वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर। रायपुर व बिलासपुर के निर्वाचित नगर निगम के अधिकारों और कार्यों को संविधान विरूद्ध स्मार्ट सिटी कम्पनी से कराने को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू की खण्डपीठ ने माना कि जनहित याचिका में महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न है, इसलिए इसकी पूर्ण सुनवाई आवश्यक है. इसके साथ ही जनहित याचिका को 19 सितम्बर की अंतिम सुनवाई के लिए रखा है.

बिलासपुर के अधिवक्ता विनय दुबे की ओर से अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव और गुंजन तिवारी द्वारा दाखिल जनहित याचिका में बिलासपुर और रायपुर नगर में कार्यरत स्मार्ट सिटी लिमिटेड कम्पनियों को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि इन्होंने निर्वाचित नगर निगमों के सभी अधिकारों और क्रियाकलाप का असवैधानिक रूप से अधिग्रहण कर लिया है. जबकि ये सभी कम्पनियाँ विकास के वही कार्य कर रही हैं, जो संविधान के तहत संचालित प्रजातांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचित नगर निगमों के अधीन है. यही नहीं विगत 5 वर्षों में कराए गए कार्य की प्रशासनिक या वित्तीय अनुमति नगर निगम, मेयर, मेयर इन कॉन्सिल या सामान्य सभा से नहीं ली गई है.

केन्द्र सरकार की ओर से इस याचिका के जवाब में यह माना गया कि ये दोनों कम्पनियां उन्हीं कार्यों को अंजाम दे सकती हैं, जिसकी नगर निगम अनुमति दे. इसके साथ इन कम्पनियों के निदेशक मण्डल में राज्य सरकार और नगर निगम के बराबर बराबर प्रतिनिधि होने चाहिए. वर्तमान में इन दोनों कम्पनियों के 12 सदस्यीय निदेशक मण्डल में नगर निगम आयुक्त के अलावा कोई भी नगर निगम का प्रतिनिधि शामिल नहीं है. इसके विपरीत स्मार्ट सिटी कम्पनियों की ओर से उन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करने की अधिकारिता की दलील दी जा रही है.