अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा प्रदेश में सामाजिक बहिष्कार के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. जिन पर संज्ञान लेकर त्वरित कार्रवाई और सक्षम कानून बनाने की आवश्यकता है. डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा पिछले सप्ताह सामाजिक बहिष्कार के 2 मामले आये जिसमे से एक में तो महासमुंद जिले में समाज से बहिष्कृत एक मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार का भी बहिष्कार कर दिया गया जिससे उस व्यक्ति की बेटियों ने स्वयं अर्थी को कंधा दिया और अंतिम संस्कार किया वही एक दूसरे मामले में धमतरी जिले के भेंडरवानी में एक परिवार को बहिष्कृत कर हुक्का पानी बंद कर दिया गया है,उस पर जुर्माना भी लगा दिया गया है.

डॉ. दिनेश मिश्र ने बताया महासमुंद जिले के दूरस्थ ग्राम सालड़बरी में ग्राम पटेल हिरन साहू की 75 वर्ष की उम्र में अज्ञात कारणों से मौत हो गई. मौत के वक्त पिता हिरन के साथ उसका पुत्र अकेला ही था उसने ग्राम में अपने रिश्तेदारों एवम अन्य ग्रामीणों को पिता की मौत की सूचना देता रहा लेकिन किसी की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. अंततः पुत्र ने पिता के मौत की खबर अपनी दोनों विवाहित बहनों तक पहुंचाई. खबर मिलते ही दोनों बहनें एवम मृतक का एक दामाद हिरन के घर पहुंच गए.
मौत के बाद मृतक के पुत्र पुत्रियों ने ग्राम में यह प्रयास किया कि कोई कंधा उनके पिता को मिल जाये तो उनका ससम्मान अंतिम संस्कार किया जा सके. लेकिन सामाजिक बहिष्कार के कारण ग्राम में एक भी ऐसा नहीं मिला जो मानवता के नाते ही वृद्ध ग्राम पटेल का अंतिम संस्कार करवा सके. ग्रामीणों की इस अनदेखी से परिवार जन भी सकते में थे. अंततः मृतक की दोनों विवाहित बेटियों यामिनी साहू और कविताने पिता को कंधा देकर अंतिम संस्कार किया.

वहीं धमतरी के निकट भेंडरवानी में अंतरजातीय विवाह के कारण टल्लूराम और सोनी बाई के परिवार का बहिष्कार कर उनका हुक्का पानी बंद कर रोजी रोटी के , पीने का पानी, सामाजिक काम में शामिल होने पर रोक लगा दी गयी है जिसके कारण उक्त परिवार परेशानी में पड़ गया है,उक्त परिवार ने शिकायत भी की है पर अब तक कोई राहत नहीं मिली है.

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि हमारे यहां सामाजिक और जातिगत स्तर पर सक्रिय पंचायतों द्वारा सामाजिक बहिष्कार के मामले लगातार सामने आते रहते हैं. ग्रामीण अंचल में ऐसी घटनाएँ बहुतायत से होती है जिसमें जाति और समाज से बाहर विवाह करने, समाज के मुखिया का ·कहना न मानने, पंचायतों के मनमाने फरमान व फैसलों को सिर झुकाकर न पालन करने पर किसी व्यक्ति या उसके पूरे परिवार को समाज और जाति से बहिष्कार कर दिया जाता है और उसका समाज में हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है. कुछ मामलों में तो स्वच्छता मित्र बनने पर तो कहीं आर.टी.आई. लगाने पर भी समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है. पूरे प्रदेश में 30 हजार से अधिक व्यक्ति सामाजिक बहिष्कार जैसी कुरीति के शिकार हैं. अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति सामाजिक बहिष्कारजैसी सामाजिक कुरीति के खिलाफ जनजागरण और प्रताड़ित लोगों की मदद के लिए पिछले कुछ वर्षों से लगातार कार्य कर रही है और कुछ परिवारों का बहिष्कार समाप्त करने में सफल भी हुई है. पर बहिष्कृत परिवारों की संख्या बहुत अधिक है और उनका पुनः समाज में शामिल होना. पुनर्वास के लिए एक सक्षम कानून की आवश्यकता है. इसी परिपेक्ष्य में ज्ञात हो कि महाराष्ट्र विधानसभा में सभी सदस्यो ने सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम के संबंध में महत्वपूर्ण कानून को बिना किसी विरोध के सर्वसम्मति से11 अप्रैल 2016 को पारित कर दिया तथा 20 जून 2017 को राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी मिलने के बाद 3 जुलाई 2017 से पूरे महाराष्ट्र में लागू कर दिया गया. इसी प्रकार हमारे प्रदेश में भी सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम की महती आवश्यकता महसूस की जा रही है.

डॉ. मिश्र ने कहा कि सामाजिक· बहिष्कार होने से दंडित व्यक्ति व उसका परिवार गांव में बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है. पूरे गांव-समाज में कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत परिवार से न ही ·कोई बातचीत करता है और न ही उससे किसी प्रकार का व्यवहार रखता है. उस बहिष्कृत परिवार को हैन्ड पम्प से पानी लेने, तालाब में नहाने व निस्तार करने, सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होने, पंगत में साथ बैठने की मनाही हो जाती है. यहां तक उसे गाँव में किराना दुकान में सामान खरीदने, मजदूरी करने, नाई, शादी-ब्याह जैसे सामाजिक सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी शामिल होने से वंचित कर दिया जाता है जिसके कारण वह परिवार गांव में अत्यंत अपमानजन स्थिति में पहुंच जाता है तथा गांव में रहना मुश्किल हो जाता है. सामाजिक पंचायतें कभी-कभी सामाजिक बहिष्कार हटाने के लिए भारी जुर्माना, अनाज, शारीरिक दंड व गांव छोड़ने जैसे फरमान जारी कर देती है.

डॉ. मिश्र ने आगे कहा कि सामाजिक बहिष्कार के कारण विभिन्न स्थानों से आत्महत्या, हत्या, प्रताड़ना और पलायन की खबरें लगातार समाचार पत्रों में आती रहती है. इस संबंध में अब तक कोई सक्षम कानून नहीं बन पाया है इसलिए ऐसे मामलों में कोई उचित कार्रवाई नहीं हो पाती है न ही रोकथाम का कोई प्रयास होता है. सामाजिक बहिष्कार के मामलों के आंकड़े को लेकर नेशनलक्राइम रिकार्ड ब्यूरो, राज्य सरकार, पुलिस विभाग के पास कोई अब तक रिकार्ड जानकारी नहीं है ऐसी जानकारी सूचना केअधिकार के अंतर्गत प्राप्त हुई है. जबकि ऐसी घटनाएं लगातार होती है. इस संबंध में शासन सामाजिक बहिष्कार के संबंध में सक्षम कानून बनाने के लिए पहल करें ताकि अनेक प्रताड़ितों को न्याय मिल सके.