रायपुर. अच्छी सेहत के लिए मार्निंग और ईवनिंग वॉक में निकलने वाले क्या स्काई वॉक में चलेंगे ? या काफिले के साथ बंगले से निकलने वाले नेता गाड़ियां छोड़ एक चौक से दूसरे चौक तक जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ेंगे, पैदल चलेंगे ? या फिर मॉल में एक्सीलेटर के सहारे एक फ्लोर से दूसरे फ्लोर में आने-जाने वाले लोग इसी सुविधा का आनंद स्काई वॉक पर लेंगे ? या ऐसे वे कौन लोग होंगे जो करीब एक अरब खर्च कर बनाए जाने वाले स्काई वॉक में चलकर खुद को इतिहास में दर्ज कराना चाहेंगे ? ऐसे कई सारे सवाल स्काई वॉक बनाने की कार्ययोजना के साथ ही उठते रहे हैं ? आज एक बार फिर यही सारे सवाल अधूरे निर्माण को पूरा करने निकाली गई निविदा के साथ उठ रहे हैं.
सवाल यह भी उठ रहा है कि अंबेडकर से डीकेएस या डीकेएस से अंबेडकर अस्पताल तक मरीजों को क्या इसी स्कॉई वॉक से अस्पताल टू अस्पताल पहुंचाया जाएगा ? या फिर मरीज के परिजन भी समानों के साथ 500 मीटर की दूरी को इसी तरह तय करेंगे ? या तहसील से कलेक्ट्रेट या कोर्ट तक की आवाजाही स्काई वॉक तक आसमानी होगी ? साहब बताइए तो सही आखिर एक अरब वाले स्काई वॉक की सच में क्या कहानी होगी ?
जानने और समझने वाले कई तरह से बताते और समझाते हैं. कुछ तंत्र से ही जुड़े ऐसे भी हैं जो खुलकर इस पर बात करने से कतराते हैं, लेकिन व्यापार जगत के लोग बताते हैं कि उनका काम आसमानी नहीं जमीनी संभव है. स्काई वॉक पर चलकर कारोबार को गति कैसे दे पाएंगे ? सड़क इस पार से उस पार या एक छोर से दूसरे छोर तक भला कितना ही आ-जा पाएंगे ? कहीं ऐसा न हो यह स्काई वॉक नशे करने वालों का ठिकाना बन जाए. अपराधी किसी अपराध के लिए ऊंचाई से कोई योजना बनाए और सुरक्षा सारी धरी की धरी रह जाए.


वैसे सुरक्षा का प्रश्न ही सबसे प्रबल है, क्योंकि सड़क पर तो राह चलते रात हो या दिन भीड़-भाड़ के बीच घटना घट जाती है. ऐसे में भला सड़क से 30-40 फीट की ऊंचाई पर सुरंग नुमा स्काई वॉक पर सुरक्षा कैसी और कितनी मजबूत होगी ? हो सकता है हर तरफ सुरक्षा के लिए सीसीटीवी हो, लेकिन वो तो सड़क पर, चौराहों पर भी बड़ी संख्या में हैं फिर भी घटनाएं घट ही जाती हैं. लिहाजा आसमानी सुरक्षा पर भरोसा कैसे करें ?
भरोसे पर बात आई है तो लोग उस सियासत पर भी भरोसा कैसे करे जो एक बार फिर अधूरे निर्माण के पूरे कराए जाने को लेकर शुरू हो गई है. कांग्रेस विरोध में है और भाजपा पक्ष में. वैसे विरोध में कांग्रेस अभी से नहीं रमन सरकार के समय से ही रही है. 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने इसे बड़ा मुद्दा भी बनाया था, लेकिन सरकार बनने के बाद कांग्रेस सिर्फ कमेटी बनाकर रह गई और किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाई. अब जब फिर से भाजपा की सरकार बन गई तो वो सवा साल बाद ही अंतिम निर्णय पर पहुंच गई है. सरकार ने अधूरे निर्माण को पूरा करने लोक निर्माण विभाग को मंजूरी दे दी है.
निर्माण की मंजूरी के साथ ही बहुत से हैं जो विरोध में बोल रहे हैं, तो कई ऐसे भी जो इसे समय की मांग मान रहे हैं. भारी ट्रैफिक और सड़क हादसों के बीच बहुत से लोग स्काई वॉक को जरूरी मानते हैं, लेकिन इन्हीं से बहुत से लोगों में से अधिकतर यह भी कहते हैं कि भागम-भाग वाली जिंदगी के बीच जहां समय का अभाव वैसे में अतिरिक्त समय देकर कोई सीढ़ी चढ़-उतर कर पैदल क्यों चलेगा ? लोग तो एक चौक से दूसरे चौक तक आने-जाने के लिए गाड़ियों का इस्तेमाल करते हैं. क्योंकि पैसों से ज्यादा अब समय की कीमत है. ऐसे में फिर से सवाल यही है कि यहां कौन सीढ़ियों पर चढ़ पैदल चलना चाहता है साहब ?
खैर स्काई वॉक सदुपयोगी साबित होगा या नहीं इसके लिए इंतजार करना पड़ेगा, लेकिन सोशल मीडिया में लिखने-पढ़ने वालों के पास न वक्त है न इंतजार. स्काई वॉक का मुद्दा सोशल मीडिया में छाया हुआ है. इस मुद्दे पर क्या-कुछ लिखा-पढ़ा जा रहा है देखिए….






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