नई दिल्ली . आग में झुलसने वाले मरीजों को एम्स में अब और बेहतर इलाज मिल सकेगा. एम्स अस्पताल के बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी ब्लॉक में त्वचा बैंक की शुरुआत की गई है. एम्स निदेशक प्रोफेसर एम. श्रीनिवास ने गुरुवार को इसका शुभारंभ किया. त्वचा बैंक का मैनुअल भी जारी किया गया.

इससे पहले सफदरजंग अस्पताल में भी कुछ दिन पहले त्वचा बैंक की शुरुआत की गई थी. ऐसे में अब तेजाब हमले का शिकार होने वाले मरीजों को अब दो बड़े अस्पतालों में उपचार मिल सकेगा. एम्स निदेशक प्रोफेसर एम. श्रीनिवास ने कहा कि इस सुविधा के साथ एम्स विश्व स्तर पर सर्वश्रेष्ठ बर्न सेंटर की बराबरी का प्रयास करता है.

विभाग प्रमुख डॉ. मनीष सिंघल ने कहा कि सभी तकनीकी उत्कृष्टता और प्रशिक्षण के साथ यह बैंक गंभीर रूप से जले हुए मरीजों के जीवन को बचाने में मदद करेगा.

संक्रमण के कारण तोड़ देते हैं दम एम्स के प्लास्टिक, रिकंस्ट्रक्टिव और बर्न सर्जरी में सहायक प्रोफेसर डॉ. शिवांगी साहा ने कहा कि सर्वोत्तम कौशल और प्रयासों के बावजूद 60 फीसदी से अधिक जिनका शरीर जलता है वह मरीज अक्सर संक्रमण के कारण दम तोड़ देते है. नई त्वचा मिलने से कई मरीजों की जान बचाने में मदद मिलेगी.

मृत्यु के छह घंटे में त्वचा दान जरूरी एम्स के अनुसार 18 वर्ष से अधिक आयु के किसी भी मृत व्यक्ति की त्वचा को छह घंटे के अंदर दान किया जा सकता है. लेकिन एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और सी, एसटीडी, सामान्य संक्रमण, सेप्टीसीमिया, त्वचा संक्रमण और त्वचा कैंसर वाले लोग त्वचा का दान नहीं कर सकते है.

अब त्वचा दान हो सकती

बर्न व प्लास्टिक सर्जरी ब्लाक के प्रमुख डॉ. मनीष सिंघल ने कहा कि वैसे तो किसी भी मृत व्यक्ति की त्वचा दान हो सकती है, लेकिन 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की त्वचा नहीं ली जाएगी. 80 से अधिक उम्र के लोगों की त्वचा पतली हो जाती है. इस वजह से 80 वर्ष तक की उम्र के मृत व्यक्तियों का हीमौत के छह घंटे के अंदर त्वचा दान हो सकेगा. एचआइवी, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, त्वचा कैंसर, किसी प्रकार के गंभीर संक्रमण से पीड़ित व्यक्ति का त्वचा दान नहीं हो सकता है.

मृतक व्यक्ति के दोनों जांघ से त्वचा ली जाती है. दान में मिली त्वचा की सबसे पहले प्रोसेसिंग की जाती है. इस प्रक्रिया में करीब एक सप्ताह समय लगता है. इसके बाद से चार से पांच वर्ष तक सुरक्षित रखा जा सकता है. त्वचा प्रत्यारोपण के लिए डोनर व मरीज के ब्लड ग्रुप या एचएलए (ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन) का मिलान करने की जरूरत नहीं पड़ती. किसी भी व्यक्ति की त्वचा किसी भी व्यक्ति को लगाई जा सकती है.

उन्होंने बताया कि 30 से 40 प्रतिशत तक जले हुए मरीज को उसके शरीर के ही किसी हिस्से से त्वचा निकाल कर जख्म पर लगा दी जाती है. 40 प्रतिशत से अधिक जल चुके मरीजों के लिए त्वचा मिलना मुश्किल होता है. देश में हर वर्ष करीब 70 लाख लोग बर्न से पीड़ित होते हैं, जिसमें से डेढ़ लाख मरीजों की मौत हो जाती है. इसका कारण संक्रमण होता है.

त्वचा झुलसने के एक से तीन सप्ताह के बीच संक्रमण होने की आशंका रहती है. इस दौरान शरीर के जले हुए हिस्से को ढका नहीं गया तो संक्रमण होना तय है. ऐसे में मरीज को त्वचा लगाने की जरूरत होती है. एम्स पहले से मुंबई व इंदौर के दो अस्पतालों के संपर्क में है जहां त्वचा बैंक है. जहां से कुछ मरीजों के लिए पहले त्वचा मंगाई गई है.