अविनाश श्रीवास्तव/ सासाराम। बिहार विधानसभा चुनाव की हलचल अब तेज होती जा रही है और इसी क्रम में राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेह लता ने सासाराम विधानसभा सीट से अपना नामांकन दाखिल किया। नामांकन के दौरान सासाराम एसडीएम आशुतोष रंजन के कार्यालय में वह अपने पति उपेंद्र कुशवाहा और समर्थकों के साथ पहुंचीं। नामांकन दाखिल करने के बाद मीडिया से बात करते हुए स्नेह लता ने कहा कि वह विकास के एजेंडे के साथ चुनावी मैदान में उतरी हैं और क्षेत्र की जनता को एक नई दिशा देना चाहती हैं। उन्होंने भरोसा जताया कि जनता का सहयोग उन्हें अवश्य मिलेगा। वहीं उपेंद्र कुशवाहा ने भी कहा कि स्नेह लता को स्थानीय जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है और यह समर्थन आने वाले चुनाव परिणाम में स्पष्ट दिखेगा।

NDA को मजबूती देने की रणनीति

इस नामांकन से ठीक पहले उपेंद्र कुशवाहा ने रोहतास जिले के भाजपा और जदयू नेताओं से गुप्त मुलाकातें की, जिनमें सासाराम सीट को लेकर चुनावी रणनीति पर गंभीर चर्चा हुई। जानकारी के मुताबिक कुशवाहा ने पांच बार के विधायक जवाहर प्रसाद से उनके आवास पर मुलाकात की और करीब एक घंटे तक चुनावी समीकरणों पर बातचीत की। इस बैठक का मकसद सासाराम में NDA को फिर से एकजुट करना और स्थानीय नाराजगी को दूर करना था। बता दें कि इस बार सासाराम सीट पर भाजपा और जदयू को टिकट नहीं मिला जिससे स्थानीय कार्यकर्ताओं में असंतोष फैल गया था। ऐसे में स्नेह लता की उम्मीदवारी को राजनीतिक रूप से संतुलन साधने वाला कदम माना जा रहा है।

पूर्व विधायक ने दिया समर्थन

पूर्व विधायक जवाहर प्रसाद ने भी इस मौके पर साफ कर दिया कि वे पूरी ताकत के साथ स्नेह लता के पीछे खड़े हैं। उन्होंने कहा पांच पांडवों में सबसे छोटे और प्यारे भाई की तरह उपेंद्र कुशवाहा हैं, जिन्हें हम सबका पूरा समर्थन मिलेगा। सासाराम से NDA प्रत्याशी की जीत तय है। इस बयान से साफ है कि एनडीए का पूरा स्थानीय संगठन स्नेह लता के पीछे एकजुट हो रहा है जो चुनावी समीकरणों को बदल सकता है।

राजनीतिक रणनीति का अहम हिस्सा है

स्नेह लता का मैदान में उतरना केवल एक उम्मीदवार का नामांकन नहीं बल्कि NDA की राजनीतिक रणनीति का अहम हिस्सा है। जहां एक ओर भाजपा और जदयू को सीट न मिलने से कार्यकर्ताओं में रोष था वहीं उपेंद्र कुशवाहा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सासाराम में NDA की उपस्थिति को फिर से मजबूत करने की कोशिश की है। यह कदम न केवल संगठनात्मक मजबूती को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि एनडीए के सहयोगी दलों में अब पहले से बेहतर तालमेल और सामंजस्य है