मुंबई. दुर्गा जी के इस पांचवे स्वरूप को स्कंदमाता नाम प्राप्त हुआ है. मां दुर्गा का पंचम रूप मां स्कंदमाता के रूप में जाना जाता है. स्कंदमाता का रूप सौंदर्य अद्वितीय आभा लिए शुभ्र वर्ण का होता है. वात्सल्य की मूर्ति हैं स्कंदमाता. संतान प्राप्ति हेतु स्कंदमाता की पूजा फलदायी होती है. स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं. इनकी उपासना करने से साधक अलौकिक तेज पाता है. यह अलौकिक प्रभामंडल प्रति क्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है. एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके मां की स्तुति करने से दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है. मां कमल के पुष्प पर विराजित अभय मुद्रा में होती हैं, स्कंदमाता को पद्मासना देवी तथा विद्यावाहिनी दुर्गा भी कहा जाता है.

या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

स्कंदमाता की पौराणिक महत्व

देवी स्कंदमाता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं, इन्हें ही माहेश्वरी और गौरी के नाम से जाना जाता है. यह पर्वत राज की पुत्री होने से पार्वती कहलाती हैं, महादेव की वामिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के नाम से पूजी जाती हैं. माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है. अतः मां को अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है. जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है मां उस पर अपने पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं.

भगवान स्कंद की माता होने के कारण देवी स्कंदमाता के नाम से जानी जाती हैं. दुर्गा पूजा के पांचवे दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा होती है. कुमार कार्तिकेय को ग्रंथों में सनत-कुमार, स्कंद कुमार के नाम से पुकारा गया है. माता इस रूप में पूर्णतः ममता लुटाती हुई नजर आती हैं. माता का पांचवा रूप शुभ्र अर्थात श्वेत है. माता की चार भुजाएं हैं और ये कमल आसन पर विराजमान हैं. जब अत्याचारी दानवों का अत्याचार बढ़ता है तब माता संत जनों की रक्षा के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती हैं. देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं, माता अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कंद या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिए बैठी हैं. मां का चैथा हाथ भक्तों को आशीर्वाद देने की मुद्रा में है.

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स्कंदमाता पूजन की विधि

दुर्गा पूजा के लिए साधक को पहले मां की विधि सहित पूजा करनी चाहिए. पूजा के लिए कुश अथवा कंबल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा प्रक्रिया को उसी प्रकार से शुरू करना चाहिए. जैसे पूर्व के चार देवियों की पूजा में किया गया है, फिर इस मंत्र से देवी की प्रार्थना करनी चाहिए. अब पंचोपचार विधि से देवी स्कंदमाता की पूजा कीजिए. देवी की पूजा के पश्चात शिव शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा करनी चाहिए यही शास्त्रोक्त नियम है.

स्कंदमाता कथा

दुर्गा पूजा के पांचवे दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा होती है. माता का पांचवा रूप शुभ्र अर्थात श्वेत है. जब अत्याचारी दानवों का अत्याचार बढ़ता है तब माता संत जनों की रक्षा के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती हैं. देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं, माता अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कंद या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिए बैठी हैं. मां का चैथा हाथ भक्तों को आशीर्वाद देने की मुद्रा में है. पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए. ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है.

देवी का स्कंदमाता रूप राक्षसों का नाश करने वाली हैं. कहा जाता है कि एक बार ताडकासुर नाम के भयानक राक्षस ने तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से अजेय जीवन का वचन ले लिया जिससे उसकी कभी मृत्यु ना हो. लेकिन जब ब्रह्मा ने कहा की इस संसार में जो आया है उसे एक ना एक दिन जाना पड़ता है. तो ताडकासुर ने कहा की यदि उसकी मृत्यु हो तो शिव के पुत्र के हाथो हो ब्रह्मा बोले ऐसा ही होगा. ताडकासुर ने सोचा ना कभी शंकर जी विवाह करेंगे ना कभी उनका पुत्र होगा और ना कभी उसकी मृत्यु होगी. ताडकासुर ने खुद को अजेय मानकर संसार में हाहाकार मचाना शुरू कर दिया. तब सभी देवता भागे भागे शंकर जी के पास गए और बोले प्रभु. ताडकासुर ने पूरी सृष्टि में उत्पात मचा रखा है. आप विवाह नहीं करेगे तो ताडकासुर का अंत नहीं हो सकता.

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देवताओं के आग्रह पर शंकर जी ने साकार रूप धारण कर के पार्वती से विवाह रचाया. शिव और पार्वती के पुत्र का जन्म हुआ, जिनका नाम पड़ा कार्तिकेय. कार्तिकेय का ही नाम स्कंद्कुमार भी है स्कंद्कुमार ने ताडकासुर का वध करके संसार को अत्याचार से बचाया स्कंद्कुमार की माता होने के कारण ही मां पार्वती का नाम स्कंदमाता भी पड़ा. माना जाता है कि देवी स्कंदमाता के कारण ही मां-बेटे के संबंधो की शुरुआत हुई. देवी स्कंदमाता की पूजा का विशेष महत्व है. स्कंदमाता अगर प्रसन्न हो जाए तो बुरी शक्तियाँ भक्तों का कुछ नहीं बिगाड़ सकती हैं. देवी की इस पूजा से असंभव काम भी संभव हो जाता है.

कन्या के साथ बटुक भोजन कराएं

स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए स्कंद कुमार को खुश करना जरूरी है, क्योंकि जबतक संतान खुश नहीं होगा मां खुश नहीं हो सकती है. मां को खुश करने के लिए पंचवी तिथि को पांच वर्ष की पांच कन्याओं एवं पांच बालकों को खीर एवं मिठाई खिलाएं.

वाणी दोष से भी दिलाती हैं मुक्ति

कहते हैं कि गला एवं वाणी क्षेत्र पर स्कंदमाता का प्रभाव होता है. इसलिए जिन्हें गले में किसी प्रकार की तकलीफ अथवा वाणी दोष हैं, उन्हें गंगाजल में पांच लवंग मिलाकर स्कंदमाता का आचमन कराना चाहिए और इसे प्रसाद स्वरूप पीना चाहिए. यह उपाय उनके लिए भी लाभकारी है जो गायकी, एंकरिंग अथवा अन्य वाणी से सम्बन्धित पेशे से जुड़े हुए हैं.

या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

संतान सुख की इच्छा से जो व्यक्ति मां स्कंदमाता की आराधना करना चाहते हैं, उन्हें नवरात्र की पांचवी तिथि को लाल वस्त्र में सुहाग चिन्ह सिंदूर, लाल चूड़ी, महावर, नेल पेंट, लाल बिंदी, सेब और लाल फूल एवं चावल बांधकर मां की गोद भरनी चाहिए.