामुण्डा, 55.मूरति, 56.गंगा, 57.धूमावती, 58.गांधार, 59.सर्व मंगला, 60.अजिता, 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा, 63.अघोर और 64. भद्रकाली.

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