नई दिल्ली। यूनिसेफ का मानना है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले भेदभाव से देश का विकास प्रभावित हो रहा है और इसके लिए देश में ’गहरी जड़ पकड़े सामाजिक मानकों’’ में सुधार करना होगा. उपकार्यकारी निदेशक उमर आब्दी ने एक साक्षात्कार में कहा कि कुछ ऐसे सामाजिक मुद्दे हैं जिनका हल हमें शिक्षा और सरकारी नीतियों जैसे प्रत्यक्ष हस्तांरण योजना से निकालना होगा. उन्होंने बिहार के पटना में चिल्ड्रन्स क्लीनिक का उदाहरण देते हुये कहा कि ऐसा पाया गया कि परिवार बालिकाओं को इलाज के लिये नहीं लाते हैं जो दर्शाता है कि उन्हें ‘वित्तीय बोझ’ मानने का मुद्दा है जिसकी वजह से माता-पिता उन्हें उपचार के लिये नहीं लाते हैं. उन्होंने कहा कि बच्चे पर शुरू से ही उसके विकास पर ध्यान देना होगा और यह लिंग आधारित भेदभाव को कम करने में मदद कर सकता है। इसे अर्ली चाइल्डहुड डेवलपमेंट (ईसीडी) भी कहा जाता है.
आब्दी ने कहा कि समाज में ऐसा कुछ भीतर तक पैठ बनाए हुए है जिसके कारण समाज लड़कों की तुलना में लड़कियों को कम तरजीह देता है और इससे बाहर निकलने में समय लगेगा. इसके लिए जरूरी है उनके मांबाप को ठीक से समझाया जाए. उन्होंने कहा कि शुरूआती एक हजार दिन बच्चे के लिए बहुत जरूरी होते हैं, इससे न केवल उसकी उत्तरजीविता सुनिश्चित होती है बल्कि यह भी तय होता है कि बच्चे का संपूर्ण विकास हो सके, जिसमें न केवल उसका शारीरिक विकास शामिल है अपितु मानसिक विकास भी इससे गिना जाता है. उन्होंने जोर देते हुये कहा कि ईसीडी कार्यक्रम को स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के मध्य प्रसारित करना होगा.